Keyoor Pathak Blog
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ब्लॉग: संस्कृत एक प्राचीन सेतु है
- Monday July 14, 2025
- केयूर पाठक
निश्चय ही संस्कृत दक्षिण और उत्तर के भाषाई खाई के बीच एक पुल की तरह कार्य कर सकती है. सबसे पुराने लिखित साहित्य के साथ यह भारत को जितने मजबूती से संयुक्त कर सकती है, वह सामर्थ्य अन्य भाषाएं जैसे हिंदी और अंग्रेजी में तो नहीं ही है.
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सलमान रुश्दी और ‘नाइफ’: समय से आगे का सपना
- Sunday February 23, 2025
- केयूर पाठक और धीरज कुमार
प्रख्यात लेखक सलमान रुश्दी के पर हुई जानलेवा हमले के बाद उससे उबरने के बाद का रचनात्मक परिणाम है उनकी पुस्तक ‘नाइफ’- जो मूलतः मजहबी मतान्धता और बोलने की स्वतंत्रता के सन्दर्भ में लिखी गई है.
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बिहार यात्रा डायरी: बीते कल की गूंज और आज की सच्चाई, इतिहास और संस्कृति की एक खोज
- Tuesday February 11, 2025
- केयूर पाठक
ऐतिहासिक अवशेष महज खंडहर नहीं होते. ये हमारे वर्तमान की बुनियाद हैं. दुर्भाग्य से इतिहास शेष बचे अवशेष को हम इतिहास में ही धंसते हुए देखते हैं.
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पुष्पा-2: ‘आदमी चाहे तो पूरी दुनिया की तस्वीर बदल सकता है’
- Sunday December 22, 2024
- Written by: केयूर पाठक और देबोराह दार्लियनमवई
आदमी सोच सकता है इसलिए उसका अस्तित्व है. जो जितना बड़ा सोच सकता है उसका उतना बड़ा अस्तित्व है. भौतिक अस्तित्व हमेशा चेतना या विचार के अस्तित्व के सामने छोटी सिद्ध होती दिखाई पड़ती है.
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निर्वस्त्रता को अपना अस्त्र घोषित करतीं ईरानी महिलाएं
- Sunday November 24, 2024
- केयूर पाठक
क्या हिंदुस्तान में किसी महिला के नाखून काटने पर या बाल काटने पर यहां के समाज और सत्ता को डर लग सकता है? निश्चय ही यह सवाल ही मजाकिया लगता है! यहां ऐसी घटनाएं खबरों में आकर गायब हो जाएंगी, लोग इन बातों को हंसी-मजाक में उड़ा देंगे. नाख़ून काटने और बाल काटने में कोई अंतर नहीं. दोनों ही शरीर के अतिरिक्त हिस्से हैं जिसकी कटाई छंटाई अपने मनमुताबिक की जाती है. लेकिन यह मजाकिया लगने वाली बातें भी बड़े विद्रोह का माध्यम बन सकती है. अगर महिलाएं बाल काटकर प्रतिरोध कर रही हैं तो इससे समझा जा सकता है कि मजहबी कानूनों से संचालित देशों में इक्कीसवीं सदी में महिलाओं की हैसियत क्या है! दासता जितनी मजबूत होती है, प्रतिरोध के तरीके उतने छोटे और मजाकिया लगते हैं. ईरान की महिलाओं का विद्रोह उसकी दासता की चरम स्थिति को बताता है, इसलिए वहां महिलाओं के विरोध के तरीके भी ऐसे ही हैं.
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“उगअ हे सूरज देव, अरग के बेर”: मानवीय संवेदनाओं और सरोकारों की महान सरगम थीं शारदा सिन्हा
- Wednesday November 6, 2024
- केयूर पाठक
अगर पूछा जाए कि पूरी दुनिया में विचरते हुए बिहारियों को कौन सी एक चीज बांधे रखती है? जवाब होगा- छठ. यह पर्व महज पर्व ही नहीं, बल्कि वह सांस्कृतिक धारा है जो बिहार को सदियों के संताप से मुक्त करती आ रही है. और कोई भी सांस्कृतिक धारा अपने शीर्ष तक नहीं पहुंचती जब तक उसमें संगीतमय प्रवाह नहीं हो, शारदा सिन्हा के रूप में यहां एक ऐसी गाथाई गायिका रही जिन्होंने अपने गीतों से छठ को पूरी दुनिया में लोकप्रिय बनाया. इनके गीतों ने छठ को वह संवेदनात्मक स्वर दिया जिसे अब तक न किसी ने दिया था और शायद कभी दिया जाएगा.
