- जोधपुर सत्र अदालत ने गैंगस्टर आनंदपाल सिंह के 2017 के पुलिस एनकाउंटर को कानूनी रूप से सही ठहराया है
- अदालत ने पुलिस अधिकारियों को राहत देते हुए कहा कि वे अपने कर्तव्य का सही तरीके से पालन कर रहे थे
- सीबीआई ने 2020 में आनंदपाल के एनकाउंटर की जांच पूरी कर क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर मामले को बंद किया था
बुधवार को दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले में, जोधपुर की सत्र अदालत ने गैंगस्टर आनंदपाल सिंह के एनकाउंटर को सही ठहराया, जिसमें 7 पुलिस अधिकारी शामिल थे. राजस्थान के कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल सिंह की 2017 में चूरू ज़िले के मालासर गांव में पुलिस मुठभेड़ में मौत हुई थी. पुलिस का कहना था कि आनंदपाल जिस मकान में छिपा था, उसे चारों ओर से घेरने के बाद उसने पुलिस पर फायरिंग की, जिसके जवाब में पुलिस ने जवाबी कार्रवाई की और वह मारा गया.
आनंदपाल एनकाउंटर मामले की जांच बाद में सीबीआई को सौंपी गई थी, क्योंकि यह मामला वसुंधरा राजे सरकार के लिए राजनीतिक विवाद का विषय बन गया था, खासकर भाजपा के पारंपरिक राजपूत मतदाताओं के विरोध के बाद. लेकिन सीबीआई ने 2020 में एनकाउंटर को सही ठहराते हुए क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी.
हालांकि, आनंदपाल के परिवार ने एसीजेएम (सीबीआई) अदालत में याचिका दायर की, जिसके बाद 2024 में अदालत ने आदेश दिया कि एनकाउंटर करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत जांच की जाए. अब जोधपुर सत्र अदालत ने पुलिस अधिकारियों को राहत दी है. अदालत ने कहा कि वे अपने कर्तव्य का पालन कर रहे थे.
राहत पाने वालों में शामिल हैं —
तत्कालीन चूरू एसपी राहुल भारत
तत्कालीन अतिरिक्त एसपी (अब सेवानिवृत्त) विद्याप्रकाश
डीएसपी सूर्यवीर सिंह राठौर
आरएसी के हेड कांस्टेबल कैलाश चंद्र
कांस्टेबल धरमपाल, धरमवीर सिंह और सोहन सिंह (आरएसी)
अदालत ने माना कि ये अधिकारी एक खतरनाक अपराधी को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे और आनंदपाल ने पहले फायरिंग की थी.
विवाद और कानूनी लड़ाई
आनंदपाल की मौत के बाद प्रदेशभर में भारी विरोध हुआ. वसुंधरा राजे सरकार ने राजनीतिक विवाद शांत करने के लिए जांच सीबीआई को सौंप दी. आनंदपाल की पत्नी राज कंवर ने सीबीआई की क्लोज़र रिपोर्ट के खिलाफ याचिका दायर की थी. उनके वकील ने अदालत में कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चलता है कि आनंदपाल के शरीर पर कई चोटों के निशान थे और 11 गोलियां नज़दीक से मारी गई थीं. हालांकि, सत्र अदालत ने यह तर्क खारिज कर दिया. अदालत ने कहा —
पुलिस अधिकारी अपने कर्तव्य का पालन कर रहे थे और वैज्ञानिक व प्रत्यक्ष साक्ष्यों से सिद्ध है कि आनंदपाल ने स्वचालित हथियार से फायरिंग की, जिससे एक पुलिसकर्मी को गंभीर चोट आई.
आनंदपाल के भाई, जो खुद को अब गवाह बता रहे हैं, उन्होंने जांच के समय ऐसा कोई बयान नहीं दिया था.
दोनों ओर से फायरिंग हुई थी और कांस्टेबल सोहन सिंह आनंदपाल की गोली से घायल हुए थे.
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