पुरी : भगवान जगन्नाथ की सालाना रथ यात्रा आज से होगी शुरू, जानिए क्यों अधूरी रह गई भगवान की मूर्ति?

ओडिशा के पुरी में नहीं बल्कि दुनिया के अलग-अलग जगहों पर आज यानी रविवार को रथयात्रा का महोत्सव मनाया जा रहा है. इसे गुंडिचा महोत्सव भी कहा जाता है.

पुरी : भगवान जगन्नाथ की सालाना रथ यात्रा आज से होगी शुरू, जानिए क्यों अधूरी रह गई भगवान की मूर्ति?

दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु आज पुरी धाम पहुंच रहे हैं..... (फाइल फोटो)

खास बातें

  • रथयात्रा महोत्सव को गुंडिचा महोत्सव भी कहा जाता है
  • दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु आज पुरी धाम पहुंच रहे हैं
  • हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन रथ यात्रा शुरू होती है
भुवनेश्वर:

ओडिशा के पुरी में नहीं बल्कि दुनिया के अलग-अलग जगहों पर आज यानी रविवार को रथयात्रा का महोत्सव मनाया जा रहा है. इसे गुंडिचा महोत्सव भी कहा जाता है. दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु आज पुरी धाम पहुंच रहे हैं. हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन रथ यात्रा शुरू होती है. आज के दिन भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपने जन्मस्थान श्रीगुंडिचा मंदिर जाते हैं. वहां नौ दिन तक रहते हैं. गुंडिचा मंदिर पुरी श्री जगन्नाथ मंदिर से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर है. गुंडिचा मंदिर को जगन्नाथ स्वामी का 'जन्मस्थल' भी कहा जाता है क्योंकि इस जगह पर दिव्य शिल्पकार विश्वकर्मा ने राजा इन्द्रध्युम्न की इच्छानुसार जगन्नाथ, बलदेव और सुभद्रा के विग्रहों को दारु ब्रम्ह से प्रकट किया था. कई बार मन में यह सवाल उठता है कि भगवान जगन्नाथ,बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति अधूरी क्यों रह गई?
 
क्यों रह गई भगवान की मूर्ति अधूरी: शास्त्र  के अनुसार शिल्पकार विश्वकर्मा ने जब मूर्ति बना रहे थे तब राजा के सामने शर्त रखी कि वह दरवाज़ा बंद करके मूर्ति बनाएंगे और जब तक मूर्ति नहीं बन जाती राजा दरवाज़ा नहीं खोलेंगे. मूर्ति बनने से पहले अगर राजा दरवाज़ा खोलेगा तो वह मूर्ति बनाना छोड़ देंगे. बंद दरवाज़ा के अंदर मूति निर्माण क काम हो रहा है या नहीं यह जानने के लिए राजा रोज़ दरवाज़ा के बहार खड़े होकर मूर्ति बनने की आवाज़ सुनते थे. एक दिन राजा को आवाज़ सुनाई नहीं दी. ऐसे में राजा को लगा कि विश्वकर्मा काम छोड़कर चला गए हैं. राजा ने दरवाजे खोल दिए तब विश्वकर्मा अपने शर्त के अनुसार वहां से ग़ायब हो गए और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति अधूरा रह गई. उसी दिन से हम सब भगवान को इस  रूप में दिख रहे हैं.
 
रथयात्रा के दिन भगवान दारुब्रह्म बन जाते हैं : भगवान जगन्नाथ की यात्रा की शुरुआत काफी पहले से हो जाती है. गुंडिचा महोत्सव की तैयारी पांच महीने पहले से शुरू हो जाती है. जगन्नाथ जी का रथ 'गरुड़ध्वज' या 'कपिलध्वज' कहलाता है. यह रथ 13.5 मीटर ऊंचा होता है और 16 पहियों वाला होता है. प्रभु बलराम के रथ को 'तलध्वज' कहते हैं और यह 13.2 मीटर ऊंचा 14 पहियों का होता है. सुभद्रा का रथ 'पद्मध्वज' कहलाता है. 12.9 मीटर ऊंचा होता है. 12 पहिए के इस रथ में लाल, काले कप़ड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों का प्रयोग होता है. रथयात्रा के दिन प्रभु जगन्नाथ खुद दारुब्रह्म बन जाते हैं. भगवान खुद अपने भक्तों से मिलने के लिए और उनको  मुक्ति देने के लिए अपने मंदिर छोड़कर दारु यानी रथ में प्रवेश करते हैं.  

साल में एक बार पुरी के महाराज जनता को प्रणाम करते हैं : रथयात्रा की  शुरुआत पुरी के महाराज के 'छेरा पहांरा'  के साथ होती है. 'छेरा पहांरा' ले मतलब है महाराज खुद सोने की झाड़ू से रथ के साथ-साथ उस रास्ते में झाड़ू लगते हैं जिस रास्ते में भगवान का रथ निकलने वाला होता है.  महाराज की 'छेरा पहांरा' यानी झाड़ू में सफाई के साथ रथयात्रा शुरू होती है. संस्कृत के विद्वान सुरिन्द्र कुमार मिश्रा का कहना आज का दिन जनता जनार्दन बन जाता है. जो भी भगवान जगन्नाथ के पीठ पुरी में पहुंचता है, वह भगवान की भक्ति में खो जाता है. कहा जाता है कि जनता के अंदर खुद भगवान का बास होता है. इसीलिए आज के दिन और बाहुड़ा यात्रा के दिन खुद पूरी के महाराज अपने प्रजा यानी जनता को हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं. साल भर खुद प्रजा या जनता राजा को प्रणाम करते हुए नज़र आते हैं. आज के दिन मनुष्य के सभी दुःख धारण करने के लिए खुद भगवान दारु का रूप धारण करते हैं.

बाहुड़ा यात्रा : नौ दिन तक श्रीगुंडिचा मंदिर में रहने के बाद प्रभु जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ श्रीमंदिर लौटते हैं. बाहुड़ा यात्रा के दिन भी लाखो संख्या में श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं. बाहुड़ा यात्रा के दिन श्रीमंदिर के अंदर भगवान का प्रवेश नहीं होता है. अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए भगवान एक दिन के लिए रथ पर रहते हैं और अगले दिन पूजा पाठ के साथ मंदिर में प्रवेश करते हैं. इस बार बाहुड़ा यात्रा 3 जुलाई को पड़ रही है. 


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