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'Joker' से 'Joker: Folie à Deux' : विध्वंसक-सृजनशीलता की पुनर्प्रस्तुति
- Tuesday October 1, 2024
- केयूर पाठक
जब रचनात्मकता प्रतिबंधित हो जाती है, तो वहां फिर विध्वंस को सृजनशीलता की श्रेणी में रख दिया जाता है. 'Joker: Folie à Deux' उसी विध्वंसक-सृजनशीलता की पुनर्प्रस्तुति होगी.
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जोगीरा सारारारा : भारतीय लोकतंत्र का प्रतिनिधि पर्व
- Saturday March 23, 2024
- केयूर पाठक
ऐसा लगता है कि भारतीय लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व अगर कोई त्योहार सबसे अधिक करता है, तो वह होली है. यह भारत की विविधता को स्वीकारने का बड़ा उत्सव है. अलग-अलग रंग, सब मिलकर एक.
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स्मॉल इज ब्यूटीफुल : भारत को स्मार्ट गाँवों की भी जरूरत
- Sunday August 6, 2023
- केयूर पाठक और देबोराह दार्लियनमवई
गाँवों को मजबूत कीजिये. भारत को स्मार्ट सिटिज की जरूरत नहीं, भारत को स्मार्ट गाँवों की जरूरत है. "थिंक बिग" से जीवन छोटा हो जाता है, ये बात इन मजदूरों को मालूम है, लेकिन सत्ता को नहीं.
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मानवता जब कराहती है तो नदियां भी उदास हो जाती हैं
- Sunday July 30, 2023
- केयूर पाठक
मैं मन ही मन भूपेन हजारिका के गीत गुनगुनाने लगा- “गंगा तू बहती क्यों है रे...”. मैंने गंगा से बात करना चाहा, मैंने जमुना की तरफ भी देखा. लेकिन संगम में मुझे प्रलयंकारी चुप्पी ही सुनाई दी- यह चुप्पी संस्कृतिविहीन चुप्पी थी.
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US सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से आती है अमेरिकी समाज में भीतर तक धंसे नस्लवाद की बू...
- Tuesday July 4, 2023
- केयूर पाठक
पश्चिमी देशों के लिए यह अनिवार्य दायित्व था कि वह पश्चिम में नस्लीय विविधता को प्रोत्साहित करें, ताकि अतीत में उसके किये गए पापों के लिए उन्हें माफ़ किया जा सके. लेकिन...!
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फ़ास्ट एंड फ़्युरिऔस की संस्कृति और सड़क दुर्घटना
- Saturday May 27, 2023
- केयूर पाठक
भारत में 2021 में जितनी भी सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं उनमें से लगभग 60 प्रतिशत गाड़ियों को निर्धारित गति से तेज चलाने के कारण ही हुई है. गति जीवन की गति को ख़तम कर दे रही है.
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PS2: ऐतिहासिक विषयों पर बनी फिल्मों को इतिहास समझने की भूल ना करें
- Wednesday May 3, 2023
- केयूर पाठक
इतिहास का विश्लेषण जल्दबाजी में नहीं किया जाना चाहिए. यह गंभीर और जोखिम भरा होता है. सिनेमा लोकप्रियता से प्रेरित होते हैं. ऐसे में सिनेमा में ऐसी जल्दबाजी ऐतिहासिक विकृति के कारण बनते हैं- जैसा कि अनगिनत पूर्व की हिंदी फिल्मों में देखा गया. फिर भी मणिरत्नम का प्रयास सराहनीय है.
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शिक्षा में न मूल्यों का आधार, न शिक्षा के बाद रोज़गार, स्टूडेंट आखिर जाए तो कहां जाए?
- Tuesday April 18, 2023
- केयूर पाठक एवं सी. सतीश
छात्रों का उत्पीड़न उसके प्रारंभिक समय से ही शुरू हो जाता है. निजी स्कूलों की लूट से त्रस्त अभिभावक अपने बच्चों से अपनी लागत का परिणाम चाहता है. परिणाम न मिलने पर अपनी खीझ किसी न किसी रूप में बच्चों से भी निकालता है.
