समय बदल रहा है और करीब एक दशक होने के आया है जब से म्यूचुअल फंड्स लोगों के बीच काफी लोकप्रिय निवेश का माध्यम बन गया है. 1963-64 से आरंभ होकर म्यूचुअल फंड्स करीब पांच दौर देखें हैं. वर्तमान में पांचवां दौर जारी है जो मई 2014 से माना जा रहा है. सेबी के प्रयास रंग लाने लगे और टीयर 2 और टीयर 3 शहरों में भी लोगों ने म्यूचुअल फंड में निवेश का लाभ लेना आरंभ कर दिया था. 31 मई 2014 तक म्यूचुअल फंड का AUM करीब 10 ट्रिलियन रुपये को पार कर गया था. इसके बाद दो साल के कार्यकाल में ही AUM दो गुना से ज्यादा हो गई यानि करीब 20 ट्रिलियन रुपया (20 लाख करोड़़). यह आंकड़ा अगस्त 2017 में छुआ गया और नवंबर 2020 तक यह आंकड़ा 30 ट्रिलियन रुपया को पहली बार छू गया. 31 अक्टूबर 2017 करीब 6.32 करोड़ लोगों के फोलियो रजिस्टर्ड थे और 31 अक्टूबर 2022 तक इसमें भी दोगुना से ज्यादा का उछाल आया और यह करीब 14 करोड़ के आस पास पहुंच गया.
अक्टूबर 2017 के बाद से हर महीने लगभग 12.65 लाख फोलियो हर महीने जुड़े हैं. म्यूचुअल फंड में लोगों के इस बढ़े रुझान के पीछे केवल दो कारण सबसे अहम रहे. एक SEBI द्वारा नियमों में बदलाव कर लोगों के विश्वास को बहाल करते रहने का प्रयास और दूसरा म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर्स द्वारा समय पर दिया गया सपोर्ट... इतना ही नहीं अप्रैल 2016 तक SIP खाता धारक जहां एक करोड़ पार कर गए थे वहीं, 31 अक्टूबर 2022 तक SIP खाताधारकों की संख्या करीब 6 करो़ड़ तक पहुंच गई.
जब म्यूचुअल फंड लोगों के बीच इतना मजबूत से अपनी पैठ बना रहा है तब यह जरूरी हो जाता है कि यह सभी को जान लेना चाहिए कि कोई म्यूचुअल फंड लेने से पहले उसकी पहचान कैसे की जाए.
अमूमन म्यूचुअल फंड को एक्सपर्ट ही मैनेज करते हैं. इन लोगों को फंड मैनेजर कहा जाता है. यह फंड मैनेजर यह देखते हैं कि कहां निवेश करने से निवेशकों को ज्यादा लाभ होगा यानि ज्यादा रिटर्न मिलेगा. म्यूचुअल फंड उन निवेशकों के लिए अच्छा विकल्प माना जाता है जो निवेश का जोखिम खुद उठाने में सक्षम नहीं होते. ये लोग बाजार के बारे में और कंपनियों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होने के चलते ऐसे फंड मैनेजरों की राय पर काम कर सकते हैं.
बेस्ट म्यूचुअल फंड वो होते हैं जो ज्यादा और लगातार रिटर्न देते हैं यानि निवेश करने पर लगातार बेहतर परिणाम देते हैं. ऐसे म्यूचुअल फंड चुनने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए. माना जाता है कि बेस्ट म्यूचुअल फंड पहचानने के लिए सबसे पहले इन तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए. परफॉरमेंस, रिस्क और कॉस्ट. इन तीनों के जोड़-तोड़ से एक फंड तैयार किया जाता है. इक्वीटी के लिए अलग रेशियो का अलग सेट होता है वहीं डेब्ट के लिए अलग होता है. कुछ फंड मैनेजर इसमें सबकैटेगरी पर भी स्टडी कर अपनी राय बनाते हैं.
Performance Score (प्रदर्शन स्कोर) - यह सूचना अनुपात, अप कैप्चर अनुपात, YTM आदि जैसे कई अनुपातों से बना है। यह रिटर्न उत्पन्न करने में फंड की स्थिरता को मापने में मदद करता है, बेंचमार्क के संबंध में बेहतर प्रदर्शन, बेंचमार्क को मात देने में स्थिरता और ऋण के लिए अपेक्षित रिटर्न फंड अगर परिपक्वता तक आयोजित किया जाता है.
Risk Management Score (जोखिम प्रबंधन स्कोर) - जोखिम प्रबंधन स्कोर में सॉर्टिनो, मानक विचलन, डाउन कैप्चर अनुपात, क्रेडिट रेटिंग आदि जैसे अनुपात शामिल होते हैं. यह फंड की नकारात्मक जोखिम की संभावना का आकलन करने में मदद करता है, चाहे फंड बाजार सुधार और इसकी साख के दौरान अपने नुकसान को नियंत्रित करने में सक्षम हो.
Cost Score (लागत स्कोर) यह फंड के व्यय अनुपात को ध्यान में रखता है.
हम इनमें से प्रत्येक पैरामीटर के लिए स्कोर की गणना करते हैं और एक श्रेणी के लिए इन स्कोर को सामान्य करते हैं. हम प्रत्येक प्रदर्शन स्कोर, जोखिम स्कोर और लागत स्कोर को वेटेज देते हैं और एक अंतिम स्कोर पर पहुंचते हैं. इन अंतिम अंकों का उपयोग किसी फंड की श्रेणी के भीतर रैंकिंग करने के लिए किया जाता है.
Equity Mutual Funds (इक्विटी म्युचुअल फंड)
इन फंडों का पोर्टफोलियो मुख्य रूप से इक्विटी पर केंद्रित होता है. इस प्रकार, एक निवेशक अपने इक्विटी म्यूचुअल फंड निवेश से जो रिटर्न कमाता है, वह मुख्य रूप से फंड की इक्विटी होल्डिंग्स के प्रदर्शन पर निर्भर करता है. बाजार में उतार-चढ़ाव के कारण इक्विटी में उचित मात्रा में जोखिम होता है. जोखिम बाद में इक्विटी म्यूचुअल फंड में भी परिलक्षित होता है. हालांकि, म्यूचुअल फंड के रिटर्न में उतार-चढ़ाव कुछ समय के लिए ही रहता है. इक्विटी आधारित म्युचुअल फंड का लंबे समय में रिटर्न के मामले में एक उत्कृष्ट प्रदर्शन इतिहास रहा है.
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