ऑनलाइन गेम की लत ने बच्चे को मानसिक रूप से किया बीमार, दिव्यांग आवासीय विद्यालय में कराया गया भर्ती

अलवर शहर के मुंगस्का का रहने वाले इस बच्चे के पिता बब्बर सिंह ने बताया कि होली के आसपास इसकी आंखें टेढ़ी हो गई और हाथ पैर भी हिलने लग गए. इसका इलाज कराया लेकिन कोई असर नहीं हुआ.

ऑनलाइन गेम की लत ने बच्चे को मानसिक रूप से किया बीमार, दिव्यांग आवासीय विद्यालय में कराया गया भर्ती

बच्चे ने इस बात को कबूल किया कि वह 24 घंटे में 15 घंटे फ्री फायर और पब्जी गेम खेलता था.(प्रतीकात्मक फोटो)

अलवर:

ऑनलाइन गेम पब्जी और फ्री फायर जैसे खेल किस तरह बच्चों पर असर डाल रहे हैं, उसका एक वाक्य अलवर में सामने आया है. यहां 15 साल का एक बच्चा 6 महीने पहले से पब्जी और फ्री फायर गेम खेलना शुरू किया और आज हालत यह हो गई कि वह पूरी तरह मानसिकरूप से विमंदित हो गया और उसके हाथ पैर भी हिलने लग गए. परिजनों ने काफी ईलाज कराने के बाद जब उसको कोई फायदा नहीं हुआ तो उसे अलवर के बौद्धिक दिव्यांग आवासीय विद्यालय में भर्ती कराया गया है.यहां उसके मानसिक संतुलन सुधारने के प्रयास किए जा रहे हैं.

इस खेल में सबसे बड़ी बात यह होती है कि कोई भी खिलाड़ी हारना नहीं चाहता अगर वह हार गया तो वह उसे हार को बर्दाश्त नहीं कर पाता या तो वे आत्महत्या जैसे कदम उठाता है या मानसिक संतुलन खो देता है. ऐसा ही हाल इस बच्चे के साथ हुआ है. अलवर शहर के मुंगस्का का रहने वाले इस बच्चे के पिता बब्बर सिंह ने बताया कि वह ई-रिक्शा चलाते हैं. मेरा बेटा मोहल्ले के बच्चों के साथ रहता था. इसको कब इस खेल की लत लग गई पता नहीं चला.

होली के आसपास इसकी आंखें टेढ़ी हो गई और हाथ पैर भी हिलने लग गए.इसका इलाज कराया लेकिन कोई असर नहीं हुआ. इसकी मां लक्ष्मी ने बताया कि उसे यह मोबाइल जिनके चौका बर्तन करती थी उस मालकिन ने  दिया था. उसका बेटा पढ़ाई के नाम पर इस मोबाइल को ले लेता था. हालांकि कभी हम रिचार्ज भी कर आते लेकिन आसपास लगी वाईफाई से कनेक्ट करके लगातार मोबाइल यूज करता था. हमें इस बात का पता नहीं था. इस बात का पता भी पड़ोसी बच्चों से लगा कि यह पब्जी जैसे खतरनाक खेल खेलता है. जब हम इसे डांटते थे तो मोबाइल रख देता था और रात को फिर खेलना शुरू कर देता था .

इस खेल की इस कदर लत लगी की कि वे सर्दी के मौसम में रजाई ओढ़ कर पूरी रात गेम खेलता रहता था. होली के आसपास इसकी आंखें फिर गई.इसका अलवर जयपुर इलाज कराया गया. जिसके बाद इसकी आंखे तो सही हो गई लेकिन असर ये हुआ फिर मानसिक रूप से परेशान हो गया और यह लड़ने लगता किसी को भी पीटता. उसके बाद इस बच्चे को दिव्यांग आवासीय विद्यालय में भर्ती कराया.

इधर, बच्चे ने भी इस बात को कबूल किया कि फ्री फायर और पब्जी गेम खेलता था. 24 घंटे में 15 घंटे खेल खेलता था जब घरवाले डांट देते तो रेवाड़ी और बांदीकुई ट्रेन से भाग जाते थे. मां बाप डांट देते, मारते थे. उसे जब पूछा यहां रहकर कैसा लग रहा है तो बच्चे ने कहा कि मां के बिना अच्छा नहीं लगता मुझे घर जाना है और उसने यह भी कहा कि मैं आज के बाद मोबाइल के हाथ नहीं लगाऊंगा.

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

      

हेल्‍पलाइन
वंद्रेवाला फाउंडेशन फॉर मेंटल हेल्‍थ9999666555 पर कॉल करें, या help@vandrevalafoundation.com पर लिखें
TISS iCall022-25521111 (सोमवार से शनिवार तक उपलब्‍ध - सुबह 8:00 बजे से रात 10:00 बजे तक)
(अगर आपको सहारे की ज़रूरत है या आप किसी ऐसे शख्‍स को जानते हैं, जिसे मदद की दरकार है, तो कृपया अपने नज़दीकी मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञ के पास जाएं)