टेनिस के प्रति फेडरर का समर्पण, प्रतिबद्धता देखने लायक है, अनुशासन उनके कद को और बढ़ाता है... पॉवर गेम के दौर में उनका खेल आज भी खास नफ़ासत लिए हुए दिखता है...
                                            
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                                                                                नई दिल्ली: 
                                        यह पिछले साल की बात है, जब रोजर फेडरर अपने पसंदीदा ऑल इंग्लैण्ड क्लब (विम्बल्डन के नाम से कहीं ज़्यादा मशहूर) के टेनिस कोर्ट में हो रहे क्वार्टर फाइनल मुकाबले में विलफ्रेड सोंगा के हाथों हार गए थे... ऐसा पहली बार हुआ था कि फेडरर किसी ग्रैंड स्लैम मुकाबले में पहले दो सेट जीतने के बाद भी मैच नहीं जीत पाए... वैसे यह हाल विम्बल्डन ही नहीं, दूसरे ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंटों में भी दिखाई दे रहा था... दुनिया में सबसे ज़्यादा ग्रैंड स्लैम खिताब जीत चुके फेडरर बीते ढाई साल से ग्रैंड स्लैम खिताब के लिए तरस रहे थे... नोवाक जोकोविच और राफेल नडाल के सामने वह नंबर 3 से आगे नहीं बढ़ पा रहे थे... मुझे भी लग रहा था, कोई कितना भी बड़ा सितारा क्यों न हो, एक दिन ऐसा आता है, जब उसके दिन लदने लगते हैं... और, ऐसा मैं ही नहीं, मेरे जैसे तमाम लोग सोचने लगे थे...
लेकिन शायद फेडरर किसी दूसरी मिट्टी के बने हुए हैं... उन्होंने पिछली बार कहा था, मैं एक बार फिर वापस आऊंगा... और उसके बावजूद जब इस साल भी वह विम्बल्डन पहुंचे तो किसी को अंदाज़ा नहीं था कि वह सबको झुठला देंगे... नडाल की अप्रत्याशित हार ने उनकी मुश्किल कम ज़रूर कर दी थी, परन्तु संशय बरकरार था... फिर सेमीफाइनल में उनकी टक्कर नोवाक जोकोविच जैसे तेजतर्रार खिलाड़ी से हुई, और उन्होंने जिस सहज अंदाज में उसे हराया, उससे लगा कि फॉर्म आती-जाती रहती है, क्लास हमेशा बना रहता है... और फिर जोकोविच के बाद एंडी मरे पर भी फेडरर ने रहम नहीं किया, और इतिहास रच डाला... फाइनल के बाद फेडरर और मरे, दोनों की आंखों में आंसू थे... लेकिन फेडरर के आंसू जीत के नहीं थे... वह दरअसल, उस भरोसे का छलकना था, जिसके बूते वह ढाई साल से हर ग्रैंड स्लैम खेलने पहुंच रहे थे... तमाम आलोचनाओं के बाद भी न उनका भरोसा डगमगाया था, न उनकी प्रतिबद्धता में कोई कमी आई थी... दूसरी तरफ, मरे के ग़म-छलकाते आंसुओं में भी कहीं न कहीं अपने जीनियस साथी के भरोसे का सम्मान छिपा होगा ही...
फेडरर विम्बल्डन का पुरुष एकल खिताब सातवीं बार जीते हैं... पीट सम्प्रास उनके आदर्श रहे हैं, और अब विम्बल्डन खिताब जीतने के मामले में फेडरर उनकी बराबरी पर पहुंच गए हैं... इतना ही नहीं, इस कामयाबी ने उन्हें एक बार फिर दुनिया का नंबर वन खिलाड़ी बना दिया है... 286 सप्ताह तक (लगातार नहीं) नंबर वन खिलाड़ी रहने के सम्प्रास के एक ओर रिकॉर्ड की बराबरी भी उन्होंने कर ली है... वैसे अब उनके ग्रैंड स्लैम खिताबों की संख्या 17 हो चुकी है, जो एक विश्वरिकॉर्ड है, और इतने खिताब कोई दूसरा जीत पाएगा, यह निकट भविष्य में संभव नहीं दिखता...
