MP : मुख्‍यमंत्री ने किया बच्चे का "सरकारी नामकरण पेसा", आदिवासी मां-बाप का आरोप-अफसरों ने जबरन रखा नाम

बच्चे की दादी सुखवती मरावी ने भी कहा कि हमने हेमराज नाम रखा था, मुख्यमंत्री आए तो पेसा नाम रखा दिया. परिजन कहते हैं एक दिन के लिए सरकारी कर्मचारियों के कहने पर बच्चे का नाम बदलने के लिए राजी हुए थे. 

भोपाल:

मध्यप्रदेश में आदिवासियों के लिए पेसा एक्ट (PESA ACT) लागू होने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह लगातार इस कानून को लेकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं. इसी अभियान के तहत पिछले हफ्ते वो डिंडौरी आए और एक बच्चे का नाम ही पेसा रख दिया. अखबारों में ये बात सुर्खियां बन गईं. ये और बात है कि बच्चे के मां-बाप कह रहे हैं कि बच्चे का नाम पेसा नहीं हेमराज मरावी है.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शुक्रवार को डिंडौरी जिले के गुरैया गांव पहुंचे. ग्रामसभा में वो बात पेसा की रखने वाले थे, भीड़ में दीपमाला भी अपने तीन महीने के बच्चे को लेकर आईं, बच्चे को हाथों में लेकर सीएम ने दुलार किया और उसका नाम 'पेसा' रख दिया गया. 

ये और बात है कि जब एनडीटीवी बच्चे के गांव पहुंचा तो परिजनों ने दिखाया कि जन्मप्रमाण पत्र में बाकायदा बच्चे का नाम हेमराज सिंह दर्ज़ है. बच्चे के परिजनों का कहना है कि मुख्यमंत्री के आने के एक दिन पहले ही दो कथित सरकारी कर्मचारी उनके घर आये थे और उनके कहने पर ही बच्चे की मां दीपमाला नामकरण कराने सीएम के पास पहुंच गई. 

उनका ये भी कहना है कि उनके बेटे का नाम हेमराज ही ठीक उन्होंने कहा कि हमारे गांव में मुख्यमंत्री आए थे. इससे पहले एक सर और मैडम बोले बच्चे को लेकर आना. उसका नाम हेमराज मरावी ही है. 

बच्चे की दादी सुखवती मरावी ने भी कहा कि हमने हेमराज नाम रखा था, मुख्यमंत्री आए तो पेसा नाम रखा दिया. परिजन कहते हैं एक दिन के लिए सरकारी कर्मचारियों के कहने पर बच्चे का नाम बदलने के लिए राजी हुए थे. 

सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री के सामने वाहवाही लूटने ये सरकारी नामकरण हुआ, उनका पक्ष जानने के लिए हमने कलेक्टर सहित दूसरे अधिकारियों के दरवाजे पर दस्तक दी लेकिन किसी ने कैमरे पर कुछ नहीं कहा. 

वहीं, इस मुद्दे पर कांग्रेस-बीजेपी गुत्थमगुत्था है. बीजेपी प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने कहा डिंडौरी में जिस विषय को लेकर कांग्रेस भ्रामक प्रचार कर रही है कि बच्चे का मूल नाम हेमराज है, लेकिन मुख्यमंत्री के समक्ष उनके परिवार ने उसका उपनाम पेसा रखा है, मुझे लगता है कि अगर उपनाम के रूप में पेसा नाम रखा जाए, परिवार की सहमति तो विषय समाप्त हो जाता है.

वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता अवनीश बुंदेला ने कहा सनातन संस्कृति ये कहती है कि लगन, घड़ी के हिसाब से लगन राशि निकाली जाती है. मां-बाप शिद्दत से नाम रखते हैं. इसलिए मैं कहता हूं कि सनातन संस्कृति का जितना नुकसान जितना बीजेपी ने किया है उतना किसी ने नहीं किया. ये आम व्यक्ति, उसके बच्चे का मजाक है, आपकी योजनाओं की तरह ये नामकरण भी झूठा है.

15 नवम्बर को मध्यप्रदेश में बहुप्रतीक्षित पेसा एक्ट लागू हो गया, जनजाति गौरव दिवस के दिन शहडोल में बड़ा आयोजन हुआ जिसमें भारत की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू मुख्य अतिथि थीं. 1996 में कांग्रेस ने पेसा यानी पंचायत अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार कानून बनाया, कई राज्यों और 26 साल बाद ये मध्यप्रदेश में लागू हो गया. वैसे 1996 में मध्यप्रदेश पंचायती राज को लागू करने वाला पहला राज्य था.

मुख्य तौर पर पेसा एक्ट की तीन प्रमुख बातें हैं- जल, जंगल, जमीन हर साल पटवारी को गांव, जमीन का नक्शा, खसरा नकल, गाँव में लाकर ग्राम सभा में दिखाने होंगे, जिससे रिकॉर्ड में कोई गड़बड़ी न कर सके. गड़बड़ी होने पर ग्राम सभा को उसे ठीक करने का अधिकार होगा. किसी योजना के लिये जमीन लेने के लिये ग्राम सभा की सहमति आवश्यक होगी. रेत खदान, गिट्टी-पत्थर के ठेके देना है या नहीं यह भी ग्राम सभा तय करेगी. ग्राम सभा तालाबों का प्रबंधन करेगी. 

वनोपज का संग्रहण एवं न्यूनतम मूल्य निर्धारण करेगी. मनरेगा के पैसे से कौन सा काम कराया जाये, ये ग्राम सभा ही तय करेगी. छोटे झगड़े सुलझाने का अधिकार भी ग्राम सभा को होगा. जनजातीय क्षेत्र में किसी थाने में एफआईआर दर्ज होने पर इसकी सूचना ग्राम सभा को देनी होगी.

स्कूल, स्वास्थ्य केन्द्र, आंगनवाड़ी केन्द्र, आश्रम शालाएं, छात्रावास के निरीक्षण का अधिकार भी ग्राम सभा को होगा. ग्राम सभाएं आदिवासी क्षेत्र में लेबर का रोस्टर बना सकेंगे. ग्राम सभा अवैध साहूकारी रोक सकती है. ग्राम सभाएं तय शराब बिक्री और जगह तय कर सकती हैं.

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