सरकारी नौकरी में सेवारत रहते हुए दुर्भाग्यवश कर्मचारी के साथ कोई अनहोनी हो जाए तो परिवार को सहारा देने के लिए किसी योग्य सदस्य को अनुकंपा पर नौकरी दी जाती है. ये सरकारी कर्मी की पोस्ट और परिवार के सदस्य की योग्यता को ध्यान में रखते हुए तय किया जाता है. हालांकि अगर परिवार के उस सदस्य की योग्यता ज्यादा हो तो जरूरी नहीं कि उसे बड़ी पोस्ट मिलेगी या नहीं, ये बड़ा सवाल है. सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल पर तस्वीर साफ कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति (Compassionate Appointment) से जुड़े एक अहम मामले में वर्षों से चले आ रहे भ्रम को दूर करते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी मृतक कर्मचारी के आश्रित को अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिलने के बाद, वह बाद में अपनी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर उच्च पद का दावा नहीं कर सकता है.
जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने जोर देकर कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का एकमात्र उद्देश्य परिवार को अचानक आए वित्तीय संकट से तुरंत बाहर निकालना है. यह किसी विशेष पद पर नियुक्ति पाने का 'निहित अधिकार' नहीं है, बल्कि सार्वजनिक रोजगार के सामान्य नियमों का एक अपवाद है, जिसे 'करुणा' या 'रियायत' के रूप में देखा जाना चाहिए.
जूनियर असिस्टेंट पोस्ट पर नियुक्ति चाहते थे सफाई कर्मचारी
यह फैसला मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द करते हुए सुनाया गया, जिसमें राज्य सरकार को दो कर्मचारियों (एम. जयबल और एस. वीरमणि) को 'सफाई कर्मचारी' के बजाय 'जूनियर असिस्टेंट' के पद पर नियुक्त करने का निर्देश दिया गया था. इन दोनों कर्मचारियों ने अपने पिता की मृत्यु के बाद 'सफाई कर्मचारी' के रूप में नियुक्ति स्वीकार कर ली थी, लेकिन वर्षों बाद उन्होंने यह कहते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि वे प्रारंभिक नियुक्ति के समय उच्च पद के लिए योग्य थे.
सुप्रीम कोर्ट ने टाउन पंचायत के निदेशक द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि
- अधिकार पर कन्फ्यूजन दूर': एक बार जब अनुकंपा नियुक्ति का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है और उम्मीदवार सेवा में शामिल हो जाता है, तो अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार 'पूर्ण' (Consummated) हो जाता है.
- ऊपर चढ़ने की सीढ़ी नहीं: कोर्ट ने टिप्पणी की, 'इस नियुक्ति को करियर में उन्नति की सीढ़ी या 'एंडलेस कंपेशन' (Endless Compassion) के रूप में नहीं देखा जा सकता.' उच्च पद के लिए योग्य होने का मतलब यह नहीं है कि आपको अनुकंपा योजना के तहत वह पद मिल जाए.
देरी और 'समानता' का तर्क खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिवादियों की याचिकाएं दायर करने में हुई भारी देरी को भी गलत माना. एक कर्मचारी ने नियुक्ति स्वीकार करने के लगभग नौ साल बाद रिट याचिका दायर की थी. कोर्ट ने कहा कि इतनी लंबी देरी तत्काल आवश्यकता की भावना को समाप्त कर देती है.
प्रतिवादियों ने यह भी तर्क दिया था कि समान स्थिति वाले अन्य व्यक्तियों को उच्च पद दिए गए थे, इसलिए उनके साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए. इस पर कोर्ट ने 'नकारात्मक समानता' (Negative Equality) के सिद्धांत को खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि कोई भी व्यक्ति कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर यह दावा नहीं कर सकता कि चूंकि किसी और को अवैध रूप से लाभ दिया गया है, इसलिए उसे भी वही राहत मिलनी चाहिए.
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि हाईकोर्ट का उच्च पदों पर नियुक्ति का निर्देश देना 'त्रुटिपूर्ण और कानून की भावना के विपरीत' था. इस फैसले से अब सरकारी विभागों में अनुकंपा नियुक्ति के मामलों में स्पष्टता आएगी और 'एक बार नियुक्ति स्वीकारने के बाद' उच्च पद की मांग करने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं