लेखक होना भी एक ज़िद से गुज़रने के जैसा है. कुछ भी हो जाए लिखते रहना है. साहित्य और लुगदी साहित्य को लेकर बहस में ऐसी कोई बात नहीं बची है जिसे अभी कहने की ज़रूरत है मगर इस बहस से दूर कोई लिखता रहा, हमारे लिए ये भी महत्वपूर्ण है. ओम प्रकाश शर्मा, वेद प्रकाश कांबोज, सुरेंद मोहन पाठक और वेद प्रकाश शर्मा की किताबें खूब बकी. रेलवे स्टेशन पर बिकने वाली किताबों के किंग कहलाए और लोगों ने भले ही छिपा कर पढ़ा मगर पढ़ा ज़रूर.