ये महिला कार्यकर्ता मंगलवार को ही पुणे से छह बसों में भरकर रवाना हुई थीं, और उनका कहना था कि वे अहमदनगर के इस मंदिर में कई शताब्दियों से चली आ रही महिलाओं के भीतरी हिस्से में प्रवेश पर रोक की परंपरा को खत्म करना चाहती हैं। उधर, मंदिर के पुजारियों तथा मंदिर के संचालक बोर्ड के सदस्यों का कहना है कि यह कतई अस्वीकार्य है। इन लोगों ने स्थानीय निवासियों की मदद से मंदिर के चारों ओर महिलाओं की पंक्तियां बनाने का फैसला किया था, ताकि आने वाली प्रदर्शनकारी महिलाओं को रोका जा सके।
राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ट्वीट कर कहा है कि संघर्ष के बजाय बातचीत से हल निकाला जाए। उन्होंने मंदिर प्रबंधन, जिले के डीएम और एसपी को मामले को देखने के लिए कहा है। साथ ही उन्होंने इशारा किया कि हमारी परंपरा ईश्वर पूजन में भेदभाव की नहीं है। उनका कहना है कि प्रथा परंपराओं में समयानुसार बदलाव जरूरी है।
मंदिर के निकट ही रहने वाली एक महिला का कहना था, "किन्हीं और मामलों और इलाकों में जाकर वे समानता के अधिकारों की बात कर सकती हैं, लेकिन वे इतनी पुरानी परंपरा को बदलने की कोशिश क्यों कर रही हैं..." इस महिला का यह भी कहना है कि वह प्रदर्शनकारी महिलाओं को रोकने की कोशिश करेगी।
पुलिस ने कहा था कि महिला प्रदर्शनकारियों के पहुंचने पर हिंसा को भड़कने से रोकने के लिए वे पूरे इलाके में कहीं भी भीड़ को इकट्ठा नहीं होने देंगे।
इस मंदिर के एक हिस्से में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को बरकरार रखने के तरफदार लोगों का कहना है कि 'भगवान शनि के प्रचंड प्रकोप से' महिलाओं को 'हानि' पहुंच सकती है। इस मत का समर्थन अनिता शेटे ने भी किया है, जो हाल ही में मंदिर के गवर्निंग बोर्ड में पहली महिला अध्यक्ष के रूप में चुनी गई हैं।
मंदिर में प्रवेश के नियमों में बदलाव की मुहिम का नेतृत्व कर रहीं कार्यकर्ता तृप्ति देसाई का कहना है, "जब पुरुष वहां जाते हैं, तो सब ठीक है, लेकिन महिलाओं के जाने से वह (मंदिर) अपवित्र हो जाता है...?"
महिलाओं के इस मंदिर में प्रवेश को लेकर लगे प्रतिबंध के खिलाफ प्रदर्शन और अभियान पिछले साल नवंबर में शुरू हुए थे, जब एक महिला पूजा करने के लिए खुले प्लेटफॉर्म तक पहुंच गई थी। बाद में पुजारियों ने उस स्थान का दूध तथा तेल से 'शुद्धिकरण' किया था।
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