मध्य प्रदेश के बैतूल से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है. यहां नर्सिंग स्टाफ हड़ताल के चौथे दिन एक दम्पत्ति ने अपने नवजात शिशु को खो दिया. प्रदेश में जारी नर्सिंग स्टाफ की हड़ताल और सरकारी अस्पतालों की बदइंतज़ामी के चलते एक आदिवासी महिला को डिलीवरी के वक्त सही ट्रीटमेंट नहीं मिलने से उसके नवजात बच्चे की मौत हो गई. इस घटना से परिवार अस्पताल को लेकर गुस्से में है.
जानकारी के अनुसार गुरुवार सुबह 9 बजे घोड़ाडोंगरी से एक प्रसूता को जिला अस्पताल रैफर किया गया था. जिला अस्पताल में भर्ती करने के बाद शाम तक प्रसूता की हालत बिल्कुल सामान्य थी. इस दौरान उसके परिजनों ने कई बार डॉक्टरों और नर्सों से बात करने का प्रयास किया लेकिन नर्सिंग हड़ताल की वजह से कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला. नर्सिंग हड़ताल होने की वजह से जिला अस्पताल प्रबंधन प्रशिक्षुओं के भरोसे व्यवस्था चला रहे थे. वहीं, पूरे दिन प्रसूता को वार्ड में एक बेड तक नसीब नहीं हुआ.
मामले में प्रसूता की ननद रवीना बारस्कर ने बताया कि प्रसूता को जब दर्द शुरू हुआ तो मौके पर ना कोई डॉक्टर था और ना नर्सिंग स्टाफ. जब उसकी हालत बिगड़ने लगी तब कहीं एक डॉक्टर ने उसकी सुध ली और उसे डिलीवरी रूम में ले जाया गया. इस बीच डॉक्टर बोली कि बच्चा गर्भाशय में फंस गया है. अकेली डॉक्टर मामला सम्भाल नहीं सकी और आखिरकार बच्चे की मौत हो गई. बच्चे की मौत के बाद साथ आए परिजनों में शामिल एक शख्स ने कहा कि जिला अस्पताल में आदिवासियों से ठीक व्यवहार नहीं होता है. आज हड़ताल की वजह से एक नवजात की मौत हो गई, इसके बाद उन्होंने मामले की जांच की मांग उठाई. इधर परिजनों ने भी कहा की यह गरीब आदिवासियों पर अत्याचार है जिस पर कठोर कार्रवाई होना चाहिए. इस घटना के बाद से जिला अस्पताल प्रबंधन कुछ भी बोलने से बच रहा है.
बता दें कि तीन सौ बेड के जिला अस्पताल में 172 का रेगुलर नर्सिंग स्टाफ है. वहीं 40 संविदा के पद पर पदस्थ है और जिले में संचालित नर्सिंग कॉलेज के पैरामेडिकल स्टाफ लगभग 90 लोग अलग-अलग शिफ्ट में काम करते हैं लेकिन शुक्रवार से संविदा नर्सिंग स्टाफ के हड़ताल पर जाने के बाद जिला अस्पताल की व्यवस्था और ज़्यादा चरमरा गई, जिससे स्वास्थ्य महकमे की सांसें फूलने लगी.
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