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बिजली बिल में राहत: सरकार के इस फैसले से 25-30 पैसे प्रति यूनिट तक सस्ती हो सकती है बिजली

Electricity Cost Cut: सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, FGD सिस्टम को लगाने और चलाने में भारी खर्च होता है, जिससे बिजली की उत्पादन लागत बढ़ती थी. अब जब ज्यादातर प्लांट्स को इससे छूट दी गई है, तो इससे बिजली उत्पादन सस्ता होगा और इसका फायदा आम लोगों को मिलेगा.

बिजली बिल में राहत: सरकार के इस फैसले से 25-30 पैसे प्रति यूनिट तक सस्ती हो सकती है बिजली
Electricity Cost Reduction India: अनुमान है कि बिजली की कीमतों में 25-30 पैसे प्रति यूनिट की कटौती हो सकती है.
नई दिल्ली:

अगर आप भी हर महीने बढ़ते बिजली के बिल से परेशान हैं, तो आपके लिए एक राहत की खबर है. सरकार ने कोयले से चलने वाले पावर प्लांट्स के लिए प्रदूषण नियंत्रण से जुड़े कुछ नियमों में ढील दी है. इससे आने वाले समय में बिजली की कीमतों (Electricity Cost Cut) में 25 से 30 पैसे प्रति यूनिट तक की कमी आ सकती है.

क्या है सरकार का नया फैसला?

सरकार ने हाल ही में एक नोटिफिकेशन जारी किया है, जिसमें साल 2015 के उस नियम में बदलाव किया गया है, जिसमें सभी कोल-बेस्ड पावर प्लांट्स में FGD सिस्टम लगाना जरूरी था. FGD  (Flue Gas Desulphurisation) सिस्टम, पावर प्लांट से निकलने वाली गैसों में मौजूद सल्फर को कम करने का काम करता है.

अब यह नियम सिर्फ उन प्लांट्स पर लागू होगा जो 10 किलोमीटर के दायरे में हैं और जिनके पास 10 लाख से ज्यादा आबादी वाला कोई शहर है. यानी देश के करीब 79 फीसदी थर्मल पावर प्लांट अब इस सिस्टम को लगाने के लिए बाध्य नहीं होंगे.

नए नियम से बिजली कैसे सस्ती होगी?

सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, FGD सिस्टम को लगाने और चलाने में भारी खर्च होता है, जिससे बिजली की उत्पादन लागत बढ़ती थी. अब जब ज्यादातर प्लांट्स को इससे छूट दी गई है, तो इससे बिजली उत्पादन सस्ता होगा और इसका फायदा आम लोगों को मिलेगा. अनुमान है कि इससे बिजली की कीमतों में 25-30 पैसे प्रति यूनिट की कटौती हो सकती है.

किन जगहों पर अब भी लागू रहेगा FGD नियम?

सरकार ने यह भी साफ किया है कि जो पावर प्लांट ज्यादा प्रदूषण वाले इलाकों या गंभीर वायु गुणवत्ता वाले शहरों में हैं, उन पर नियम अभी भी लागू रहेगा. लेकिन ऐसे केस को अलग-अलग आधार पर देखा जाएगा.

सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB ) ने एक रिपोर्ट में बताया कि अभी देश के ज्यादातर इलाकों में सल्फर डाईऑक्साइड का स्तर नेशनल स्टैंडर्ड के भीतर ही है. इसके अलावा, IIT दिल्ली, CSIR-NEERI और NIAS जैसे संस्थानों की स्टडी में भी यही बात सामने आई कि FGD सिस्टम से कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ सकता है.
 

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