टेनिस के प्रति फेडरर का समर्पण और प्रतिबद्धता देखने लायक होती है... खेल के प्रति उनका अनुशासन उनके कद को और बढ़ा देता है... वह किसी संगीतकार की तरह टेनिस की एक खास धुन विकसित कर चुके हैं... आज, जब आधुनिक टेनिस कोर्ट पॉवर गेम का अखाड़ा बनता जा रहा है, उनके खेल में आज भी खास नफ़ासत देखने को मिलती है, भले ही वह तूफानी सर्विस हो या एक हाथ से सधा हुआ बैक-हैण्ड रिटर्न... यही वजह है कि फेडरर अगर हार भी रहे हों तो उनका खेल मंत्रमुग्ध कर देता है... उनकी गलतियां भी दूसरों के विनर शॉट से ज़्यादा परफेक्ट लगती हैं... यही वजह है कि 30 साल की उम्र बीतने के बाद भी वह युवाओं के मुकाबले पूरे दमखम के साथ मैदान में मौजूद हैं... आज के दौर में एक दशक तक शीर्ष पर बने रहना कोई हंसी-खेल नहीं है...
आप उनकी तुलना सचिन तेंदुलकर से भी कर सकते हैं, जिनके लिए हासिल करने को कुछ भी बाकी नहीं... लेकिन खेल के प्रति पैशन में कोई कमी नहीं आई... हालांकि फेडरर के मुकाबले सचिन कुछ ज़्यादा आरामदेह स्थिति में हैं, क्योंकि टेनिस टीम गेम नहीं है और इसमें दम-खम भी कुछ ज़्यादा लगता है, लेकिन फेडरर फिट भी हैं और एक-दो साल खेलते रहने का दम-खम भी उनमें अभी मौजूद है...
फेडरर के अब तक के सफर पर अगर गौर से नज़र डालें तो पता चलता है कि उनका अंदाज बहुत दोस्ताना है... वह जहां भी जाते हैं, दोस्त बना लेते हैं... इतिहास और रिकॉर्ड से उनकी दोस्ती तो गाढ़ी है ही... इससे उम्मीद बंधती है कि टेनिस के इतिहास और रिकॉर्ड में फेडरर के नाम अभी कुछ और पन्ने बाकी हैं... लेकिन बेहतर यही होगा कि फेडरर शीर्ष पर रहते हुए खेल को अलविदा कह दें, क्योंकि युवा खिलाड़ियों की फौज टेनिस के इस सबसे बड़े जीनियस को किनारे कर दे, इससे बेहतर यही होगा कि वह खुद ही उनके लिए जगह खाली कर दें...
                                                                        
                                    
                                लेकिन शायद फेडरर किसी दूसरी मिट्टी के बने हुए हैं... उन्होंने पिछली बार कहा था, मैं एक बार फिर वापस आऊंगा... और उसके बावजूद जब इस साल भी वह विम्बल्डन पहुंचे तो किसी को अंदाज़ा नहीं था कि वह सबको झुठला देंगे... नडाल की अप्रत्याशित हार ने उनकी मुश्किल कम ज़रूर कर दी थी, परन्तु संशय बरकरार था... फिर सेमीफाइनल में उनकी टक्कर नोवाक जोकोविच जैसे तेजतर्रार खिलाड़ी से हुई, और उन्होंने जिस सहज अंदाज में उसे हराया, उससे लगा कि फॉर्म आती-जाती रहती है, क्लास हमेशा बना रहता है... और फिर जोकोविच के बाद एंडी मरे पर भी फेडरर ने रहम नहीं किया, और इतिहास रच डाला... फाइनल के बाद फेडरर और मरे, दोनों की आंखों में आंसू थे... लेकिन फेडरर के आंसू जीत के नहीं थे... वह दरअसल, उस भरोसे का छलकना था, जिसके बूते वह ढाई साल से हर ग्रैंड स्लैम खेलने पहुंच रहे थे... तमाम आलोचनाओं के बाद भी न उनका भरोसा डगमगाया था, न उनकी प्रतिबद्धता में कोई कमी आई थी... दूसरी तरफ, मरे के ग़म-छलकाते आंसुओं में भी कहीं न कहीं अपने जीनियस साथी के भरोसे का सम्मान छिपा होगा ही...
