
शिवराज सिंह चौहान (फाइल फोटो)
भोपाल:
मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार गांवों के बूते भोपाल में राज करती आ रही है, लेकिन इस बार हालात अलग लग रहे हैं. पहले किसान, अब सरपंच भी सीधे सरकार को चुनौती दे रहे हैं. उनका साफ कहना है कि सरकार ने पंचायती राज व्यवस्था को विकेन्द्रीकृत करने के बजाए केन्द्रीकृत कर दिया है. मध्य प्रदेश के अलग-अलग ज़िलों से आए सरपंच, ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भागर्व को अपनी व्यथा सुनाने आए, लेकिन मंत्री जी ने राहत देने से पहले थोड़े कड़े तेवर दिखाते हुए हिदायत दी कि पहले नेतागिरी बंद करो.
मध्य प्रदेश में तकरीबन 23000 सरपंच हैं, जिनमें दो तिहाई बीजेपी को समर्थन देते हैं, लेकिन नाराजगी के बाद इनका दावा है कि सरकार ने अकेले मनरेगा में पिछले 3 महीने से 3670 लाख मज़दूरी और 24112 लाख रु. सामग्री का भुगतान नहीं किया, जिससे हर सरपंच पर लगभग 10-12 लाख रुपये का कर्ज हो गया है. ऐसे में वो आने वाले चुनावों में सरकार को सबक सिखाने की धमकी भी दे रहे हैं.
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सरपंच संघ के संयोजक गौरव श्रीवास्तव ने कहा कि काफी दिनों से सिर्फ आश्वासन मिल रहा है. मनरेगा में काम कर रहे हैं, मगर 6 महीने से सामग्री का भुगतान नहीं हुआ. मजदूरों के खाते में मजदूरी जा रही है, हमसे दबाव डालकर काम करवाया जा रहा है. मरनेगा, ईपीओ, सामान खरीदने पर जीएसटी लग रहा है. पंचायत विकेन्द्रीकृत करने के बजाए केन्द्रीकृत कर दिया. हर योजना भोपाल से डाली जाती है. मध्य प्रदेश शासन को 2018 में बहुत भारी पड़ेगा.
सरकार कह रही है कि चुनाव से पहले छोटी समस्या को बड़ा रंग दिया जा रहा है. वहीं कांग्रेस का आरोप है कि सरकार ने पंचायती राज व्यवस्था को पूरी तरह खत्म कर दिया है. बीजेपी प्रवक्ता डॉ हितेष बाजपेयी ने कहा कि 7 महीने चुनाव को बचे हैं, सब राजनीतिक कार्यकर्ता हैं. मैं नहीं कहता सारी समस्या निर्मूल हैं, लेकिन छोटी बातों को राजनीतिक रंग दिया जाएगा जिसका सामना करने को हम तैयार हैं. वहीं नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा कि पूरे अधिकार केन्द्रीकृत हो गये, हर बार धरने-आंदोलन हुए, उनके ऊपर लाठी चली. सरपंच भी ध्यान दें व्यवस्था नहीं सुधरेगी, जब तक सरकार रहेगी. बीजेपी ने पंचायती राज को खत्म कर दिया है.
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मंदसौर आंदोलन के दौरान किसानों का गुस्सा फूटा, अक्टूबर तक राज्य सरकार पर मनरेगा भुगतान का लगभग 1200 करोड़ रूपये बकाया था. अब इसी मुद्दों पर सरपंचों की नाराजगी कहीं सरकार पर वाकई भारी ना पड़ जाए, क्योंकि राज्य में नवंबर में चुनाव होने हैं.
मध्य प्रदेश में तकरीबन 23000 सरपंच हैं, जिनमें दो तिहाई बीजेपी को समर्थन देते हैं, लेकिन नाराजगी के बाद इनका दावा है कि सरकार ने अकेले मनरेगा में पिछले 3 महीने से 3670 लाख मज़दूरी और 24112 लाख रु. सामग्री का भुगतान नहीं किया, जिससे हर सरपंच पर लगभग 10-12 लाख रुपये का कर्ज हो गया है. ऐसे में वो आने वाले चुनावों में सरकार को सबक सिखाने की धमकी भी दे रहे हैं.
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सरपंच संघ के संयोजक गौरव श्रीवास्तव ने कहा कि काफी दिनों से सिर्फ आश्वासन मिल रहा है. मनरेगा में काम कर रहे हैं, मगर 6 महीने से सामग्री का भुगतान नहीं हुआ. मजदूरों के खाते में मजदूरी जा रही है, हमसे दबाव डालकर काम करवाया जा रहा है. मरनेगा, ईपीओ, सामान खरीदने पर जीएसटी लग रहा है. पंचायत विकेन्द्रीकृत करने के बजाए केन्द्रीकृत कर दिया. हर योजना भोपाल से डाली जाती है. मध्य प्रदेश शासन को 2018 में बहुत भारी पड़ेगा.
सरकार कह रही है कि चुनाव से पहले छोटी समस्या को बड़ा रंग दिया जा रहा है. वहीं कांग्रेस का आरोप है कि सरकार ने पंचायती राज व्यवस्था को पूरी तरह खत्म कर दिया है. बीजेपी प्रवक्ता डॉ हितेष बाजपेयी ने कहा कि 7 महीने चुनाव को बचे हैं, सब राजनीतिक कार्यकर्ता हैं. मैं नहीं कहता सारी समस्या निर्मूल हैं, लेकिन छोटी बातों को राजनीतिक रंग दिया जाएगा जिसका सामना करने को हम तैयार हैं. वहीं नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा कि पूरे अधिकार केन्द्रीकृत हो गये, हर बार धरने-आंदोलन हुए, उनके ऊपर लाठी चली. सरपंच भी ध्यान दें व्यवस्था नहीं सुधरेगी, जब तक सरकार रहेगी. बीजेपी ने पंचायती राज को खत्म कर दिया है.
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मंदसौर आंदोलन के दौरान किसानों का गुस्सा फूटा, अक्टूबर तक राज्य सरकार पर मनरेगा भुगतान का लगभग 1200 करोड़ रूपये बकाया था. अब इसी मुद्दों पर सरपंचों की नाराजगी कहीं सरकार पर वाकई भारी ना पड़ जाए, क्योंकि राज्य में नवंबर में चुनाव होने हैं.
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