विज्ञापन
This Article is From Mar 18, 2015

16 महीने बाद रियो ओलिंपिक्स में पदक जीतने की कोशिश करेंगे : पॉल वैन ऐस

नई दिल्‍ली : ऑस्ट्रेलियाई कोच टेरी वॉल्श की रुख़सदी के बाद एक बार फिर भारतीय टीम की कमान एक विदेशी कोच के हाथों में दी गई है। इस बार ओलिंपिक्स के शुरू होने में क़रीब 16 महीने बचे हैं और एक बार फिर हॉकी सर्किट में भारतीय टीम की पदक की संभावनाओं को लेकर हलचल शुरू हो गई है।

पिछले साल चैंपियंस ट्रॉफ़ी से पहले टेरी वाल्श को लेकर जितने विवाद हुए उससे हॉकी के जानकार और फ़ैन्स के मन में कड़वाहट भरी रही। भारतीय हॉकी टीम भुवनेश्वर में हुई चैंपियंस ट्रॉफ़ी प्रतियोगिता में चौथे नंबर पर रही। लेकिन टीम ने पोडियम पर पहुंचने का एक शानदार मौक़ा गंवा दिया।

डच कोच पॉल वॉन ऐस भारतीय टीम का कोच बनने की अहमियत समझते हैं। उन्हें यहां की जटिलताओं का भी खूब अंदाज़ा है। हॉलैंड को 2012 के लंदन ओलिंपिक्स में फ़ाइनल तक का सफ़र करवाने वाले 55 साल के पॉल वैन ऐस से यहां भी पोडियम से कम की उम्मीद नहीं रहेगी। वो बताते हैं कि जब वो दस साल के थे तब से उन्हें उनके पिताजी बताते थे कि उन्हें भारतीय टीम से सीखना चाहिए। कोच वॉन ऐस भारतीय स्किलफ़ुल हॉकी के कायल हैं और उनका मानना है कि किसी भी टीम के नेचुरल स्टाइल को बदलने की ज़रूरत नहीं है।

कोच वॉन ऐस की ये राय उन्हें टीम में लोकप्रिय बना सकती है। टीम के खिलाड़ियों को भी इससे फ़ायदा ज़रूर होगा। लेकिन उन्हें अभी से ही ओलिंपिक्स के कोर ग्रुप पर नज़र रखनी होगी और विवाद से भी बचना होगा। 2012 की ओलिंपिक्स की टीम चुनते वक्त उन्होंने टाइके टाइकामा और टेन डि न्यूअर जैसे खिलाड़ियों को पहले टीम से निकाल दिया फिर टीम में वापस रख लिया और फिर ओलिंपिक्स से ठीक पहले निकाल दिया।

भारतीय हॉकी टीम के चयन में उनके ऊपर हॉलैंड से कहीं ज़्यादा दबाव होगा। यही नहीं यहां के हॉकी तंत्र यानी हॉकी इंडिया, भारतीय खेल प्राधिकरण और खेल मंत्रालय और थोड़ी-बहुत मीडिया से निपटना भी उनके लिए एक मुश्किल काम हो सकता है।

वॉन ऐस मानते हैं कि बतौर कोच भारत में काम करना अलग होगा। वो इस बात का ज़िक्र भी करते हैं कि यहां लालफ़ीताशाही की मुश्किल होगी जिसका ज़िक्र पूर्व भारतीय कोच टेरी वाल्श ने भी किया था और इसे लेकर विवाद भी हुआ। वो ये भी कहते हैं कि विदेशी कोच होने के नाते उन्हें भारतीय माहौल और टीम के साथ तालमेल बिठाने की ज़रूरत होगी। दिलचस्प ये भी है कि वो भारतीय संस्कृति को समझने के लिए इन दिनों 'हिन्दूइज़्म इन मॉडर्न टाइम्स' नाम की क़िताब पढ़ रहे हैं। वैसे उनकी मुश्किलें यक़ीनन इस किताब से कहीं बाहर की और कहीं ज़्यादा होंगी।

वॉन ऐस भारतीय हॉकी टीम के सातवें विदेशी हॉकी कोच हैं जिनमें रोलंट ऑल्टमैन्स के अलावा बाक़ी सबको अबतक कड़वाहट के साथ ही वापस जाना पड़ा है। हॉकी के जानकारों ने भारत में इन विदेशी कोच का जलवा भी देखा और फिर इन्हें विवादों की आग में जलते भी देखा:   

भारतीय हॉकी टीम के विदेशी कोच:

1. गेरहार्ड रॉक़      (जुलाई 2004- जनवरी 2005)
2. रिक चार्ल्सवर्थ    (नवंबर 2007- मई 2008 )
3. होसे ब्रासा       (नवंबर 2009- नवंबर 2010)
4. माइकल नॉब्स    (जून 2011- जुलाई 2013)
5. टेरी वाल्श       (अक्टूबर 2013- नवंबर 2014)
6. रोलंट ऑल्टमैन्स  (2013 एशिया कप और 2014 चैंपियंस ट्रॉफ़ी के दौरान)
7. पॉल वैन ऐस     (मौजूदा कोच 2015 मार्च से--)

कोच वॉन ऐस कहते हैं कि उन्हें घर में अपने परिवार को छोड़ कर आना पड़ता है। ऐसे में उनका काम पहले ही आसान नहीं होता है। इन परेशानियों का ज़िक्र तकरीबन सभी विदेशी कोच करते रहे हैं। कोच वॉन ऐस पर उम्मीदों का भी बेइंतहा दबाव होगा। लेकिन वो कहते हैं कि वो इसके आदि हो चुके हैं।

भारतीय हॉकी टीम ने 16 साल बाद इंचियन एशियाड का गोल्ड जीतकर रियो ओलिंपिक्स के लिए क्वालिफ़ाई कर चुकी है। लेकिन क्या 36 साल बाद भारतीय हॉकी टीम ओलिंपिक्स में कोई पदक जीतने में कामयाब होगी? ये सवाल हर रोज़ पूछे जाएंगे और कोच वॉन ऐस को हर रोज़ इसके जवाब देने और इससे बचने की प्रक्रिया से गुज़रना होगा।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
भारतीय हॉकी टीम, रियो ओलंपिक, विदेशी कोच, पॉल वैन ऐस, Indian Hockey Team, Rio Olympics, Coach Paul Van Ass
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com