फेडरर विम्बल्डन का पुरुष एकल खिताब सातवीं बार जीते हैं... पीट सम्प्रास उनके आदर्श रहे हैं, और अब विम्बल्डन खिताब जीतने के मामले में फेडरर उनकी बराबरी पर पहुंच गए हैं... इतना ही नहीं, इस कामयाबी ने उन्हें एक बार फिर दुनिया का नंबर वन खिलाड़ी बना दिया है... 286 सप्ताह तक (लगातार नहीं) नंबर वन खिलाड़ी रहने के सम्प्रास के एक ओर रिकॉर्ड की बराबरी भी उन्होंने कर ली है... वैसे अब उनके ग्रैंड स्लैम खिताबों की संख्या 17 हो चुकी है, जो एक विश्वरिकॉर्ड है, और इतने खिताब कोई दूसरा जीत पाएगा, यह निकट भविष्य में संभव नहीं दिखता...
टेनिस के प्रति फेडरर का समर्पण और प्रतिबद्धता देखने लायक होती है... खेल के प्रति उनका अनुशासन उनके कद को और बढ़ा देता है... वह किसी संगीतकार की तरह टेनिस की एक खास धुन विकसित कर चुके हैं... आज, जब आधुनिक टेनिस कोर्ट पॉवर गेम का अखाड़ा बनता जा रहा है, उनके खेल में आज भी खास नफ़ासत देखने को मिलती है, भले ही वह तूफानी सर्विस हो या एक हाथ से सधा हुआ बैक-हैण्ड रिटर्न... यही वजह है कि फेडरर अगर हार भी रहे हों तो उनका खेल मंत्रमुग्ध कर देता है... उनकी गलतियां भी दूसरों के विनर शॉट से ज़्यादा परफेक्ट लगती हैं... यही वजह है कि 30 साल की उम्र बीतने के बाद भी वह युवाओं के मुकाबले पूरे दमखम के साथ मैदान में मौजूद हैं... आज के दौर में एक दशक तक शीर्ष पर बने रहना कोई हंसी-खेल नहीं है...
आप उनकी तुलना सचिन तेंदुलकर से भी कर सकते हैं, जिनके लिए हासिल करने को कुछ भी बाकी नहीं... लेकिन खेल के प्रति पैशन में कोई कमी नहीं आई... हालांकि फेडरर के मुकाबले सचिन कुछ ज़्यादा आरामदेह स्थिति में हैं, क्योंकि टेनिस टीम गेम नहीं है और इसमें दम-खम भी कुछ ज़्यादा लगता है, लेकिन फेडरर फिट भी हैं और एक-दो साल खेलते रहने का दम-खम भी उनमें अभी मौजूद है...
फेडरर के अब तक के सफर पर अगर गौर से नज़र डालें तो पता चलता है कि उनका अंदाज बहुत दोस्ताना है... वह जहां भी जाते हैं, दोस्त बना लेते हैं... इतिहास और रिकॉर्ड से उनकी दोस्ती तो गाढ़ी है ही... इससे उम्मीद बंधती है कि टेनिस के इतिहास और रिकॉर्ड में फेडरर के नाम अभी कुछ और पन्ने बाकी हैं... लेकिन बेहतर यही होगा कि फेडरर शीर्ष पर रहते हुए खेल को अलविदा कह दें, क्योंकि युवा खिलाड़ियों की फौज टेनिस के इस सबसे बड़े जीनियस को किनारे कर दे, इससे बेहतर यही होगा कि वह खुद ही उनके लिए जगह खाली कर दें...
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                                        रोजर फेडरर, Roger Federer, Wimbledon 2012, विम्बल्डन 2012, ऑल इंग्लैण्ड क्लब, All England Club, Men's Single Title, पुरुष एकल खिताब, रिकॉर्ड सातवां खिताब, Record Seventh Title