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ब्लॉग: संस्कृत एक प्राचीन सेतु है
- Monday July 14, 2025
- केयूर पाठक
निश्चय ही संस्कृत दक्षिण और उत्तर के भाषाई खाई के बीच एक पुल की तरह कार्य कर सकती है. सबसे पुराने लिखित साहित्य के साथ यह भारत को जितने मजबूती से संयुक्त कर सकती है, वह सामर्थ्य अन्य भाषाएं जैसे हिंदी और अंग्रेजी में तो नहीं ही है.
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सलमान रुश्दी और ‘नाइफ’: समय से आगे का सपना
- Sunday February 23, 2025
- केयूर पाठक और धीरज कुमार
प्रख्यात लेखक सलमान रुश्दी के पर हुई जानलेवा हमले के बाद उससे उबरने के बाद का रचनात्मक परिणाम है उनकी पुस्तक ‘नाइफ’- जो मूलतः मजहबी मतान्धता और बोलने की स्वतंत्रता के सन्दर्भ में लिखी गई है.
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बिहार यात्रा डायरी: बीते कल की गूंज और आज की सच्चाई, इतिहास और संस्कृति की एक खोज
- Tuesday February 11, 2025
- केयूर पाठक
ऐतिहासिक अवशेष महज खंडहर नहीं होते. ये हमारे वर्तमान की बुनियाद हैं. दुर्भाग्य से इतिहास शेष बचे अवशेष को हम इतिहास में ही धंसते हुए देखते हैं.
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पुष्पा-2: ‘आदमी चाहे तो पूरी दुनिया की तस्वीर बदल सकता है’
- Sunday December 22, 2024
- Written by: केयूर पाठक और देबोराह दार्लियनमवई
आदमी सोच सकता है इसलिए उसका अस्तित्व है. जो जितना बड़ा सोच सकता है उसका उतना बड़ा अस्तित्व है. भौतिक अस्तित्व हमेशा चेतना या विचार के अस्तित्व के सामने छोटी सिद्ध होती दिखाई पड़ती है.
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निर्वस्त्रता को अपना अस्त्र घोषित करतीं ईरानी महिलाएं
- Sunday November 24, 2024
- केयूर पाठक
क्या हिंदुस्तान में किसी महिला के नाखून काटने पर या बाल काटने पर यहां के समाज और सत्ता को डर लग सकता है? निश्चय ही यह सवाल ही मजाकिया लगता है! यहां ऐसी घटनाएं खबरों में आकर गायब हो जाएंगी, लोग इन बातों को हंसी-मजाक में उड़ा देंगे. नाख़ून काटने और बाल काटने में कोई अंतर नहीं. दोनों ही शरीर के अतिरिक्त हिस्से हैं जिसकी कटाई छंटाई अपने मनमुताबिक की जाती है. लेकिन यह मजाकिया लगने वाली बातें भी बड़े विद्रोह का माध्यम बन सकती है. अगर महिलाएं बाल काटकर प्रतिरोध कर रही हैं तो इससे समझा जा सकता है कि मजहबी कानूनों से संचालित देशों में इक्कीसवीं सदी में महिलाओं की हैसियत क्या है! दासता जितनी मजबूत होती है, प्रतिरोध के तरीके उतने छोटे और मजाकिया लगते हैं. ईरान की महिलाओं का विद्रोह उसकी दासता की चरम स्थिति को बताता है, इसलिए वहां महिलाओं के विरोध के तरीके भी ऐसे ही हैं.
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“उगअ हे सूरज देव, अरग के बेर”: मानवीय संवेदनाओं और सरोकारों की महान सरगम थीं शारदा सिन्हा
- Wednesday November 6, 2024
- केयूर पाठक
अगर पूछा जाए कि पूरी दुनिया में विचरते हुए बिहारियों को कौन सी एक चीज बांधे रखती है? जवाब होगा- छठ. यह पर्व महज पर्व ही नहीं, बल्कि वह सांस्कृतिक धारा है जो बिहार को सदियों के संताप से मुक्त करती आ रही है. और कोई भी सांस्कृतिक धारा अपने शीर्ष तक नहीं पहुंचती जब तक उसमें संगीतमय प्रवाह नहीं हो, शारदा सिन्हा के रूप में यहां एक ऐसी गाथाई गायिका रही जिन्होंने अपने गीतों से छठ को पूरी दुनिया में लोकप्रिय बनाया. इनके गीतों ने छठ को वह संवेदनात्मक स्वर दिया जिसे अब तक न किसी ने दिया था और शायद कभी दिया जाएगा.
