
बहुचर्चित मोगा सेक्स स्कैंडल मामले में मोहाली की विशेष सीबीआई अदालत ने पंजाब पुलिस के चार पूर्व पुलिस अधिकारियों को दोषी करार दिया है. न्यायाधीश राकेश कुमार गुप्ता की अदालत में सुनाए गए फैसले में आरोपियों को भ्रष्टाचार और जबरन वसूली से संबंधित आरोपों में दोषी पाया गया.
दोषी करार दिए गए अधिकारी:
- तत्कालीन एसएसपी मोगा दविंदर सिंह गरचा
- तत्कालीन एसपी (हेडक्वार्टर) मोगा परमदीप सिंह संधू
- तत्कालीन एसएचओ, थाना सिटी मोगा रमन कुमार
- तत्कालीन एसएचओ, पुलिस स्टेशन सिटी मोगा इंस्पेक्टर अमरजीत सिंह
अदालत ने दविंदर सिंह गरचा और पी.एस. संधू को भ्रष्टाचार रोकथाम (पीसी) एक्ट की धारा 13(1) और 13(2) के तहत दोषी ठहराया है. इसी तरह रमन कुमार और अमरजीत सिंह को पीसी एक्ट और आईपीसी की धारा 384 (जबरन वसूली) के तहत दोषी करार दिया गया है. इसके अलावा अमरजीत सिंह को आईपीसी की धारा 384 और 511 के तहत भी दोषी ठहराया गया है.

हालांकि, अदालत ने अकाली नेता बरजिंदर सिंह उर्फ मखन और सुखराज सिंह को सभी आरोपों से बरी कर दिया है. अदालत ने दोषियों को सजा सुनाने के लिए 4 अप्रैल की तारीख तय की है. इस मुकदमे की पैरवी सीबीआई के सरकारी वकील अनमोल नारंग ने की थी.
कैसे पहुंची जांच सीबीआई तक?
शुरुआत में यह मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद सीबीआई ने दर्ज किया था. 11 दिसंबर 2007 के आदेशानुसार जांच सीबीआई को सौंपी गई थी. अदालत ने राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव का हवाला देते हुए राज्य पुलिस की निष्पक्ष जांच करने की क्षमता पर सवाल उठाया था. इसके बाद सीबीआई ने पीसी एक्ट 1988 की धारा 7, 13(2) और आईपीसी की धारा 384, 211 और 120B के तहत एफआईआर दर्ज की थी.
क्या थे आरोप?
जांच के दौरान पता चला कि दविंदर सिंह गरचा, परमदीप सिंह संधू, अमरजीत सिंह और रमन कुमार ने सरकारी अधिकारी होने के नाते अकाली नेता तोता सिंह के बेटे बरजिंदर सिंह उर्फ मखन और अन्य लोगों के साथ मिलकर अवैध आर्थिक लाभ लेने की साजिश रची. उन्होंने कथित तौर पर झूठी एफआईआर दर्ज करवाईं और निर्दोष लोगों को केस से बाहर निकालने के लिए रिश्वत ली. इस साजिश में झूठे हलफनामे का भी इस्तेमाल किया गया.
गवाहों की भूमिका
इस मुकदमे के दौरान मनप्रीत कौर को सरकारी गवाह बनाया गया, लेकिन बाद में अदालत ने उसे विरोधी घोषित कर दिया, जिसके चलते उसके खिलाफ अलग से कानूनी कार्रवाई शुरू हुई. इसके अलावा रणबीर सिंह उर्फ राणू और करमजीत सिंह बाठ ने सरकारी गवाह के रूप में गवाही दी. वहीं, एक अन्य आरोपी मनजीत कौर की मुकदमे के दौरान मौत हो गई, जिससे उसके खिलाफ कार्रवाई रोक दी गई.
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