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कोर्ट ज्ञानवापी परिसर के अतिरिक्त सर्वे पर आज सुना सकता है फैसला

हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि मुख्य गुंबद के नीचे 100 फुट का शिवलिंग मौजूद है और परिसर के शेष स्थल की खुदाई कराकर एएसआई सर्वे कराने की मांग की है.

कोर्ट ज्ञानवापी परिसर के अतिरिक्त सर्वे पर आज सुना सकता है फैसला
यह मामला 1991 में सोमनाथ व्यास द्वारा दाखिल किए गए वाद से जुड़ा है.

हिंदू पक्ष की संपूर्ण ज्ञानवापी परिसर के अतिरिक्त सर्वे की अपील पर आज वाराणसी कोर्ट फैसला सुना सकता है. सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई चल रही है. हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि मुख्य गुंबद के नीचे 100 फुट का शिवलिंग मौजूद है और परिसर के शेष स्थल की खुदाई कराकर एएसआई सर्वे कराने की मांग की है. वहीं, मुस्लिम पक्ष ने खुदाई का विरोध किया है. यह मामला 1991 में सोमनाथ व्यास द्वारा दाखिल किए गए वाद से जुड़ा है.

हिन्दू पक्ष के वकील ने क्या बताया

हिन्दू पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने इस पर तफ्सील से जानकारी देते हुए बताया, “सिविल सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट वाराणसी में केस संख्या 610, वर्ष 1991 के अंतर्गत लंबित है वाद में एएसआई सर्वे पहले ही हो चुका था. परंतु इस केस में आज 08.04.2021 को एक आदेश पारित हुआ है. उस आदेश के अनुपालन में कोई आदेश नहीं हुआ था, इसलिए मेरे द्वारा प्रार्थना पत्र दिया गया था कि संपूर्ण ज्ञानवापी परिसर का अतिरिक्त सर्वे कराया जाए. जो पूर्व के सर्वे में नहीं हुआ है वह कराया जाए. माननीय न्यायालय में दोनों पक्षों की बहस हो चुकी है. निर्णय सुरक्षित है. आज इसका शुभ दिन है. न्यायालय द्वारा निर्णय सुनाया जाना है.”

मुस्लिम पक्ष की दलीलों के बारे में क्या कहा

मुस्लिम पक्ष के पक्ष में आपने क्या दलीलें रखीं?, इस पर उन्होंने कहा, “सुनवाई में मुस्लिम पक्ष इसके विपरीत कहता है. हिंदू जो भी कहेगा, वह बिल्कुल विपरीत ही कहेंगे. वह कह रहे थे कि सर्वे उचित नहीं है और सर्वे नहीं होना चाहिए. वह ऐसी बातें कर रहे थे जिसका कोई मतलब नहीं है.”

किस तरीके का सर्वे हो इस पर वह कहते हैं, “ हम ऐसा करना चाहते हैं एक सर्वेक्षण कि केंद्रीय गुंबद के नीचे, स्वयंभू ज्योतिर्लिंग का सौ फीट लंबा शिवलिंग है और अरघा सौ फीट गहरा है. उन्होंने इसे बड़ी सीमाओं और पट्टियों से ढक दिया है और इसे अस्तित्वहीन कर दिया है. हम इसे प्रकाश में लाना चाहते हैं. न तो एएसआई और न ही जीपीआर सिस्टम वहां काम कर रहा था. न तो एएसआई और न ही जीपीआर सिस्टम स्पष्ट आकार और नीचे की हर चीज की रिपोर्ट देने में सक्षम था. इसलिए मेरी अदालत से यही प्रार्थना थी कि इस संरचना से हटकर, इसे कोई नुकसान पहुंचाए बिना, 10 मीटर, 5 मीटर दूर गड्ढा खोदकर अंदर जाएं और उस स्तर पर देखें कि स्वयंभू विश्वेश्वर का ज्योतिर्लिंग, जिनके नाम से काशी जानी जाती है, जिनके नाम से काशी दुनिया में प्रसिद्ध है, ऐसे विश्वनाथ वहां मौजूद हैं या नहीं और उसके बारे में रिपोर्ट करें.”

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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