दशहरा (Dussehra, Dusshera) या विजयदशमी (Vijaydashmi) हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है. यह असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है. मान्यता है कि भगवान श्री राम (Sri Ram) ने दशमी के दिन 10 सिर वाले अधर्मी रावण (Ravana) को मार गिराया था. यही नहीं इसी दिन मां दुर्गा (Maa Durga) ने महिषासुर नाम के दानव का वध कर उसके आतंक से देवताओं को मुक्त किया था. नवरात्रि (Navratri) के नौ दिनों के बाद 10वें दिन नौ शक्तियों के विजय के उत्सव के रूप में विजयदशमी मनाई जाती है.
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दशहरा कब है?
शरद नवरात्र के 10वें दिन और दीपावली से ठीक 20 दिन पहले दशहरा आता है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को विजयदशमी या दशहरे का त्योहार मनाया जाता है. इस बार दशहरा 8 अक्टूबर 2019 को है.
दशहरा की तिथि और शुभ मुहूर्त
दशमी तिथि प्रारंभ: 07 अक्टूबर 2019 को दोपहर 12 बजकर 58 मिनट से
दशमी तिथि समाप्त: 07 अक्टूबर 2019 को दोपहर 02 बजकर 50 मिनट तक
विजय मुहूर्त: 08 अक्टूबर 2019 को दोपहर 02 बजकर 41 मिनट से दोपहर 02 बजकर 51 मिनट तक.
कुल अवधि: 46 मिनट
अपराह्न पूजा का समय: 08 अक्टूबर 2019 को दोपहर 01 बजकर 18 मिनट से दोपहर 03 बजकर 37 मिनट तक.
कुल अवधि: 02 घंटे 19 मिनट
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दशहरा का महत्व
दशहरा का धार्मिक महत्व तो है ही लेकिन यह त्योहार आज भी बेहद प्रासंगिक है. यह पर्व बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है. आज भी कई बुराइयों के रूप में रावण जिंदा है. यह त्योहार हमें हर साल याद दिलाता है कि हम बुराई रूपी रावण का नाश करके ही जीवन को बेहतर बना सकते हैं. महंगाई, भ्रष्टाचार, व्यभिचार, बेईमानी, हिंसा, भेदभाव, ईर्ष्या-द्वेष, पर्यावरण प्रदूषण, यौन हिंसा और यौन शोषण जैसी तमाम ऐसी बुराइयां हैं जो आज भी अपना अट्टाहस कर मानवता और सभ्य समाज को चुनौती दे रही हैं. ऐसे में जरूरी है कि हम दशहरा के दिन इनको जड़ से खत्म करने का संकल्प लें. तभी हम सही मायनों में दशहरा की महत्ता को समझ पाएंगे.
दशहरा के दिन पूजा की परंपरा
दशहरा का विजय मुहूर्त सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है. मान्यता है कि शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए इसी समय निकलना चाहिए. विजय मुहूर्त में गाड़ी, इलेक्ट्रॉनिक सामान, आभूषण और वस्त्र खरीदना शुभ माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस मुहूर्त में कोई भी नया काम किया जाए तो सफलता अवश्य मिलती है. इस दिन शस्त्र पूजा के साथ ही शमी के पेड़ की पूजा की जाती है. साथ ही रावण दहन के बाद थोड़ी सी राख को घर में रखना शुभ माना जाता है.
क्यों मनाया जाता है दशहरा?
दशहरा मनाए जाने को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं:
- एक कथा के मुताबिक महिषासुर नाम का एक बड़ा शक्तिशाली राक्षस था. उसने अमर होने के लिए ब्रह्मा की कठोर तपस्या की. ब्रह्माजी ने उसकी तपस्या से खुश होकर उससे वरदान मांगने के लिए कहा. महिषासुर ने अमर होने का वरदान मांगा. इस पर ब्रह्माजी ने उससे कहा कि जो इस संसार में पैदा हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है इसलिए जीवन और मृत्यु को छोड़कर जो चाहे मांग सकते हो. ब्रह्मा की बातें सुनकर महिषासुर ने कहा कि फिर उसे ऐसा वरदान चाहिए कि उसकी मृत्यु देवता और मनुष्य के बजाए किसी स्त्री के हाथों हो. ब्रह्माजी से ऐसा वरदान पाकर महिषासुर राक्षसों का राजा बन गया और उसने देवताओं पर आक्रमण कर दिया. देवता युद्ध हार गए और देवलोकर पर महिषासुर का राज हो गया.
महिषासुर से रक्षा करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ आदि शक्ति की आराधना की. इस दौरान सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली जिसने देवी दुर्गा का रूप धारण कर लिया. शस्त्रों से सुसज्जित मां दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिनों तक भीषण युद्ध करने के बाद 10वें दिन उसका वध कर दिया. इसलिए इस दिन को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है. महिषासुर का नाश करने की वजह से दुर्गा मां महिषासुरमर्दिनी नाम से प्रसिद्ध हो गईं.
