सीएम योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ राज्य में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के कई मामले दर्ज हैं....
- योगी और उनकी हिंदू युवा वाहिनी के ख़िलाफ़ राज्य में कई मामले दर्ज हैं
- योगी पर गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर 2007 में भड़काऊ भाषण देने का आरोप
- अब एक दशक होने जा रहा है. मामला ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है
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लखनऊ/नई दिल्ली:
यूपी के नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ये संदेश देने की कोशिश में हैं कि वो कानून-व्यवस्था दुरुस्त करना चाहते हैं. लेकिन उनके अपने ख़िलाफ़ जो आपराधिक मामले हैं, उनका क्या होगा? योगी और उनकी हिंदू युवा वाहिनी के ख़िलाफ़ राज्य में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के कई मामले हैं. योगी आदित्यनाथ पर गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर 2007 में भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा. उन पर 12 ज़िलों में दंगे भड़काने का आरोप लगा. मगर अब एक दशक होने जा रहा है. मामला ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है.
इस मामले के मुख्य शिकायतकर्ता परवेज़ परवाज़ डर की वजह से हमसे मिलने को तैयार नहीं हुए.उनके मुताबिक योगी ने कहा था कि अगर एक हिंदू मरेगा तो एफआईआर नहीं होगी, दस दूसरे लोग मारे जाएंगे. इसकी जांच कर रही सीबी सीआइडी ने आरोप सही पाए, मगर कोर्ट तक ये रिपोर्ट नहीं पहुंची, क्योंकि इस दौरान की राज्य सरकारों ने रिपोर्ट को मंज़ूरी नहीं दी.
योगी के खिलाफ़ एक अन्य मामले में शिकायतकर्ता कांग्रेस नेता तलत अज़ीज़ हैं. 1999 में समाजवादी पार्टी की नेता रही अज़ीज़ महाराजगंज में सपा के जेल भरो आंदोलन के दौरान धरने पर थीं. उनका आरोप है कि योगी और उनके लोगों ने- जो क़ब्रिस्तान की जमीन के कब्ज़े से जुड़े एक विवाद की वजह से उसी इलाक़े में थे- उनके क़रीबी लोगों पर ली चलाई जिससे हेड कांस्टेबल सत्य प्रकाश यादव की मौत हो गई. केस की जांच करने वाली सीबी साइडी किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकी कि गोली किसने चलाई थी. 17 साल बाद भी मुक़दमा शुरू नहीं हुआ है, क्योंकि दोनों पक्षों की तरफ़ से देरी है.
शिकायतकर्ता तलत अज़ीज़ का कहना है कि देरी बड़ी सामान्य सी बात है. कई मामलों में तारीखें ली जाती हैं. कभी कोई ग़ैर हाज़िर रहता है. कई बार कोर्ट ही नहीं बैठती. आपको पता ही है क्या होता है. उधर, योगी के वकील का कहना है कि केस में फाइनल रिपोर्ट जमा कर दी गई है. केस इसलिए धीमे जा रहा है क्योंकि इसमें दम नहीं है. ये साफ नहीं है कि गोली किसने चलाई.
इन दोनों मामलों में राज्य सरकार को मुक़दमा आगे बढ़ाना है. योगी के सत्ता में आने से पहले ही उनके राजनीतिक विरोधियों ने अपने क़दम पीछे खींच लिए थे. अब जब वो खुद मुख्यमंत्री हैं तो इन मामलों में जल्दी न्याय और अनिश्चित हो गया है.
इस मामले के मुख्य शिकायतकर्ता परवेज़ परवाज़ डर की वजह से हमसे मिलने को तैयार नहीं हुए.उनके मुताबिक योगी ने कहा था कि अगर एक हिंदू मरेगा तो एफआईआर नहीं होगी, दस दूसरे लोग मारे जाएंगे. इसकी जांच कर रही सीबी सीआइडी ने आरोप सही पाए, मगर कोर्ट तक ये रिपोर्ट नहीं पहुंची, क्योंकि इस दौरान की राज्य सरकारों ने रिपोर्ट को मंज़ूरी नहीं दी.
योगी के खिलाफ़ एक अन्य मामले में शिकायतकर्ता कांग्रेस नेता तलत अज़ीज़ हैं. 1999 में समाजवादी पार्टी की नेता रही अज़ीज़ महाराजगंज में सपा के जेल भरो आंदोलन के दौरान धरने पर थीं. उनका आरोप है कि योगी और उनके लोगों ने- जो क़ब्रिस्तान की जमीन के कब्ज़े से जुड़े एक विवाद की वजह से उसी इलाक़े में थे- उनके क़रीबी लोगों पर ली चलाई जिससे हेड कांस्टेबल सत्य प्रकाश यादव की मौत हो गई. केस की जांच करने वाली सीबी साइडी किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकी कि गोली किसने चलाई थी. 17 साल बाद भी मुक़दमा शुरू नहीं हुआ है, क्योंकि दोनों पक्षों की तरफ़ से देरी है.
शिकायतकर्ता तलत अज़ीज़ का कहना है कि देरी बड़ी सामान्य सी बात है. कई मामलों में तारीखें ली जाती हैं. कभी कोई ग़ैर हाज़िर रहता है. कई बार कोर्ट ही नहीं बैठती. आपको पता ही है क्या होता है. उधर, योगी के वकील का कहना है कि केस में फाइनल रिपोर्ट जमा कर दी गई है. केस इसलिए धीमे जा रहा है क्योंकि इसमें दम नहीं है. ये साफ नहीं है कि गोली किसने चलाई.
इन दोनों मामलों में राज्य सरकार को मुक़दमा आगे बढ़ाना है. योगी के सत्ता में आने से पहले ही उनके राजनीतिक विरोधियों ने अपने क़दम पीछे खींच लिए थे. अब जब वो खुद मुख्यमंत्री हैं तो इन मामलों में जल्दी न्याय और अनिश्चित हो गया है.
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