रवींद्र वायकर (फाइल फोटो)
- संजय निरुपम ने लगाए मंत्री रवींद्र वायकर पर आरोप
- वायकर ने कहा, यदि कब्जे की 20 एकड़ जमीन दिखा दें तो वे पद छोड़ देंगे
- मुख्यमंत्री के पास है शहरी विकास विभाग
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मुंबई:
खुद पर लगे आरोपों का खुलासा करने के लिए मीडिया के सामने आए महाराष्ट्र के विवादित गृहनिर्माण राज्यमंत्री और शिवसेना नेता रवींद्र वायकर ने अपने बचाव के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय की ढाल बना ली है। वायकर बुधवार को मुंबई में पत्रकारों से मिले। उन पर पिछले हफ्तेभर से भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं। मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व सांसद संजय निरुपम ने वायकर को निशाने पर लिया है।
पुरातत्व विभाग की जमीन पर कंपनी की इमारत का निर्माण
निरुपम का आरोप है कि, पुरातत्व विभाग की मुंबई की जमीन पर गैरकानूनी तरीके से रवींद्र वायकर की कंपनी की इमारत बन रही है। इसके लिए अनुमति वायकर के मंत्री पद पर आने के बाद दी गई। इस लिए वायकर के अधीन SRA विभाग ने ASI के आदेश और HC के निर्देशों का भी उल्लंघन किया है।
एक लाख करोड़ के प्रोजेक्ट में मंत्री लिप्त
इसके अलावा संजय निरुपम का दावा है कि, वायकर मुंबई में साढ़े तीन लाख स्क्वेयर फीट के SRA प्रोजेक्ट्स में लिप्त हैं। इन प्रोजेक्ट्स की कीमत एक हजार करोड़ रूपए बताई गई है। पद पर रहते हुए उन्होंने अपने सरकारी निवास पर माताहत अधिकारियों की बैठक बुलाकर अपनी संलिप्तता के कारोबार को लाभ पहुंचाया है। निरुपम इससे पहले अपने खुलासे में वायकर पर 20 एकड़ सरकारी जमीन हड़पने और उस पर अपनी पत्नी की सामाजिक संगठन के अधीन हेल्थ सेंटर बनाने का आरोप लगा चुके हैं।
संजय निरुपम को दी चेतावनी
एक संवाददाता सम्मेलन में शिवसेना नेता और गृहनिर्माण राज्यमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि, अगर निरुपम उनके कब्जे की 20 एकड़ जमीन दिखा दें तो वे अपना पद छोड़ देंगे। लेकिन, फिलहाल झूठे आरोपों की जिम्मेदारी लेते हुए संजय निरुपम को अपना पद छोड़ देना चाहिए।
शहरी विकास विभाग ने दी अनुमति
लेकिन, वायकर का चौकने वाला खुलासा पद के दुरुपयोग के मामले में था। उन्होंने खुद के मंत्री रहते हुए SRA के प्रोजेक्ट में संलिप्त होने का आरोप नकारा। साथ ही यह दावा किया कि, जोगेश्वरी गुम्फा इलाके में होने वाले निर्माण की अनुमति शहरी विकास विभाग से दी गई है, गृहनिर्माण विभाग से नहीं, जिसके वे मंत्री हैं।
मुख्यमंत्री कार्यालय ने नहीं किया खुलासा
ज्ञात हो कि, महाराष्ट्र में शहरी विकास विभाग महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के पास है। वायकर के दावे पर मुख्यमंत्री कार्यालय से कोई खुलासा नहीं किया गया है। जाते जाते वायकर ने यह भी कहा कि, उन पर लगे आरोपों में बताए गए विवादित निर्माण कामों को अनुमति कैसे मिली यह सवाल मुख्यमंत्री और विभाग के सचिव से पूछा जाना चाहिए।
पुरातत्व विभाग की जमीन पर कंपनी की इमारत का निर्माण
निरुपम का आरोप है कि, पुरातत्व विभाग की मुंबई की जमीन पर गैरकानूनी तरीके से रवींद्र वायकर की कंपनी की इमारत बन रही है। इसके लिए अनुमति वायकर के मंत्री पद पर आने के बाद दी गई। इस लिए वायकर के अधीन SRA विभाग ने ASI के आदेश और HC के निर्देशों का भी उल्लंघन किया है।
एक लाख करोड़ के प्रोजेक्ट में मंत्री लिप्त
इसके अलावा संजय निरुपम का दावा है कि, वायकर मुंबई में साढ़े तीन लाख स्क्वेयर फीट के SRA प्रोजेक्ट्स में लिप्त हैं। इन प्रोजेक्ट्स की कीमत एक हजार करोड़ रूपए बताई गई है। पद पर रहते हुए उन्होंने अपने सरकारी निवास पर माताहत अधिकारियों की बैठक बुलाकर अपनी संलिप्तता के कारोबार को लाभ पहुंचाया है। निरुपम इससे पहले अपने खुलासे में वायकर पर 20 एकड़ सरकारी जमीन हड़पने और उस पर अपनी पत्नी की सामाजिक संगठन के अधीन हेल्थ सेंटर बनाने का आरोप लगा चुके हैं।
संजय निरुपम को दी चेतावनी
एक संवाददाता सम्मेलन में शिवसेना नेता और गृहनिर्माण राज्यमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि, अगर निरुपम उनके कब्जे की 20 एकड़ जमीन दिखा दें तो वे अपना पद छोड़ देंगे। लेकिन, फिलहाल झूठे आरोपों की जिम्मेदारी लेते हुए संजय निरुपम को अपना पद छोड़ देना चाहिए।
शहरी विकास विभाग ने दी अनुमति
लेकिन, वायकर का चौकने वाला खुलासा पद के दुरुपयोग के मामले में था। उन्होंने खुद के मंत्री रहते हुए SRA के प्रोजेक्ट में संलिप्त होने का आरोप नकारा। साथ ही यह दावा किया कि, जोगेश्वरी गुम्फा इलाके में होने वाले निर्माण की अनुमति शहरी विकास विभाग से दी गई है, गृहनिर्माण विभाग से नहीं, जिसके वे मंत्री हैं।
मुख्यमंत्री कार्यालय ने नहीं किया खुलासा
ज्ञात हो कि, महाराष्ट्र में शहरी विकास विभाग महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के पास है। वायकर के दावे पर मुख्यमंत्री कार्यालय से कोई खुलासा नहीं किया गया है। जाते जाते वायकर ने यह भी कहा कि, उन पर लगे आरोपों में बताए गए विवादित निर्माण कामों को अनुमति कैसे मिली यह सवाल मुख्यमंत्री और विभाग के सचिव से पूछा जाना चाहिए।
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