हेस्नाम कन्हाईलाल (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
भारतीय रंगमंच के अप्रतिम निर्देशक ओझा हेस्नाम कन्हाईलाल का गुरुवार दोपहर निधन हो गया. वे फेफड़े के कैंसर से पीड़ित थे. इसी वर्ष उन्हें पद्म भूषण सम्मान दिया गया था. उन्हें पद्म श्री (2003) और संगीत नाटक अकादमी अवार्ड (1985) भी मिल चुका है. वे संगीत नाटक अकादमी के फेलो भी थे.
सावित्री हेस्नाम उनकी पत्नी हैं जो विख्यात रंगमंच अभिनेत्री हैं और उनके पुत्र हेस्नाम तोम्बा उभरते हुए निर्देशक हैं. मणिपुर के कन्हाईलाल ने भारतीय रंगमंच की विविधता को समृद्ध किया. उनकी रंगभाषा में पुर्वोत्तर का शरीर, मानस और वहां की लोक परंपराओं के साथ वहां की जनता का संघर्ष और प्रतिरोध भी शामिल है.
उनकी रंगभाषा में पूर्वोत्तर की ध्वनियों का खेल भी था जो उसे गहराई देता था. उनकी प्रस्तुतियां देश विदेश में मंचित हुईं और सराही गईं. कन्हाईलाल ने मणिपुर में कलाक्षेत्र रंगमंडल की स्थापना की थी और इसके साथ वे काम करते रहे. उन्होंने देश विदेश की विभिन्न संस्थाओं में अभिनेतों को प्रशिक्षण भी दिया. ‘मेमायर्स आफ अफ्रीका’, ‘कर्ण’, ‘पेबेट’, ‘डाकघर’, ‘अचिन गायनेर गाथा’, ‘द्रोपदी’ इत्यादि उनकी चर्चित नाट्य प्रस्तुतियां हैं.
महाश्वेता देवी की कहानी पर आधारित उनकी प्रस्तुति 'द्रौपदी' अत्यंत प्रशंसित और विवादित रही. इसमें उनकी पत्नी सावित्री का बेमिसाल अभिनय था. प्रस्तुति के बीच एक ऐसा क्षण आता है जब वे मंच पर अनावृत होती हैं. कहा जाता है कि मनोरमा देवी के रेप और अपहरण के खिलाफ महिलाओं ने नंगे होकर आसाम राइफल्स के विरोध में जो प्रदर्शन किया था उसकी प्रेरणा इस प्रस्तुति से ही मिली थी. उनके निधन से भारतीय रंगमंच का एक युगांत हो गया है.
सावित्री हेस्नाम उनकी पत्नी हैं जो विख्यात रंगमंच अभिनेत्री हैं और उनके पुत्र हेस्नाम तोम्बा उभरते हुए निर्देशक हैं. मणिपुर के कन्हाईलाल ने भारतीय रंगमंच की विविधता को समृद्ध किया. उनकी रंगभाषा में पुर्वोत्तर का शरीर, मानस और वहां की लोक परंपराओं के साथ वहां की जनता का संघर्ष और प्रतिरोध भी शामिल है.
उनकी रंगभाषा में पूर्वोत्तर की ध्वनियों का खेल भी था जो उसे गहराई देता था. उनकी प्रस्तुतियां देश विदेश में मंचित हुईं और सराही गईं. कन्हाईलाल ने मणिपुर में कलाक्षेत्र रंगमंडल की स्थापना की थी और इसके साथ वे काम करते रहे. उन्होंने देश विदेश की विभिन्न संस्थाओं में अभिनेतों को प्रशिक्षण भी दिया. ‘मेमायर्स आफ अफ्रीका’, ‘कर्ण’, ‘पेबेट’, ‘डाकघर’, ‘अचिन गायनेर गाथा’, ‘द्रोपदी’ इत्यादि उनकी चर्चित नाट्य प्रस्तुतियां हैं.
महाश्वेता देवी की कहानी पर आधारित उनकी प्रस्तुति 'द्रौपदी' अत्यंत प्रशंसित और विवादित रही. इसमें उनकी पत्नी सावित्री का बेमिसाल अभिनय था. प्रस्तुति के बीच एक ऐसा क्षण आता है जब वे मंच पर अनावृत होती हैं. कहा जाता है कि मनोरमा देवी के रेप और अपहरण के खिलाफ महिलाओं ने नंगे होकर आसाम राइफल्स के विरोध में जो प्रदर्शन किया था उसकी प्रेरणा इस प्रस्तुति से ही मिली थी. उनके निधन से भारतीय रंगमंच का एक युगांत हो गया है.
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