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This Article is From Feb 06, 2017

चेखव के परिसर को 'भारत रंग महोत्सव' के लिए किया गया साकार

चेखव के परिसर को 'भारत रंग महोत्सव' के लिए किया गया साकार
निर्देशिक व्लादिमिर ग्रेगोरेविच बैशर की यह प्रस्तुति यथार्थवादी मुहावरे में थी
नई दिल्ली: चेखव स्टुडियो थियेटर की प्रस्तुति ‘चेखव चायका’ के लिए रानावि परिसर में ऐसा माहौल और सेट बनाया गया जो आभास दे कि नाटक चेखव के एतिहासिक एस्टेट में हो रहा है, जहाँ चेखव रहते थे और रचनाकर्म करते थे. दरअसल चेखव स्टुडियो थियेटर रूस का नाट्य समूह है जो मूल रूप से वहां रंगकर्म करता है, जहां चेखव रहते थे और उनकी स्मृति में वहां म्युजियम बना दिया गया है.

यह नाटय दल केवल चेखव की कृतियों का ही मंचन करता है. ‘चायका’यानी ‘सीगल’चेखव का प्रसिद्ध नाटक है जिसके मंचन के लिए इस नाटक के निर्देशक ने चेखव के पूरे एस्टेट का मंच स्थल के रूप में उपयोग किया था. शुरूआती दृश्य झील के पास, बाद के दो दृश्य खेल के मैदान और पार्क में और अंतिम दृश्य म्यूजियम के भीतर.

भारत रंग महोत्सव में प्रस्तुति के लिए रानावि के भीतरी लॉन की इस तरह समायोजन किया गया, जिससे पहला हिस्सा झील का किनारा और दूसरा खेल का मैदान और पार्क लगे. और अभिकल्प के भीतर म्यूजियम का दृश्य लगाया गया. नाटक में दृश्य बदलने के साथ दर्शकों ने भी यात्रा की और वे तीन मंच स्थल पर बैठे. इससे एक यात्रा बनी जो पात्रों की भी थी और दर्शकों की. दर्शकों ने इस पूरे अनुभव का आनंद उठाया.


कौन थे चेखव
 एंटन पाब्लोविच चेखव रूस के सर्वकालिक महान नाटककार और कहानीकार थे. उन्होंने अनेकों कहानियों के साथ थ्री सिस्टर्स, द चेरी आर्चर्ड और सीगल जैसे प्रसिद्ध नाटक लिखे जिसका दुनियाभर की भाषाओं में मंचन किया जाता रहता है.

सीगल उनका एक प्रसिद्ध नाटक है जिसमें मानवीय संबंधों के भीतर के खालीपन, असंतोष और इनसे उपजी पीड़ा को चित्रित किया गया है. नाटक में प्रेम त्रिकोणों की शृंखला है. प्रत्येक पात्र असुरिक्षत और असंतुष्ट है. नाटक के चार मुख्य पात्रों के बीच बड़ा नाटकीय और रोमांटिक संघर्ष दिखलाया गया है. ये चार पात्र हैं- एक कहानी लेखक, एक अबोध बालिक, अभिनय करना छोड़ चुकी एक अभिनेत्री और उसका नाटककार पुत्र. 1898 में इस नाटक का मास्को में पहली बार प्रदर्शन हुआ था, जिसका निर्देशन किया था, विश्व प्रसिद्ध नाट्य-निर्देशक कंस्तान्तिन स्तनिस्लाव्स्की ने.    


कैसी थी यह प्रस्तुति
निर्देशिक व्लादिमिर ग्रेगोरेविच बैशर की यह प्रस्तुति यथार्थवादी मुहावरे में थी लेकिन इसके यथार्थवाद को नाट्य युक्तियों से तोड़ा गया था. निर्देशक सूत्रधार की तरह दृश्यों के बीच में आकर दृश्य समझाते रहे. अभिनेता उम्दा थे. स्पेस के खुले वातावरण का उन्होंने अच्छा इस्तेमाल किया. बाहर के खुले स्पेस में भी वे चरित्र के आंतरिक द्वन्द्व और घुटन को सहजता से सामने ले आए. नाटक में निर्देशक ने चौथे अंक को समकालीन सेटअप में रखा है.

नाटक के मूल कथानक के विपरीत चौथे अंक को एक सौ बीस साल की दुनिया में ले आया गया है. यहां नाटक घटित नहीं होता बल्कि अभिनेता नाटक की घटनाओं पर टिप्पणी करते हैं. प्रस्तुति ने अपना प्रभाव छोड़ा इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि तीन घंटे की रूसी प्रस्तुति जिसमें दो मध्यांतर था में दर्शक टिके रहे और प्रस्तुति का आनंद लिया.

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