चुनाव आयोग समाजवादी पार्टी में मुलायम और अखिलेश के चुनाव चिन्ह साइकिल पर दावे के मामले पर शुक्रवार को सुनवाई करेगा.
नई दिल्ली:
कौन करेगा साइकिल की सवारी.. नेता जी (मुलायम सिंह यादव) या टीपू (अखिलेश यादव). चुनाव आयोग में शुक्रवार को होनी वाली सुनवाई में यही फैसला किया जाना है. आयोग में शुक्रवार को इस मामले में सुनवाई एक ट्रिब्यूनल की तर्ज पर होगी यानी जैसे अदालत में की जाती है. सुनवाई के दौरान तीनों चुनाव आयुक्तों के साथ चुनाव आयोग के कानूनी सलाहकार भी मौजूद रहेंगे.
दोनों पक्षों को अपनी बात और सबूत रखने को कहा जाएगा. सूत्र बताते हैं कि सुनवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की जा सकती है. लेकिन आयोग किस आधार पर चुनाव चिन्ह का फैसला करेगा? इस बारे में चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार और जाने माने चुनाव विशेषज्ञ केजे राव कहते हैं, ''आयोग को ऐसे मामलों में कई पहलुओं पर गौर करना होता है लेकिन इस बात को खास महत्व दिया जाता है कि विधायक, सांसद और एमएलसी किसके साथ हैं और पार्टी के पदाधिकारियों का रुख क्या है."
मुलायम सिंह यादव ने अपने पक्ष में आयोग को मुख्य रूप से तीन दस्तावेज दिए हैं-
1. समाजवादी पार्टी का संविधान.
2. रामगोपाल यादव की बर्खास्तगी की चिट्ठी.
3. एक पत्र जिसमें कहा गया है कि रामगोपाल ने जो सम्मेलन बुलाया वह असंवैधानिक है.
उधर जवाब में दूसरे पक्ष के याचिकाकर्ता रामगोपाल यादव (अखिलेश यादव के खेमे से) ने आयोग से कहा है कि सम्मेलन बुलाने के लिए उन्हें अधिकृत किया गया था. 55 प्रतिशत सदस्यों ने सम्मेलन के लिए सहमति दी थी जबकि संविधान के मुताबिक 40 प्रतिशत से अधिक सदस्य लिखित में दें तो पार्टी संविधान के हिसाब से आपात अधिवेशन बुलाया जा सकता है. साथ ही रामगोपाल यादव ने 200 से अधिक विधायकों और 15 से अधिक सांसदों के समर्थन की चिट्ठी भी दी है.
इस बात की संभावना भी है कि अगर आयोग दोनों पक्षों की दलीलों से संतुष्ट नहीं होता या दोनों की दलीलों में दम लगता है तो वह चुनाव चिन्ह को जब्त भी कर सकता है. ऐसे में दोनों ही पक्षों को अगले चुनाव में साइकिल के अलावा कोई और चुनाव चिन्ह लेना होगा.
केजे राव कहते हैं कि ऐसे कई मामले पहले भी आयोग के सामने आ चुके हैं जिनमें कांग्रेस का विघटन और जनता दल में टूट के मामले प्रमुख हैं. राव कहते हैं, "समस्या तब पैदा होती है जब दोनों ही पक्ष ढेर सारे सबूत और दस्तावेज पेश कर दें. फिर आयोग को फैसला सुनाने में काफी वक्त लग जाता है. लेकिन इस मामले में ऐसा लगता है कि दो-तीन दिन में फैसला आ जाएगा."
दोनों पक्षों को अपनी बात और सबूत रखने को कहा जाएगा. सूत्र बताते हैं कि सुनवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की जा सकती है. लेकिन आयोग किस आधार पर चुनाव चिन्ह का फैसला करेगा? इस बारे में चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार और जाने माने चुनाव विशेषज्ञ केजे राव कहते हैं, ''आयोग को ऐसे मामलों में कई पहलुओं पर गौर करना होता है लेकिन इस बात को खास महत्व दिया जाता है कि विधायक, सांसद और एमएलसी किसके साथ हैं और पार्टी के पदाधिकारियों का रुख क्या है."
मुलायम सिंह यादव ने अपने पक्ष में आयोग को मुख्य रूप से तीन दस्तावेज दिए हैं-
1. समाजवादी पार्टी का संविधान.
2. रामगोपाल यादव की बर्खास्तगी की चिट्ठी.
3. एक पत्र जिसमें कहा गया है कि रामगोपाल ने जो सम्मेलन बुलाया वह असंवैधानिक है.
उधर जवाब में दूसरे पक्ष के याचिकाकर्ता रामगोपाल यादव (अखिलेश यादव के खेमे से) ने आयोग से कहा है कि सम्मेलन बुलाने के लिए उन्हें अधिकृत किया गया था. 55 प्रतिशत सदस्यों ने सम्मेलन के लिए सहमति दी थी जबकि संविधान के मुताबिक 40 प्रतिशत से अधिक सदस्य लिखित में दें तो पार्टी संविधान के हिसाब से आपात अधिवेशन बुलाया जा सकता है. साथ ही रामगोपाल यादव ने 200 से अधिक विधायकों और 15 से अधिक सांसदों के समर्थन की चिट्ठी भी दी है.
इस बात की संभावना भी है कि अगर आयोग दोनों पक्षों की दलीलों से संतुष्ट नहीं होता या दोनों की दलीलों में दम लगता है तो वह चुनाव चिन्ह को जब्त भी कर सकता है. ऐसे में दोनों ही पक्षों को अगले चुनाव में साइकिल के अलावा कोई और चुनाव चिन्ह लेना होगा.
केजे राव कहते हैं कि ऐसे कई मामले पहले भी आयोग के सामने आ चुके हैं जिनमें कांग्रेस का विघटन और जनता दल में टूट के मामले प्रमुख हैं. राव कहते हैं, "समस्या तब पैदा होती है जब दोनों ही पक्ष ढेर सारे सबूत और दस्तावेज पेश कर दें. फिर आयोग को फैसला सुनाने में काफी वक्त लग जाता है. लेकिन इस मामले में ऐसा लगता है कि दो-तीन दिन में फैसला आ जाएगा."
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