दुनिया में ख्याति प्राप्त वाराणसी की राम नगर की रामलीला में ढाई सौ साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब पेट की खराबी के वजह से भगवान राम सहित उनके चारो भाई भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न बीमार हो गए. पेट में संक्रमण होने की वजह से उन्हें दस्त होने लगे तो सभी को राम नगर स्थित लाल बहादुर शात्री राजकीय चिकित्सालय में भर्ती कराया गया. लीला के चार प्रमुख स्वरूपों के एक साथ बीमार होने से ऐसा पहली बार हुआ जब बुधवार को लीला रोक देनी पड़ी. चौथे दिन की लीला जनकपुर दर्शन और फुलवारी की थी जिसे स्थगित कर दिया गया. हालांकि निरंतरता बनाये रखने के लिए जहां मंच पर श्री राम और विश्वमित्र मौजूद थे तो वहीं लक्ष्मण का मुकुट रखा गया था साथ ही रात आठ बजे आरती की रस्म पूरी की गई थी.
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इसके पहले भी चंद्रग्रहण और बारिश बन चुकी है बाधा
हालांकि इसके पहले तीन बार लीला को स्थगित करना पड़ा है लेकिन तब वजह कुछ और थी. एक बार चंद्र ग्रहण की वजह से और दो बार बारिश की वजह से लीला को रोकना पड़ा था. ये पहली बार है जब प्रमुख स्वरुप के बीमार होने पर लीला को रोकना पड़ा.
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हाथ में वेनफ़्लान लगा कर किया मंचन
बुधवार की लीला के बाद ही राम और भरत की भी तबियत खराब हो गई तो उन्हें भी अस्पताल में भर्ती कराया गया. तब ऐसा लगा कि शायद बृहस्पतिवार की भी लीला नहीं हो पायेगी लेकिन इलाज की तत्परता और स्वरुप बने बालकों के साहस की वजह से बृहस्पतिवार की लीला स्थगित नहीं हुई. तकरीबन तय समय से 2 घण्टे बाद सात बजे जैसे ही हाथ में वेनफ्लान लगाये राम लक्ष्मण का स्वरुप लीला स्थल पर पहुंचा वैसे ही जय श्री राम और हर हर महादेव के नारे से पूरा लीला स्थल गूंज उठा.
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चौथे दिन की लीला के मंचन के बाद फिर अस्पताल गये राम और लक्ष्मण
बृहस्पतिवार को जब अस्पताल से सीधे लीलास्थल पर राम और लक्ष्मण पहुंचे तो चौथे दिन की लीला जनकपुर दर्शन और फुलवारी का मंचन हुआ. हाथों में वेनफ्लॉन सेट लगाए दोनों स्वरूपों ने अपनी अपनी भूमिका निभाई. लीला के बाद दोनों स्वरूपों को फिर से अस्पताल में भर्ती कराया गया. बृहस्पतिवार को भरत और शत्रुघ्न की हालात में सुधार होने पर होने अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.
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राम नगर की राम लीला में पत्रों के चयन में होती है कठिन परीक्षा
गौरतलब है कि राम नगर के विश्व प्रसिद्ध राम लीला के मुख्य स्वरूपों के चयन की जटिल प्रक्रिया है. इसके लिये ब्राह्मण बटुकों का चयन होता है. जिनका हिंदी और संस्कृत पर समान अधिकार होता है. चयन के बाद इन स्वरूपों का कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर प्रथम गणेश पूजन के बाद वरण किया जाता है , इसके बाद सभी स्वरुप अपने परिवार से अलग काशी नरेश के धर्मशाला में व्यासगण से प्रशिक्षण लेते हैं.
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