'Amitesh kumar'

- 9 न्यूज़ रिजल्ट्स
  • India | अमितेश कुमार |बुधवार जून 6, 2018 07:49 PM IST
    उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक कहते हैं कि जब हिंदी के पाठक थे, अस्सी और नब्बे का दशक था, पल्प फिक्शन का बाजार था, हिंदी साहित्य जिसे गंभीर साहित्य कहते हैं उसके प्रकाशकों ने या पल्प के प्रकाशकों ने उनलोगो ने कोई ऐसी कोशिश नहीं कि हिंदी साहित्य का बाजार बने.
  • Blogs | अमितेश कुमार |शुक्रवार सितम्बर 22, 2017 12:56 PM IST
    क्या दिल्ली के रंगकर्मी दिल्ली सरकार द्वारा तय किए विषयों पर नाटक करने के लिए तैयार हैं? क्या उन्हें नहीं लगता कि एक कलाकार होने के नाते अपने समय और समाज से कैसे जुड़ना चाहते हैं और किन विषयों के जरिए अभिव्यक्ति करना चाहते हैं यह तय करने का हक उनका है? और यह तय करने में वह सरकारी बाबूओं और मंत्रियों से अधिक सक्षम हैं? या दिल्ली के रंगकर्मी सरकार के हाथ की कठपुतली बनने के लिए तैयार हैं?
  • Delhi | Reported by: अमितेश कुमार |रविवार सितम्बर 10, 2017 03:56 PM IST
    के. आसिफ़ की ‘मुग़ल-ए-आज़म’ को बन कर प्रदर्शित होने में एक दशक लग गया था लेकिन उसके बाद हिंदी सिनेमा में यह एक प्रतिमान की तरह स्थापित भी हुआ.
  • Blogs | अमितेश कुमार |मंगलवार अगस्त 1, 2017 12:20 PM IST
    झुके हुए कंधों से सिपाही समूह में ट्रेन की तरफ बढ़ रहे हैं, रास्ते में एक बूढ़ा सबको ब्रेड बांटता और शुक्रिया कहता है. एक सिपाही ठिठक कर पूछता है ‘लेकिन हम तो लड़े ही नहीं, हम केवल बच कर आए हैं’, बूढ़ा कहता है ‘बच के आना भी जीत है’, वह बूढ़ा जो अंधा भी है अपने हाथों से उसका चेहरा छूता है. क्रिस्टोफर नोलन की हालिया फिल्म ‘डनकर्क’ में यह दृश्य सिनेमा के अंत में आता है.
  • Blogs | अमितेश कुमार |मंगलवार फ़रवरी 21, 2017 12:47 PM IST
    ये वो दिन थे जब ‘नंदन’, ‘चंपक’ और ‘नन्हें सम्राट’ पढ़ने में उम्र विद्रोह करने लगा था. ‘सुमन सौरभ’ और ‘विज्ञान प्रगति’ के दिन आ गए थे जिसे पढ़ने के बाद लगता था कि कुछ तो बड़े होने लगे हैं. ऐसे ही दिनों में मुझे गांव में विमल भैया की आलमारी मिली. इससे होकर एक ऐसी दुनिया की खिड़की खुली जहां रोमांच था, दिमागी कसरत थी और उत्सुकता थी. ऊपर कोने से मोड़े गए पन्ने जो बुकमार्क का काम करते थे वापस बुलाते रहते थे कि यहां से आगे बढ़कर क्लाइमेक्स तक पहुंचो. ये आलमारी बड़की मां के कमरे में थी, जहां कोई यह कहने नहीं आता था कि ‘इसको पढ़ने की तुम्हारी उम्र नहीं’. आलमारी की तरतीब जब तक न बिगड़े, भैया के भी बिगड़ने की संभावना नहीं थी. एक दिन यहीं मिले वेद प्रकाश शर्मा और ‘जिगर का टुकड़ा’ एक मोटा सा खुरदरे पन्ने वाला उपन्यास. बाद में पता चला था कि इसे लुगदी उपन्यास कहते हैं यानि पल्प फिक्शन.
  • India | Written by: अमितेश कुमार, Edited by: श्रीराम शर्मा |सोमवार फ़रवरी 6, 2017 11:50 AM IST
    चेखव स्टुडियो थियेटर की प्रस्तुति ‘चेखव चायका’ के लिए रानावि परिसर में ऐसा माहौल और सेट बनाया गया जो आभास दे कि नाटक चेखव के एतिहासिक एस्टेट में हो रहा है, जहाँ चेखव रहते थे और रचनाकर्म करते थे. दरअसल चेखव स्टुडियो थियेटर रूस का नाट्य समूह है जो मूल रूप से वहां रंगकर्म करता है, जहां चेखव रहते थे और उनकी स्मृति में वहां म्युजियम बना दिया गया है.
  • India | Written by: अमितेश कुमार, Edited by: श्रीराम शर्मा |शनिवार जनवरी 28, 2017 06:58 AM IST
    एक फरवरी को कावलाम नारायण पणिक्कर निर्देशित नाटक ‘उत्तररामचरित’ के मंचन के साथ उन्नीसवां भारत रंग महोत्सव (भारंगम) शुरु होकर 21 फरवरी को कलकत्ता क्वायर की प्रस्तुति से समापन होगा.
  • Blogs | अमितेश कुमार |बुधवार दिसम्बर 21, 2016 07:06 PM IST
    अंग्रेजी साम्राज्य का सूरज तो डूब गया लेकिन शेक्सपियर के रूप में एक ऐसा प्रकाश दे गया जिसकी चमक विश्व की सभी भाषाओं में और विशेषकर उन भाषाओं के रंगमंच पर है. हर अभिनेता, हर निर्देशक जीवन में कम से कम एक बार शेक्सपियर के किसी नाटक का हिस्सा बनाना चाहता है या बन चुका होता है.
  • India | अमितेश कुमार |शुक्रवार अक्टूबर 7, 2016 02:32 PM IST
    भारतीय रंगमंच के अप्रतिम निर्देशक ओझा हेस्नाम कन्हाईलाल का गुरुवार दोपहर निधन हो गया. वे फेफड़े के कैंसर से पीड़ित थे. इसी वर्ष उन्हें पद्म भूषण सम्मान दिया गया था. उन्हें पद्म श्री (2003) और संगीत नाटक अकादमी अवार्ड (1985) भी मिल चुका है. वे संगीत नाटक अकादमी के फेलो भी थे.
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