- बिहार में चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण कर लगभग 65 लाख नाम हटाए थे.
- उत्तर प्रदेश में भी SIR प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, जहां करीब 69 प्रतिशत फॉर्म वितरण का कार्य पूरा हो चुका है.
- विपक्षी दल SIR को दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वोटरों को निशाना बनाने वाला बता कर इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं.
SIR in UP: बिहार में चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण अभियान Special Intensive Revision (SIR) चलाया. इस अभियान के तहत बिहार की मतदाता सूची की गहन जांच हुई, मृत, प्रवासी और दो वोटर कार्ड वाले मतदाताओं के नाम काट दिए गए. इस अभियान के तहत बिहार में करीब 65 लाख वोटरों के नाम काटे गए. जब यह प्रक्रिया शुरू हुई तो विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां से मिले बदलाव संबंधी कुछ निर्देशों के साथ लेकिन चुनाव आयोग ने SIR की प्रक्रिया पूरी की. एसआईआर के बाद बिहार में हाल ही में चुनाव संपन्न हुआ. बिहार का रिजल्ट आने से पहले ही निर्वाचन आयोग ने यूपी, बंगाल, तमिलनाडु, राजस्थान सहित कई राज्यों में एसआईआर शुरू करने की घोषणा कर दी.
लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आने के बाद अब SIR के विरोध में विपक्षी दल लामबंद हो रहे है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने एसआईआर की जांच और विरोध के लिए खास रणनीति अपनाई है. इन विपक्षी दलों को डर है कि कहीं बिहार की तरह ही यूपी में भी खेला ना हो जाए.
यूपी में विपक्ष क्यों है इतना सतर्क?
बिहार में SIR के दौरान लाखों नाम कटे करीब 65-68 लाख डुप्लीकेट/मृतक/फर्जी हटाए गए, जिसे विपक्ष “वोट कटाई” और “PDA पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक वोटर्स को निशाना बनाने” का तरीका बता रहा है. चुनाव नतीजों के बाद अखिलेश यादव ने साफ कहा, “बिहार में SIR से जो खेल हुआ, वो यूपी , बंगाल, तमिलनाडु में नहीं होने देंगे.”
उन्होंने पार्टी के कार्यकर्ताओं को “PDA प्रहरी” बनाकर बीएलओ के साथ जाने और हर बूथ पर निगरानी रखने का निर्देश दिया. कांग्रेस ने भी इसे “वोट चोरी” बताया है. 17-18 नवंबर के आसपास कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन करने की बात कही थी. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने बिहार को उदाहरण देकर चुनाव आयोग पर बीजेपी के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया था.
यूपी में SIR की मौजूदा स्थिति
- 4 नवंबर से घर-घर सर्वे चल रहा है, अब तक करीब 69% फॉर्म बंट चुके हैं कई जिलों में 80-90% तक.
- कुछ जिलों हापुड़, पीलीभीत, वाराणसी, बिजनौर आदि में हजारों-लाखों डुप्लीकेट नाम पकड़े गए और हटाए जा रहे हैं.
- लगभग पूरे यूपी में 30-50 लाख नाम कट सकते हैं.
बीजेपी कार्यकर्ता भी पूरी तरह एक्टिव
हर बूथ पर अपने लोग बीएलओ के साथ, नए वोटर खासकर युवा और महिलाएं जोड़ने में मदद कर रहे हैं. लोगों को समझा रहे हैं कि एसआईआर से वोट कटेंगे नहीं बल्कि जुड़ेंगे . फर्जी वोट या एक व्यक्ति के एक से ज़्यादा वोट हटाए जायेंगे.
सपा ने हर विधानसभा में तैनात किए SIR PDA प्रहरी
समाजवादी पार्टी ने हर विधानसभा में “SIR PDA प्रहरी” तैनात किए, कांग्रेस कार्यकर्ता भी गांव-गांव जाकर फॉर्म भरवाने में मदद कर रहे हैं. बिहार में SIR के बाद करीब 68 लाख नाम हटाए गए थे. विपक्ष का दावा है कि ज्यादातर नाम मुस्लिम बहुल या विपक्षी इलाकों सीमांचल, नेपाल-बांग्लादेश बॉर्डर से सटे क्षेत्र से कटे, जिससे 2025 बिहार चुनाव में एनडीए को फायदा हुआ.

समाजवादी पार्टी ने एसआईआर पीडीए प्रहरी का गठन किया है.
दलित-पिछड़ा-अल्पसंख्यक वोटरों को टारगेट करने का आरोप
गरीब, ग्रामीण, प्रवासी मजदूरों या अल्पसंघक समुदाय के पास पुराने दस्तावेज जैसे जन्म प्रमाण पत्र, 2003 की वोटर लिस्ट का रेफरेंस नहीं होते हैं. फॉर्म में कई दस्तावेज मांगना पासपोर्ट, राशन कार्ड, जाति प्रमाण आदि मुहैया कराना मुश्किल है, इसलिए लाखों वैध वोटरों के नाम अपने आप कट जाएंगे. विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया के तहत दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वोटरों का नाम काटा जा सकता है.
यूपी में 2027 में विधानसभा चुनाव हैं. विपक्ष को डर है कि SIR से उनके कोर वोट बैंक PDA के लाखों नाम कटेंगे, जबकि बीजेपी समर्थक इलाकों में कम असर होगा. अखिलेश यादव ने “PDA प्रहरी” तैनात किए हैं जो बीएलओ की निगरानी करेंगे.
पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल
- सपा ने आरोप लगाया कि बीएलओ और अधिकारियों की नियुक्ति जाति-धर्म के आधार पर हो रही है.
- विपक्ष लगातार आरोप रहा है कि पूरी प्रक्रिया में मनमानी हो सकती है, अपने हिसाब से नाम काटे और जोड़े जा सकते हैं .
बीजेपी और चुनाव आयोग का पक्ष
- यह सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया है, फर्जी वोटिंग रोकने के लिए जरूरी है , डुप्लीकेट नाम हटाने की प्रक्रिया ताकि चुनाव निष्पक्ष और सही हो .
- कोई समुदाय स्पेशल टारगेट नहीं, सभी के लिए एक समान प्रक्रिया है .
- बिहार में भी विपक्ष ने पहले विरोध किया, लेकिन बाद में कोई बड़ी शिकायत नहीं की. ईसीआई ने कई बार कहा कि कोई आपत्ति हो तो बतायें लेकिन कोई गंभीर आपत्ति सामने नहीं आई .
- यूपी में योगी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने खुद फॉर्म भरा और लोगों से भरने की अपील की.
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