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'Joker' से 'Joker: Folie à Deux' : विध्वंसक-सृजनशीलता की पुनर्प्रस्तुति
- Tuesday October 1, 2024
- केयूर पाठक
जब रचनात्मकता प्रतिबंधित हो जाती है, तो वहां फिर विध्वंस को सृजनशीलता की श्रेणी में रख दिया जाता है. 'Joker: Folie à Deux' उसी विध्वंसक-सृजनशीलता की पुनर्प्रस्तुति होगी.
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जोगीरा सारारारा : भारतीय लोकतंत्र का प्रतिनिधि पर्व
- Saturday March 23, 2024
- केयूर पाठक
ऐसा लगता है कि भारतीय लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व अगर कोई त्योहार सबसे अधिक करता है, तो वह होली है. यह भारत की विविधता को स्वीकारने का बड़ा उत्सव है. अलग-अलग रंग, सब मिलकर एक.
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स्मॉल इज ब्यूटीफुल : भारत को स्मार्ट गाँवों की भी जरूरत
- Sunday August 6, 2023
- केयूर पाठक और देबोराह दार्लियनमवई
गाँवों को मजबूत कीजिये. भारत को स्मार्ट सिटिज की जरूरत नहीं, भारत को स्मार्ट गाँवों की जरूरत है. "थिंक बिग" से जीवन छोटा हो जाता है, ये बात इन मजदूरों को मालूम है, लेकिन सत्ता को नहीं.
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मानवता जब कराहती है तो नदियां भी उदास हो जाती हैं
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मैं मन ही मन भूपेन हजारिका के गीत गुनगुनाने लगा- “गंगा तू बहती क्यों है रे...”. मैंने गंगा से बात करना चाहा, मैंने जमुना की तरफ भी देखा. लेकिन संगम में मुझे प्रलयंकारी चुप्पी ही सुनाई दी- यह चुप्पी संस्कृतिविहीन चुप्पी थी.
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US सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से आती है अमेरिकी समाज में भीतर तक धंसे नस्लवाद की बू...
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पश्चिमी देशों के लिए यह अनिवार्य दायित्व था कि वह पश्चिम में नस्लीय विविधता को प्रोत्साहित करें, ताकि अतीत में उसके किये गए पापों के लिए उन्हें माफ़ किया जा सके. लेकिन...!
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फ़ास्ट एंड फ़्युरिऔस की संस्कृति और सड़क दुर्घटना
- Saturday May 27, 2023
- केयूर पाठक
भारत में 2021 में जितनी भी सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं उनमें से लगभग 60 प्रतिशत गाड़ियों को निर्धारित गति से तेज चलाने के कारण ही हुई है. गति जीवन की गति को ख़तम कर दे रही है.
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PS2: ऐतिहासिक विषयों पर बनी फिल्मों को इतिहास समझने की भूल ना करें
- Wednesday May 3, 2023
- केयूर पाठक
इतिहास का विश्लेषण जल्दबाजी में नहीं किया जाना चाहिए. यह गंभीर और जोखिम भरा होता है. सिनेमा लोकप्रियता से प्रेरित होते हैं. ऐसे में सिनेमा में ऐसी जल्दबाजी ऐतिहासिक विकृति के कारण बनते हैं- जैसा कि अनगिनत पूर्व की हिंदी फिल्मों में देखा गया. फिर भी मणिरत्नम का प्रयास सराहनीय है.
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शिक्षा में न मूल्यों का आधार, न शिक्षा के बाद रोज़गार, स्टूडेंट आखिर जाए तो कहां जाए?
- Tuesday April 18, 2023
- केयूर पाठक एवं सी. सतीश
छात्रों का उत्पीड़न उसके प्रारंभिक समय से ही शुरू हो जाता है. निजी स्कूलों की लूट से त्रस्त अभिभावक अपने बच्चों से अपनी लागत का परिणाम चाहता है. परिणाम न मिलने पर अपनी खीझ किसी न किसी रूप में बच्चों से भी निकालता है.
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