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This Article is From Jul 04, 2022

महंगाई से ठंडे हुए गैस चूल्हे, उज्ज्वला के हितग्राही फिर से लकड़ी जलाकर भोजन पकाने लगे

रसोई गैस के बढ़ते दाम से आम उपभोक्ताओं को भी दिक्कत, पिछले एक साल में रसोई गैस के 4.49 करोड़ उपभोक्ताओं ने एक बार भी सिलेंडर रिफिल नहीं कराया

महंगाई से ठंडे हुए गैस चूल्हे, उज्ज्वला के हितग्राही फिर से लकड़ी जलाकर भोजन पकाने लगे
प्रतीकात्मक तस्वीर.
भोपाल:

महंगाई की वजह से उज्ज्वला योजना (Ujjwala Yojana) के कई हितग्राही वापस चूल्हा फूंकने लगे हैं. हालांकि सरकारी तेल कंपनियों से मिले आंकड़े बताते हैं कि करोड़ों आम उपभोक्ता भी गैस चूल्हे से तौबा करने लगे हैं. सरकारी पोस्टरों में उज्ज्वला के हितग्राही भले ही गैस-चूल्हा जला रहे हों, लेकिन हकीकत में वे लकड़ी का चूल्हा फूंकने लगे हैं. रसोई गैस (LPG) के दाम उनकी जेब पर भारी पड़ रही है. 

छत्तीसगढ़ में निलजा गांव की अनुका बाई उज्ज्वला की हितग्राही हैं लेकिन चूल्हा फूंक रही हैं. हितग्राहियों के लिए रिफिल के रेट में 200 रुपये कम किए गए, फिर भी हिम्मत नहीं है.

अनुका बाई ने बताया कि, ''फागुन में गैस सिलेंडर मिला था. 1100 रुपए गैस सिलेंडर की कीमत हो गई है, भरा नहीं पा रहे हैं. जब मिला था, उसके बाद खत्म हो गया और उसके बाद से भरा नहीं सके.'' उन्होंने 200 रुपये कम किए जाने के सवाल पर कहा कि, ''फिर भी बहुत महंगाई है. लकड़ी बीनकर लाते है, उसके बाद चूल्हा जलता है. चूल्हे में खाना बनाने से दिक्कत होती है.''

इसी गांव में अखिलेश वर्मा, द्रौपदी वर्मा जैसे सामान्य ग्राहक भी हैं जो महीनों से सिलेंडर नहीं भरवा पा रहे हैं. चूल्हे, सिगड़ी में खाना बना रहे हैं. 

अखिलेश वर्मा ने कहा कि, ''महंगाई की वजह से तकलीफ हो रही है. सिलेंडर 1100 का हो गया है. पांच-छह महीने से हमने एक सिलेंडर नहीं भराया है. घर में इंडक्शन चूल्हा, सिगड़ी में खाना बनता है. जब सस्ता था तो गैस खत्म होने पर भरा लेते थे. अब महंगाई हो गई है तो हम उसे भरा नहीं पाते हैं. अगर पांच-छह सौ रुपये का हो जाए तो चल जाएगा, लेकिन अब जस्ट डबल हो गया है. गांव के कई सारे ऐसे लोग हैं जो सिलेंडर नहीं भरा पा रहे हैं.''

द्रौपदी वर्मा का कहना है कि, ''महंगाई इतनी बढ़ गई है कि गैस नहीं भरवा पा रहे हैं. सात महीने से गैस नहीं भराई है. महंगाई इतनी है कि गैस कैसे यूज करेंगे? चूल्हे और सिगड़ी में खाना बनाते हैं. जब सस्ता था तब हम भरा लेते थे. 500 रुपये कम हो जाए तब भरा सकते हैं. चूल्हे में बनाने से परेशानी होती है. चूल्हे में दो घंटे लगते हैं, गैस से एक घंटे में खाना बन जाता है.''

सूचना के अधिकार के तहत नीमच के चंद्रशेखर गौड़ ने जो आंकड़े जुटाए हैं वे बताते हैं कि 2021-22 में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के 2.8 करोड़ ग्राहकों ने कोई रिफिल नहीं लिया, जबकि 62.1 ग्राहकों ने सिर्फ एक बार रिफिल करवाया. 

वहीं 2021-22 में हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन के 49.44 लाख ग्राहकों ने घरेलू गैस का एक भी सिलेंडर नहीं भराया, जबकि 33.58 लाख व्यक्तियों ने महज एक सिलेंडर भराया.

भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन में 2021-22 के दौरान घरेलू गैस के 30.10 लाख ग्राहकों ने एक भी सिलेंडर नहीं भराया, जबकि 24.62 लाख ग्राहक ऐसे थे जिन्होंने साल भर में सिर्फ एक सिलेंडर भराया.

यानी बीते वित्त वर्ष में पूरे सालभर में घरेलू गैस का एक भी सिलेंडर नहीं भराने वाले कनेक्शन धारकों की संख्या करीब 3.59 करोड़ रही और साल भर में मात्र एक सिलेंडर भराने वाले धारकों की संख्या करीब 1.20 करोड़ रही.

सरकार तर्क गढ़ेगी, लेकिन कटनी के कैलवारा खुर्द की आशा बड़गैया के गैसे सिलेंडर में लगा जाला अपनी कहानी खुद कह रहा है. आशा बड़गैया ने कहा कि ''सिलेंडर महंगा है. बच्चों को पढ़ाएं कि सिलेंडर भराएं. कंडे में बनाते हैं, धुंआ लग रहा है, परेशानी है, लेकिन महंगा है सिलेंडर.

कुल मिलाकर अगर आम उपभोक्ता के साथ, उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों की संख्या भी शामिल की जाए तो देश में पिछले एक साल में 4.49 करोड़ ग्राहकों ने एक बार भी सिलेंडर रिफिल नहीं करवाया जबकि साल में एक बार रिफिल कराने वालों की तादाद रही - 2.28 करोड़.

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