राजस्थान हाईकोर्ट ने बुधवार को राजस्थान के मंत्रियों के वेतन (संशोधन) अधिनियम 2017 को अवैध घोषित कर दिया और कहा कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सरकारी बंग्ला, टेलीफोन और कार जैसी सुविधाओं का लाभ जिंदगी भर नहीं उठा सकते हैं. फैसले की घोषणा करते हुए, राज्य के मुख्य न्यायाधीश एस. रविंद्र भट्ट और न्यायमूर्ति प्रकाश गुप्ता की पीठ ने पाया कि राजस्थान आर्थिक रूप से एक पिछड़ा राज्य है और पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए इस तरह से जिंदगी भर के लिए सार्वजनिक सुविधाएं प्रदान करना धन का दुरुपयोग है.
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हाई कोर्ट का यह फैसला वरिष्ठ पत्रकार मिलापचंद डांडिया द्वारा दायर याचिका पर आया, जिसमें राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगला, कार, ड्राइवर, टेलीफोन सेवाएं और 10 कर्मचारी वाले स्टाफ जैसी सुविधा जिंदगी भर के लिए देने वाले कानून को चुनौती दी गई थी. डांडिया की याचिका में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का उल्लेख करते हुए राजस्थान के कानून पर सवाल उठाया गया था, जिसने उत्तर प्रदेश में इसी तरह के एक कानून को रद्द कर दिया था, जिसके तहत राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों को स्थायी आवास दिया जाता था.
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राजस्थान में यह कानून पूर्व वसुंधरा राजे सरकार द्वारा राजस्थान मंत्री वेतन अधिनियम, 1956 में एक संशोधन के माध्यम से लागू किया गया था. नए कानून के तहत राज्य के जिन मुख्यमंत्रियों ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया, वे जयपुर या किसी भी जिला मुख्यालय में सरकारी आवास के लिए पात्र थे. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और जगन्नाथ पहाड़िया उन लोगों में हैं, जो इस कानून के तहत लाभ ले रहे हैं.
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