डीटीसी के बस कंडक्टर के बेटे से देश के खेलों के इतिहास में लगातार दो ओलिंपिक में व्यक्तिगत पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने सुशील कुमार ने अपने जीवन में लंबा सफर तय किया है।
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नई दिल्ली:
डीटीसी के बस कंडक्टर के बेटे से देश के खेलों के इतिहास में लगातार दो ओलिंपिक में व्यक्तिगत पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने सुशील कुमार ने अपने जीवन में लंबा सफर तय किया है।
राजधानी के बाहरी हिस्से में बसे एक गांव बापरोला के रहने वाले सुशील ने अपना नाम इतिहास में दर्ज करा लिया जब उन्होंने लंदन ओलिंपिक की कुश्ती प्रतियोगिता के 66 किग्रा फ्रीस्टाइल वर्ग में रजत पदक जीता। इससे पूर्व चार साल पहले उन्होंने बीजिंग खेलों में कांस्य पदक जीता था।
स्वर्ण पदक मुकाबले में जापान के पहलवान तत्सुहीरो योनेमित्सु के हाथों 1-3 की शिकस्त से पहले सुशील अजेय नजर आ रहे थे। यह 29 वर्षीय पहलवान हालांकि रजत पदक के बावजूद अपना नाम भारतीय खेल के इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखवाने में सफल रहा।
बीजिंग में कांस्य पदक ने जहां देश को सुशील की प्रतिभा से अवगत कराया था वहीं लंदन में रजत पदक ने साबित कर दिया कि वह सर्वश्रेष्ठ पहलवानों में से एक हैं।
राजधानी के बाहरी हिस्से में बसे एक गांव बापरोला के रहने वाले सुशील ने अपना नाम इतिहास में दर्ज करा लिया जब उन्होंने लंदन ओलिंपिक की कुश्ती प्रतियोगिता के 66 किग्रा फ्रीस्टाइल वर्ग में रजत पदक जीता। इससे पूर्व चार साल पहले उन्होंने बीजिंग खेलों में कांस्य पदक जीता था।
स्वर्ण पदक मुकाबले में जापान के पहलवान तत्सुहीरो योनेमित्सु के हाथों 1-3 की शिकस्त से पहले सुशील अजेय नजर आ रहे थे। यह 29 वर्षीय पहलवान हालांकि रजत पदक के बावजूद अपना नाम भारतीय खेल के इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखवाने में सफल रहा।
बीजिंग में कांस्य पदक ने जहां देश को सुशील की प्रतिभा से अवगत कराया था वहीं लंदन में रजत पदक ने साबित कर दिया कि वह सर्वश्रेष्ठ पहलवानों में से एक हैं।
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