- एक दूसरी कथा के मुताबिक भगवान श्री राम ने लगातार नौ दिनों तक लंका में रहकर रावण से युद्ध किया. फिर 10वें दिन उन्होंने रावण की नाभि में तीर मारकर उसका वध कर दिया था. कहते हैं कि भगवान श्री राम ने मां दूर्गा की पूजा कर शक्ति का आह्वान किया था. श्री राम की परीक्षा लेते हुए मां दुर्गा ने पूजा के लिए रखे गए कमल के फूलों में से एक फूल को गायब कर दिया. राम को कमल नयन कहा जाता था इसलिए उन्होंने अपना एक नेत्र मां को अर्पण करने का निर्णय लिया. ज्यों ही वह अपना नेत्र निकालने लगे देवी प्रसन्न होकर उनके समक्ष प्रकट हुईं और विजयी होने का वरदान दिया. फिर दशमी के दिन श्री राम ने रावण का वध कर दिया.
कैसे मनाया जाता है दशहरा का त्योहार?
दशहरा का त्योहार देश भर में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. मैसूर और कुल्लू का दशहरा तो दुनिया भर में मशहूर है. नवरात्रि के नौ दिनों बाद 10वें दिन देश के अलग-अलग कोनों में रावण दहन और मेलों का आयोजन होता है. इस दिन रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं. दशमी के दिन दुर्गा पंडालों पर विशेष पूजा होती है. स्त्रियां मां दुर्गा को सिंदूर चढ़ाती हैं और फिर एक-दूसरे को भी सिंदूर लगाती हैं. इसे सिंदूर खेला कहा जाता है. इसके बाद दुर्गा मां की प्रतिमा को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है. इस दिन क्षत्रिय शस्त्र पूजा करते हैं, जबकि ब्राह्मण शास्त्रों का पूजन करते हैं. वहीं व्यापार से जुड़े वैश्य लोग अपने प्रतिष्ठान और गल्ले की पूजा करते हैं. साथ ही नई दुकान या कारोबार का शुभारंभ भी करते हैं. दरअसल, प्राचीन काल में क्षत्रिय युद्ध पर जाने के लिए इस दिन का ही चुनाव करते थे. ब्राह्मण दशहरा के ही दिन विद्या ग्रहण करने के लिए अपने घर से निकलता था. मान्यता है कि दशहरा के दिन शुरू किए गए काम में विजय अवश्य मिलती है. विजयदशमी पर शमी के वृक्ष की पूजा का भी विधान है.
मैसूर का दशहरा
कर्नाटक के मैसूर का दशहरा सिर्फ भारत में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर है. 10 दिनों तक मनाया जाने वाला मैसूर का दशहरा उत्सव देवी दुर्गा के स्वरूप चामुंडेश्वरी द्वारा महिषासुर के वध का प्रतीक है. मैसूर में दशहरा मनाए जाने की परंपरा 600 सालों से भी ज्यादा पुरानी है. यहां दशहरा उत्सव के दौरान चामुंडेश्वरी मंदिर और मैसूर महल को भव्य तरीके से सजाया जाता है और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. विजयदशमी के मौके पर मैसूर का राज दरबार आम लोगों के लिए खोल दिया जाता है. पूरे 10 दिनों तक धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है. 10वें दिन के उत्सव को जम्बू सवारी या अम्बराज कहा जाता है. इस दिन 'बलराम' नाम के हाथी और अन्य 11 गजराज को विशेष रूप से सजाया जाता है. बलराम के सुनहरे हौदे पर सवार होकर मां चामुंडेश्वरी नगर भ्रमण के लिए निकलती हैं. इस 750 किलो वजन के हौदे की खासियत यह है कि इसमें लगभग 80 किलो सोना लगा हुआ है. हौदे पर बेहद खूबसूरत नक्काशी की गई है. आपको बता दें कि साल में एक ही बार मां चामुंडेश्वरी की प्रतिमा नगर भ्रमण के लिए निकलती है.
कुल्लू का दशहरा
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा देश भर में काफी लोकप्रिय है. इस त्योहार को यहां 'दशमी' के नाम से जाना जाता है. यहां दशहरा एक दिन नहीं बल्कि सात दिन मनाया जाता है. कुल्लू में दशहरा विजयदशमी से शुरू होकर अगले सात दिनों तक चलता है. यहां दशहरे की तैयारियां अश्विन महीने के पहले 15 दिनों से ही शुरू हो जाती हैं. सबसे पहले यहां के राजा सभी देवी-देवताओं को रघुनाथ जी के सम्मान में यज्ञ का न्योता देकर धालपुर घाटी बुलाते हैं. दशमी के दिन 100 से ज्यादा देवी-देवताओं को सजी हुई पालकियों में बैठाया जाता है. इन सात दिनों में रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है. रथ में रघुनाथ जी, माता सीता और हिडिंबा देवी की प्रतिमाओं को बैठाया जाता है. उत्सव के छठे दिन सभी देवी-देवता एक जगह मिलते हैं जिसे 'मोहल्ला' कहा जाता है. सातवें दिन व्यास नदी के किनारे लंका दहन होता है. यहां रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण का पुतला नहीं जलाया जाता, बल्कि काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार के नाश के प्रतीक के तौर पर पांच पशुओं की बलि दी जाती है. इसके बाद रथ को फिर से रघुनाथ जी के मंदिर में पुनर्स्थापित कर दशहरे का समापन किया जाता है.
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