एलजीबीटीक्यू के एक कार्यक्रम में जेएनयू के छात्र शरजील इमाम के समर्थन में ‘देश विरोधी' नारेबाजी करने के लिए देशद्रोह के आरोप में कार्यकर्ता उर्वशी चूडावाला की अग्रिम जमानत याचिका को यहां की एक अदालत ने बुधवार को खारिज कर दिया. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रशांत राजवैद्य ने चूड़ावाला की गिरफ्तारी पूर्व जमानत याचिका को खारिज कर दिया. अदालत ने चूड़ावाला (22) को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत देने से भी इंकार कर दिया. उच्च न्यायालय में अर्जी दायर करने के लिए उन्होंने राहत मांगी थी. बचाव पक्ष ने दलील देते हुए अदालत में कहा, 'पुलिस ने पूरे वीडियो में सिर्फ एक लाइन चुनी, शरजील तेरे सपनों को मंजिल तक पहुंचाएंगे. जबकि उसमे और भी नारे हैं. अगर एक बार मान भी लें कि जोश में आकर नारा लगा दिया, इसका मतलब ये नहीं कि उसका कोई इरादा था. देशद्रोह का आरोप लगाकर पुलिस अलग-अलग आंदोलन करने वालो को डराना चाहती है. बचाव पक्ष ने ये भी दावा किया कि उर्वशी जांच में सहयोग के लिए तैयार है. बचाव पक्ष ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक सबूत पुलिस के पास मौजूद है इसलिये छेड़छाड़ का कोई सवाल नहीं है. वो सिर्फ 22 साल की छात्रा है. मार्च में फाइनल परीक्षा है, गिरफ्तारी से करियर खराब हो जाएगा और परिवार पर भी सामाजिक दबाव बनेगा.
अदालत में एक मौका ऐसा भी आया जब जज ने बीच में रोककर बचाव पक्ष से पूछा कि शरजील के समर्थन में नारे वाली लाइन पर आपकी तरफ से कोई विवाद नहीं है? बचाव पक्ष ने कहा कि ये वीडियो मॉर्फ है या नहीं उसपर निर्भर करता है. जज ने फिर पूछा - शरजील के सपने क्या हैं? बचाव पक्ष ने कहा - वो दिल्ली में बंद है. उस पर देशद्रोह का आरोप है पर अभी साबित नहीं हुआ है.
दूसरी तरफ सरकारी वकील ने शरजील इमाम के ऊपर लगे आरोप की गंभीरता बताते हुए कहा कि उसने असम को अलग कर देश तोड़ने की बात की है. सरकरी वकील ने आरोपी द्वारा शरजील के समर्थन में शेयर पोस्ट की हार्ड कॉपी अदालत को देते हुए बताया कि पुलिस जांच की बात पता चलते ही आरोपी ने अपना सोशल मीडिया अकाउंट भी डिलीट कर दिया. मामला दर्ज करने के पहले आरोपी से सफाई लेने की कोशिश की गई लेकिन वो नहीं आई. बाद में उसका फोन बंद हो गया. उसकी मां के जरिये संपर्क की कोशीश की गई पर वो नहीं आई.
बचाव पक्ष को बहुत उम्मीद थी कि आरोपी की उम्र और उसकी पढ़ाई को देखते हुए अदालत उसे अग्रिम जमानत दे देगी. तकरीबन सवा घंटे की बहस के बाद अदालत ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि इस मामले में प्रथम दृष्टया आईपीसी 124A के तहत मामला बनता नजर आता है और पुलिस को जांच का पूरा अवसर मिलना चहिये. यहां तक अदालत ने आरोपी को बॉम्बे हाई कोर्ट में फैसले की चुनौती देने के लिए कोई अंतरिम राहत देने से भी इनकार कर दिया.
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