एक आरटीआई आवेदन पर दी गई जानकारी में यह खुलासा हुआ है...
भोपाल:
मध्यप्रदेश में व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) के लिए वर्ष 2012 से 2013 के बीच खरीदे गए 17.56 लाख रुपये कीमत के कंप्यूटरों की खरीद काकोई रिकार्ड नहीं है. एक आरटीआई आवेदन पर दी गई जानकारी में यह खुलासा हुआ है. एक ऑडिट रिपोर्ट से पता चला कि परीक्षा बोर्ड कंप्यूटरों की खरीद की मूल फाइलें, उनकी खरीद की वजह या उनकी खरीद के रजिस्टर ऑडिटर के सामने पेश नहीं कर सका.
आरटीआई आवेदन के माध्यम से ऑडिट रिपोर्ट प्राप्त करने वाले कार्यकर्ता अजय दुबे ने आईएएनएस को बताया, "कंप्यूटरों की खरीद के रिकार्ड बहुत जरूरी हैं, क्योंकि कंप्यूटर से उत्पन्न डिजिटल रिकार्ड और एक्सेल शीट आपराधिक मामलों के महत्वपूर्ण प्रमाण होते हैं."
व्यापम में घोटाला यूं तो कई वर्षो से चल रहा था, लेकिन इसका खुलासा वर्ष 2013 में हुआ. शिवराज सिंह चौहान के राज में हुए इस रहस्यमय घोटाले से जुड़े 45 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. राज्य स्तर पर जांच का आदेश देकर इसे दबाने का भरपूर प्रयास किया गया, लेकिन मौतों का रहस्य जानने के लिए गए समाचार चैनल 'आजतक' के पत्रकार अक्षय सिंह की भी जब मौत हो गई, तब सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को जांच का आदेश दिया. जांच दो साल से चल रही है. लेकिन यह केंद्रीय जांच एजेंसी अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है और अभी शायद ही पहुंचे, क्योंकि राज्य में अगले साल चुनाव है. शिवराज केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के संसदीय बोर्ड के सदस्य हैं, इसलिए सीबीआई उनकी छवि पर शायद ही आंच आने देगी.
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यह घोटाला बोर्ड द्वारा आयोजित प्रवेश परीक्षाओं में हेराफेरी से संबंधित है और कहा जाता है कि इसमें राज्य के नेताओं, वरिष्ठ अधिकारियों और व्यवसायी शामिल हैं. राज्य के शिक्षा मंत्री एक साल जेल में रहे, वह जमानत पर छूटे हैं.
ऑडिट रिपोर्ट में यह भी सवाल उठाया गया है कि बोर्ड ने 2012 में फीस के रूप में एकत्र 6.95 लाख रुपये वापस क्यों किए जो राज्य सरकार की अनुमति के बगैर हवलदार की भर्ती परीक्षा में उपस्थित हुए अभ्यर्थियों से लिए गए थे. व्यापम स्थानीय निधि लेखा परीक्षा विभाग को किसी भी रिकार्ड या स्पष्टीकरण देने में विफल रहा है, क्योंकि यह राशि परिवहन विभाग को लौटा दी गई थी.
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दुबे को अप्रैल, 2017 में स्थानीय निधि लेखा परीक्षा से रिपोर्ट मिली थी जो राज्य सरकार के वित्त विभाग के अंतर्गत आती है. उस रिपोर्ट के अनुसार, इस परीक्षा की फीस ओबीसी और अनारक्षित श्रेणियों के उम्मीदवारों के लिए 500 रुपये और अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) उम्मीदवारों के लिए 250 रुपये थी. इस दौरान 471 ओबीसी, अनारक्षित श्रेणी के 689 उम्मीदवार, एससी के 314 उम्मीदवार और एसटी के 148 अभ्यर्थियों से फीस प्राप्त हुई.
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इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी पता चला है कि व्यापम का परीक्षा अनुभाग यह बताने में भी विफल रहा है कि 2012-13 में कितनी परीक्षाओं का आयोजन किया गया, इस दौरान प्रत्येक परीक्षा में एसटी, एससी, ओबीसी और अन्य कितने आवेदक शामिल हुए, प्रत्येक परीक्षा का प्रवेश शुल्क और 2012-13 में परीक्षा से उत्पन्न कुल आय कितनी हुई.
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मध्यप्रदेश सालों से व्यापम घोटाले में फंसा हुआ था, लेकिन यह मामला तब प्रकाश में आया जब 2013 में 2009 की मेडिकल प्रवेश परीक्षा में किसी और के नाम पर परीक्षा देने वालों का पदार्फाश हुआ. इस सिलसिले में 20 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी, जिसके बाद से मामले से जुड़े करीब 45 लोगों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो चुकी है. मौतों को संज्ञान में लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने व्यापम ही नहीं, इस मामले से जुड़ी मौतों की सीबीआई जांच के आदेश दिए. हाल ही में 26 जुलाई को व्यापम घोटाले के अभियुक्त प्रवीण यादव ने कथित तौर पर मध्यप्रदेश के मुरैना स्थित अपने घर में आत्महत्या कर ली थी, जबकि उसकी अगले दिन जबलपुर उच्च न्यायालय में पेशी थी.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
आरटीआई आवेदन के माध्यम से ऑडिट रिपोर्ट प्राप्त करने वाले कार्यकर्ता अजय दुबे ने आईएएनएस को बताया, "कंप्यूटरों की खरीद के रिकार्ड बहुत जरूरी हैं, क्योंकि कंप्यूटर से उत्पन्न डिजिटल रिकार्ड और एक्सेल शीट आपराधिक मामलों के महत्वपूर्ण प्रमाण होते हैं."
व्यापम में घोटाला यूं तो कई वर्षो से चल रहा था, लेकिन इसका खुलासा वर्ष 2013 में हुआ. शिवराज सिंह चौहान के राज में हुए इस रहस्यमय घोटाले से जुड़े 45 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. राज्य स्तर पर जांच का आदेश देकर इसे दबाने का भरपूर प्रयास किया गया, लेकिन मौतों का रहस्य जानने के लिए गए समाचार चैनल 'आजतक' के पत्रकार अक्षय सिंह की भी जब मौत हो गई, तब सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को जांच का आदेश दिया. जांच दो साल से चल रही है. लेकिन यह केंद्रीय जांच एजेंसी अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है और अभी शायद ही पहुंचे, क्योंकि राज्य में अगले साल चुनाव है. शिवराज केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के संसदीय बोर्ड के सदस्य हैं, इसलिए सीबीआई उनकी छवि पर शायद ही आंच आने देगी.
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ऑडिट रिपोर्ट में यह भी सवाल उठाया गया है कि बोर्ड ने 2012 में फीस के रूप में एकत्र 6.95 लाख रुपये वापस क्यों किए जो राज्य सरकार की अनुमति के बगैर हवलदार की भर्ती परीक्षा में उपस्थित हुए अभ्यर्थियों से लिए गए थे. व्यापम स्थानीय निधि लेखा परीक्षा विभाग को किसी भी रिकार्ड या स्पष्टीकरण देने में विफल रहा है, क्योंकि यह राशि परिवहन विभाग को लौटा दी गई थी.
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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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