अनुराग द्वारी और अनंत झणाने की रिपोर्ट - महाराष्ट्र में मराठा समाज का गुस्सा उबाल पर है, लेकिन इस गुस्से में शोर-शराबा, नारेबाज़ी तोड़-फोड़ नहीं है. लगभग एक दर्जन जिलों में मराठा समाज मूक मोर्चा निकाल रहा है, इसी कड़ी में रविवार को लाखों लोग पुणे में जुटे, मांग वही - शिक्षा और नौकरी में आरक्षण, कोपर्डी के गुनहगारों को फांसी.
एक मराठा, लाख मराठा इस नारे के साथ लाखों मराठाओं ने रविवार को पुणे को पैरों पर चलने नहीं, बल्कि रेंगने के लिए मजबूर कर दिया. शहर-दर-शहर मराठाओं का मूक मोर्चा चल रहा है, तादाद बढ़ती जा रही है. कोपर्डी में एक नाबालिग मराठा लड़की की बलात्कार के बाद जघन्य हत्या के दोषियों को फांसी की सज़ा की मांग से पूरा समाज एकजुट होता नजर आ रहा है. इस मोर्चे में शामिल प्रोफेसर अल्पना अडसूल ने कहा, 'मैं सिंहगढ़ कॉलेज में पढ़ाती हूं, मेरे यहां आने की वजह कोपर्डी की घटना है.'
वैसे कोपर्डी के अलावा मोर्चे में शामिल लोगों की एक और अहम मांग अपने समाज के लिए 16 फीसदी आरक्षण है, इसमें एट्रॉसिटी कानून की कथित खामियां दूर करने के साथ, किसानों के हित में स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने की बात भी जोड़ दी गई हैं. रैली में शामिल होने आए विशाल पांगरे ने कहा, 'मैं इंजीनियर हूं, मैं रोज़ी-रोटी के लिए कार पोंछकर 10,000 रुपये महीने कमाता हूं. हम इन लोगों को चुनते हैं और जीतने के बाद ये हमारे लिए कुछ नहीं करते, अब वक्त आ गया है इन्हें बताने का कि ये हमारे लिए कुछ करें.

आंदोनकारी अब सीधे मुख्यमंत्री से संवाद चाहते हैं, लेकिन ये साफ नहीं है कि उनकी नुमाइंदगी कौन करेगा. इस मुद्दे पर धनंजय काते का कहना था, 'वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं, उन्हें ऐसे भागना नहीं चाहिए.' जबकि अजित जगताप ने कहा कि अगर आंदोलन के बाद भी मराठा समाज की मांगें नहीं मानी गईं तो आनेवाले चुनावों में पूरा समाज वोट नहीं करेगा, किसी को भी नहीं.
उधर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी कहा है कि वो मराठाओं को न्याय दिलाने के लिए निर्णायक लड़ाई लड़ना चाहते हैं. नवी मुंबई में माथाड़ी कामगारों की सभा में फडणवीस ने कहा, 'हम पूरी तरह से मराठा समाज के आरक्षण के पक्ष में खड़े हैं, उनका मोर्चा मूक है, लेकिन उसमें करोड़ों की आवाज़ है.'
महाराष्ट्र में लगभग 33 फीसदी मराठा हैं. राज्य में शासक वर्ग ज्यादातर मराठा ही रहा है, लेकिन बड़ा तबका गरीबी-अशिक्षा और बेरोज़गारी से भी जूझ रहा है. 2014 के लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार आनन-फानन में मराठा आरक्षण पर अध्यादेश ले आई, लेकिन कई कानूनी खामियों की वजह से अदालत में ये टिक नहीं पाया अब मोर्चा चुप है, लेकिन तादाद बढ़ती जा रही है. ऐसे में देखना होगा कि ये आंदोलनकारी सरकार को अपनी मांगों के समर्थन में किस हद तक झुका पाते हैं.
एक मराठा, लाख मराठा इस नारे के साथ लाखों मराठाओं ने रविवार को पुणे को पैरों पर चलने नहीं, बल्कि रेंगने के लिए मजबूर कर दिया. शहर-दर-शहर मराठाओं का मूक मोर्चा चल रहा है, तादाद बढ़ती जा रही है. कोपर्डी में एक नाबालिग मराठा लड़की की बलात्कार के बाद जघन्य हत्या के दोषियों को फांसी की सज़ा की मांग से पूरा समाज एकजुट होता नजर आ रहा है. इस मोर्चे में शामिल प्रोफेसर अल्पना अडसूल ने कहा, 'मैं सिंहगढ़ कॉलेज में पढ़ाती हूं, मेरे यहां आने की वजह कोपर्डी की घटना है.'
वैसे कोपर्डी के अलावा मोर्चे में शामिल लोगों की एक और अहम मांग अपने समाज के लिए 16 फीसदी आरक्षण है, इसमें एट्रॉसिटी कानून की कथित खामियां दूर करने के साथ, किसानों के हित में स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने की बात भी जोड़ दी गई हैं. रैली में शामिल होने आए विशाल पांगरे ने कहा, 'मैं इंजीनियर हूं, मैं रोज़ी-रोटी के लिए कार पोंछकर 10,000 रुपये महीने कमाता हूं. हम इन लोगों को चुनते हैं और जीतने के बाद ये हमारे लिए कुछ नहीं करते, अब वक्त आ गया है इन्हें बताने का कि ये हमारे लिए कुछ करें.

आंदोनकारी अब सीधे मुख्यमंत्री से संवाद चाहते हैं, लेकिन ये साफ नहीं है कि उनकी नुमाइंदगी कौन करेगा. इस मुद्दे पर धनंजय काते का कहना था, 'वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं, उन्हें ऐसे भागना नहीं चाहिए.' जबकि अजित जगताप ने कहा कि अगर आंदोलन के बाद भी मराठा समाज की मांगें नहीं मानी गईं तो आनेवाले चुनावों में पूरा समाज वोट नहीं करेगा, किसी को भी नहीं.
उधर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी कहा है कि वो मराठाओं को न्याय दिलाने के लिए निर्णायक लड़ाई लड़ना चाहते हैं. नवी मुंबई में माथाड़ी कामगारों की सभा में फडणवीस ने कहा, 'हम पूरी तरह से मराठा समाज के आरक्षण के पक्ष में खड़े हैं, उनका मोर्चा मूक है, लेकिन उसमें करोड़ों की आवाज़ है.'
महाराष्ट्र में लगभग 33 फीसदी मराठा हैं. राज्य में शासक वर्ग ज्यादातर मराठा ही रहा है, लेकिन बड़ा तबका गरीबी-अशिक्षा और बेरोज़गारी से भी जूझ रहा है. 2014 के लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार आनन-फानन में मराठा आरक्षण पर अध्यादेश ले आई, लेकिन कई कानूनी खामियों की वजह से अदालत में ये टिक नहीं पाया अब मोर्चा चुप है, लेकिन तादाद बढ़ती जा रही है. ऐसे में देखना होगा कि ये आंदोलनकारी सरकार को अपनी मांगों के समर्थन में किस हद तक झुका पाते हैं.
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