
- राजस्थान के झालावाड़ के पीपलोदी गांव में सरकारी स्कूल की जर्जर छत गिरने से 7 बच्चों की मौत हो चुकी है.
- हादसे के वक्त स्कूल के शिक्षक बाहर थे और बच्चों ने कंकड़ गिरने की सूचना दी थी पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.
- परिजनों का आरोप है कि स्कूल की मरम्मत सिर्फ लीपापोती थी, जिससे बारिश के बाद छत गिर गई और हादसा हुआ.
राजस्थान के झालावाड़ जिले के पीपलोदी गांव में आज सुबह एक ऐसा दिल दहला देने वाला हादसा हुआ, जिसने हर किसी का सीना चीर दिया. यहां के सरकारी स्कूल की जर्जर छत अचानक ढह गई. इस दुखद घटना में 7 मासूम बच्चों की जान चली गई, जबकि 28 अन्य घायल हो गए. इस हादसे ने न केवल पीपलोदी गांव, बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. बच्चों के परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है, जो बार-बार प्रशासन की लापरवाही को दोष दे रहे हैं. यह हादसा न सिर्फ एक इमारत का गिरना था, बल्कि कई परिवारों की दुनिया उजड़ जाने की ऐसा जख्म बन गया जिसके जख्म ताउम्र नहीं भर पाएंगे. आम ग्रामीणों के अनुसार इस हादसे की चपेट में आने वाले बच्चों ने पहले ही अपने शिक्षकों को इस हादसे को लेकर आगाह किया था. एक ग्रामीण ने एनडीटीवी को बताया कि इस कमरे के अंदर बैठे बच्चों ने छत के प्लास्टर के गिरने की बात भी बताई थी लेकिन किसी शिक्षक ने उस समय उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया.
"हमारे बच्चे तो सिर्फ पढ़ने गए थे..."
यह कहते हुए एक परिजनों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. परिजनों ने बताया कि जस वक्त ये दर्दनाक हादसा हुआ उस वक्त स्कूल के शिक्षक बाहर थे और वो पोहा जलेबी खा रहे थे, कोई गुटखा खाने में लगा था. एनडीटीवी के साथ अपना असहनीय दर्द गांव के लोग बताते हैं कि सुबह करीब साढ़े सात बजे बच्चे स्कूल पहुंचे थे. यहां तक कि स्कूल का गेट भी बच्चों ने ही खोला था. कुछ बच्चे झाड़ू लगाकर क्लास में बैठ गए थे. तभी छत से कंकड़ गिरने लगे. बच्चों ने डरते हुए टीचरों को बताया, लेकिन जवाब मिला — "कुछ नहीं होगा, बैठ जाओ."
स्कूल में मरम्मत के नाम पर की गई थी लीपापोती
परिजनों का आरोप है कि स्कूल की इमारत पहले से ही जर्जर थी, और इसकी मरम्मत के नाम पर सिर्फ लीपापोती की गई थी. "पन्नी डालकर सीमेंट चढ़ा दिया गया था, लेकिन जैसे ही बारिश हुई और छत गिर गई." एक पिता ने कहा, "हमने पहले भी अधिकारियों को बताया था, लेकिन किसी ने नहीं सुना, आज हमारे बच्चे नहीं रहे." हादसे के वक्त स्कूल में करीब 60 बच्चे मौजूद थे, जिनमें से 33 उस कमरे में थे जहां छत गिरी. मलबा गिरते ही गांव में चीख-पुकार मच गई.
हालांकि अभिभावक और ग्रामीण दौड़ पड़े — बच्चों को मलबे से निकालने के लिए. किसी ने अपने हाथों से मलबा हटाया, किसी ने निजी वाहन से घायल बच्चों को अस्पताल पहुंचाया.घायल बच्चों का इलाज झालावाड़ जिला अस्पताल और मनोहरथाना स्वास्थ्य केंद्र में चल रहा है.
हादसे पर राष्ट्रपति, पीएम मोदी ने जताया दुख
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हादसे पर गहरा शोक जताया है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने भी संवेदना व्यक्त की है। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए हैं.
लेकिन गांव के लोगों के सवाल अब भी वहीं हैं —
"जब बच्चों ने बताया कि छत से कंकड़ गिर रहे हैं, तो क्यों नहीं सुना गया?"
"क्यों नहीं समय रहते मरम्मत की गई?"
"क्या अब भी कोई जवाबदेह होगा?"
मासूमों की मौत का जिम्मेदार कौन
गुस्साए स्थानीय निवासियों ने कहा कि उन्होंने स्कूल भवन की हालत के बारे में तहसीलदार और उपखंड अधिकारी सूचित किया था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई. स्थानीय निवासी बालकिशन ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा, 'यह प्रशासन की लापरवाही के कारण हुआ.' एक अन्य स्थानीय निवासी ने दावा किया कि प्रशासनिक मदद पहुंचने से पहले ही स्थानीय लोगों ने फंसे बच्चों को निकालकर निजी वाहनों से स्वास्थ्य केंद्र पहुँचा दिया था.
झालावाड़ के जिला कलेक्टर अजय सिंह के अनुसार, जिला प्रशासन ने हाल ही में शिक्षा विभाग को किसी भी जर्जर स्कूल भवन की जानकारी देने का निर्देश दिया था, लेकिन यह भवन सूची में शामिल नहीं था. सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, 'मैं इसकी जांच करवाऊंगा और जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.'
(एनडीटीवी के लिए विनोद कुशवाह)
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