यूपी के लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी ने विपक्षी दलों के लंबे समय से कब्जे में रहीं आजमगढ़ औऱ रामपुर सीट पर कब्जा जमाकर सबको चौंका दिया है. आजमगढ़ में 60 सालों के लोकसभा चुनाव के इतिहास में यह दूसरी बार हो रहा है कि बीजेपी ने अपनी विजय पताका फहराई हो. 90 के दशक में मंडल-कमंडल के दौर से ही यह सीट समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी के कब्जे में रही. जबकि 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव से लेकर 1971 तक कांग्रेस का यहां वर्चस्व रहा. हालांकि आपातकाल खत्म होने के बाद 1977 और फिर 1980 के लोकसभा चुनाव में यहां जनता पार्टी और जनता पार्टी (सेक्युलर) ने यहां से जीत दर्ज की थी.
आजमगढ़ में 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अलगू राय शास्त्री, 1957 में कलिका सिंह, 1962 में राम हरख यादव और 1967 और 1971 में चंद्रजीत यादव ने चुनाव जीता. लेकिन कांग्रेस में विभाजन के बाद चंद्रजीत यादव को यहां से मात खानी पड़ी और जनता पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरे राम नरेश यादव ने चुनाव जीता. हालांकि 1978 में जब उपचुनाव हुआ तो इंदिरा कांग्रेस के टिकट पर मोहसिना किदवई ने यहां फिर कांग्रेस का झंडा फहरा दिया. 1980 में चंद्रजीत यादव ने जनता पार्टी (सेक्युलर) का दामन थामा औऱ यहां से तीसरी बार बने सांसद बने. 1984 में कांग्रेस आजमगढ़ से आखिरी बार चुनाव जीत पाई और उसके बाद उसे कभी यहां से जीत नसीब नहीं हो पाई.
90 के दशक में मंडल-कमंडल के दौर और राम जन्म भूमि आंदोलन की तेज होती धधक के बीच 1989 में बसपा ने पहली बार अपना झंडा गाड़ा और पार्टी के प्रत्याशी राम कृष्ण यादव ने विजय हासिल की. तब से यह सीट लगातार बसपा या सपा के हाथ में रही है. 1991 के चुनाव में चंद्रजीत यादव यहां जनता दल के निशान पर मैदान में थे और जीत की चौकड़ी उन्होंने लगाई. वर्ष 1996 में बाहुबली रमाकांत यादव ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर यहां साइकिल की धमक स्थापित की. लेकिन 1998 में अकबर अहमद डंपी ने पासा पलट दिया. लेकिन सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे रमाकांत यादव ने 1999 और वर्ष 2004 में फिर से यहां से (बसपा के टिकट पर) लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने.
अकबर अहमद डंपी और रमाकांत यादव के बीच इस सीट पर मुकाबला वर्ष 2008 और 2009 में भी हुआ. वर्ष 2008 में अकबर अहमद डंपी और 2009 में रमाकांत यादव यहां फिर जीते और इस बार बीजेपी के टिकट पर. लेकिन सपा ने अपना परपंरागत गढ़ वापस पाने के लिए वर्ष 2014 में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव खुद यहां से चुनावी अखाड़े में कूदे, लेकिन मोदी लहर के बीच रमाकांत यादव के मुकाबले में मुलायम बेहद कम अंतर से चुनाव जीत पाए. वर्ष 2019 में अखिलेश यादव ने यहां समाजवादी पार्टी को दोबारा जीत दिलाई. वर्ष 2022 में दिनेश लाल यादव (निरहुआ) ने यहां अपनी बीजेपी को दूसरी बार जीत दिलाई.
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