छत्तीसगढ़ में सुकमा के मिनपा में हुए मुठभेड़ को लेकर माओवादियों के दक्षिण सब जोनल ब्यूरो ने प्रेस नोट जारी किया है, जिसमें उन्होंने तीन माओवादियों के मारे जाने पुष्टि की है. शहीद जवानों से बरामद हथियारों की तस्वीर भी माओवादियों ने जारी की है. मुठभेड़ के दौरान मारे गए तीनों माओवादी नेता बीजापुर जिले के बताए गए. मारे गए गए नक्सलियों के अंतिम संस्कार के फोटो भी नक्सलियों ने जारी किये हैं. इस हमले में डीआरजी और एसटीएफ के 17 जवान शहीद हो गये थे.
'ऑपरेशन प्रहार' में इन दिनों रोज़ ये जवान निकलते हैं, शुक्रवार को भी एसटीएफ़ और डीआरजी के जवानों की एक टीम दोरनापाल से निकली हुई थी. बुरकापाल में इस टीम में सीआरपीएफ़ के जवान भी शामिल हो गये. इस टीम ने नक्सलियों को चौंकाने की सोची लेकिन शनिवार दोपहर चिंतागुफा थाना के कसालपाड़ और मिनपा के बीच घात लगाकर बैठे माओवादियों ने इन जवानों को चारों तरफ़ से घेर कर कोराज डोंगरी की पहाड़ी के ऊपर से हमला बोल दिया. हमला ऐसा भयानक की शव तक अगले दिन निकाले गये.
कैसा है ये इलाका बस अंदाज़ लगाएं कि इस इलाके में नक्सली फिर पहुंचे जिंदा कारतूस, कारतूस के खाली खोखे और जवानों के बचे हुए सामान उठाने... अमूमन नक्सली घटना को अंजाम देकर वहां से दूर निकल जाते हैं लेकिन यहां घटना के तीसरे दिन फिर से नक्सलियों की उपस्थिति ने सभी को चौंका दिया. 'नक्सल के अजगर' कहे जाने वाले हिड़मा ने आसानी से इनका शिकार कर लिया, इस दस्ते में कॉडर में टॉप सेंट्रल टीम के सदस्य होते हैं, जिनका ह्यूमन इंटेलिजेंस नेटवर्क कमाल का माना जाता है.
सुरक्षाकर्मियों के पास भी कोबरा और 150 बटालियन के लड़ाके भी थे, यानी कुल चार टीमें लेकिन वो लौट नहीं पाए.
इन्होंने डीआरजी को अपने जाल में फंसाया, वो धमाके करते और डीआरजी के जवान अपनी गोलियां बर्बाद करते रहे, बताते हैं कि इस बार नक्सली बुलेटप्रूफ जैकेट भी पहनकर आए थे ... अपनी गुरिल्ला तकनीक से उन्होंने सुरक्षाबलों को उलझाकर रख दिया, जवानों को बेरहमी से मारा फिर उनके हथियार भी लूटकर ले गए.
कसालपाड़ में दिसंबर 2014 में माओवादियों के हमले में सीआरपीएफ़ की 223वीं बटालियन के असिस्टेंट कमांडेंट और डिप्टी कमांडेंट समेत 14 जवान मारे गये थे. घने जंगलों से घिरे इस इलाक़े में पुलिस ने कई बार अपना कैंप खोलने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुए.
(बस्तर से विकास के इनपुट के साथ)
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