 
                                            प्रतीकात्मक तस्वीर
                                                                                                                        - सौ साल में पहली बार लखनऊ चुनेगा महिला मेयर.
- इस बार लखनऊ मेयर की सीट महिला के लिए आरक्षित है.
- लोकसभा के लिए तीन बार महिलाएं जीतकर पहुंची हैं.
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                                                                                लखनऊ: 
                                        चुनावों में महिलाओं को आरक्षण दिये जाने के बाद से अब महिलाएं न सिर्फ प्रत्याशी बन रही हैं, बल्कि जीत का परचम भी लहरा रही हैं. दरअसल, नवाबों का शहर लखनऊ 100 साल में पहली बार किसी महिला को अपना मेयर चुनने जा रहा है. राजधानी में नगर निगम चुनावों के दूसरे चरण के तहत रविवार को मतदान होना है. गौरतलब है कि पिछले 100 साल में लखनऊ की मेयर कोई महिला नहीं बनी है.
इस बार लखनऊ मेयर की सीट महिला के लिए आरक्षित है. सत्ताधारी भाजपा सहित विभिन्न दलों ने महिला प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं. मगर इस बार चाहे कोई भी दल जीते, मगर इतिहास बनना तो तय है. कारण की सौ साल में पहली बार लखनऊ में कोई महिला मेयर बनेगी.
यह भी पढ़ें - यूपी निकाय चुनाव : साक्षी महाराज और अन्नू टंडन के नाम मतदाता सूची से गायब, साक्षी बोले- साजिश है
लखनऊ में मेयर भले ही कोई महिला नहीं रही हो लेकिन यहां से लोकसभा के लिए तीन बार महिलाएं जीतकर पहुंची हैं. लखनऊ से शीला कौल 1971, 1980 और 1984 में चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची थीं. उत्तर प्रदेश म्यूनिसिपैलिटी कानून 1916 में अस्तित्व में आया. बैरिस्टर सैयद नबीउल्लाह पहले भारतीय थे, जो स्थानीय निकाय के मुखिया बने. उत्तर प्रदेश सरकार ने 1948 में स्थानीय निकाय का चुनावी स्वरूप बदला और प्रशासक की अवधारणा शुरू की.
यह भी पढ़ें - CM योगी आदित्यनाथ ने कहा, संपूर्ण विकास के लिए निकायों में भी भाजपा की सरकार जरूरी
इस पद पर भैरव दत्त सनवाल नियुक्त हुए. संविधान में संशोधन के जरिए 31 मई 1994 से लखनऊ के स्थानीय निकाय को नगर निगम का दर्जा प्रदान किया गया. 1959 के म्यूनिसिपैलिटी एक्ट में मेयर के निर्वाचन के प्रावधान किये गये. रोटेशन के आधार पर महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी. बसपा ने पूर्व अपर महाधिवक्ता बुलबुल गोदियाल को प्रत्याशी बनाया है. बसपा 17 साल बाद पहली बार पार्टी के चिन्ह पर नगर निकाय चुनाव लड़ रही है. भाजपा की मेयर पद की प्रत्याशी संयुक्ता भाटिया का कहना है कि अब हमारा समय आ गया है.
VIDEO: स्थानीय निकाय चुनाव के प्रचार के दौरान BJP नेता ने दी धमकी (इनपुट भाषा से)
                                                                        
                                    
                                इस बार लखनऊ मेयर की सीट महिला के लिए आरक्षित है. सत्ताधारी भाजपा सहित विभिन्न दलों ने महिला प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं. मगर इस बार चाहे कोई भी दल जीते, मगर इतिहास बनना तो तय है. कारण की सौ साल में पहली बार लखनऊ में कोई महिला मेयर बनेगी.
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लखनऊ में मेयर भले ही कोई महिला नहीं रही हो लेकिन यहां से लोकसभा के लिए तीन बार महिलाएं जीतकर पहुंची हैं. लखनऊ से शीला कौल 1971, 1980 और 1984 में चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची थीं. उत्तर प्रदेश म्यूनिसिपैलिटी कानून 1916 में अस्तित्व में आया. बैरिस्टर सैयद नबीउल्लाह पहले भारतीय थे, जो स्थानीय निकाय के मुखिया बने. उत्तर प्रदेश सरकार ने 1948 में स्थानीय निकाय का चुनावी स्वरूप बदला और प्रशासक की अवधारणा शुरू की.
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इस पद पर भैरव दत्त सनवाल नियुक्त हुए. संविधान में संशोधन के जरिए 31 मई 1994 से लखनऊ के स्थानीय निकाय को नगर निगम का दर्जा प्रदान किया गया. 1959 के म्यूनिसिपैलिटी एक्ट में मेयर के निर्वाचन के प्रावधान किये गये. रोटेशन के आधार पर महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी. बसपा ने पूर्व अपर महाधिवक्ता बुलबुल गोदियाल को प्रत्याशी बनाया है. बसपा 17 साल बाद पहली बार पार्टी के चिन्ह पर नगर निकाय चुनाव लड़ रही है. भाजपा की मेयर पद की प्रत्याशी संयुक्ता भाटिया का कहना है कि अब हमारा समय आ गया है.
VIDEO: स्थानीय निकाय चुनाव के प्रचार के दौरान BJP नेता ने दी धमकी (इनपुट भाषा से)
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