MP में किसानों के साथ 'बड़ा खेल', केंद्रीय योजना को दरकिनार कर डेढ़ गुना प्रीमियम राशि पर किया 'कम रकम' का बीमा

मध्यप्रदेश के लाखों किसानों के साथ बीमा के नाम पर ठगी हो गई.

भोपाल :

कई बार किसानों की यह शिकायत रहती है कि उन्हें पता भी नहीं होता और खाते से बीमा राशि कट जाती है लेकिन मध्यप्रदेश में तो केंद्रीय योजना को दरकिनार कर किसानों को डेढ़ गुना प्रीमियम पर आधी रकम का बीमा थमा दिया गया. सरकारी दस्तावेज इसकी बयानी कर रहे हैं. ऐसे में किसान खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. मध्यप्रदेश के लाखों किसानों के साथ बीमा के नाम पर 'ठगी' हो गई.इंदौर के रालामंडल के विजेंद्र पटेल भीषण गर्मी में भी खेतों में पसीना बहा रहे हैं. खेतों में फसल की हरियाली के लिये अल्पअवधि कृषि कर्ज लिया था. साथ में बगैर जानकारी बीमा भी हो गया. प्रीमियम के 437 रु. कट गए जबकि बीमे की रकम है सिर्फ एक लाख रुपये. मुंडला गांव के अफसर पटेल की भी यही कहानी है. इन दोनों को जब NDTV ने यह बताया कि 330 रु में प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा हो जाता और रकम भी 2 लाख होती तो दोनों खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. विजेंद्र सिंह पटेल कहते हैं, "कृषक का बीमा 330 का होता है. ऋण पुस्तिका देखी तो 437 रु. कटे थे. ये सिर्फ मेरे साथ है, ये सीधे-सीधे करोड़ों का घोटाला है.'' किसान अफसर पटेल भी कहते हैं, "107 रु का घोटाला किया जा रहा है. करोड़ों का घोटाला है. सरकारों ने जैसे तय कर लिया है किसानों को बर्बाद कर देंगे."

बीमा लेने के बाद की 'कहानी' रवि पटेल से पूछिए.पिछले साल कोरोना से पिता चल बसे. एक हैक्टेयर का छोटा खेत है.बीमे की रकम तक नहीं मिली, उल्‍टे बैंक से नोटिस आने लगा वहा वह अलग. रवि बताते हैं, "सिर्फ कंप्यूटर पर जाकर ये करो वो करो.बस पैसा कटेगा मिलेगा नहीं." आगर-मालवा के सुदवास में सुनील कारपेंटर 12 बीघा से 6 लोगों का परिवार पालते हैं जबकि इसी गांव के मुकेश के पास 20 बीघा खेती है. इनकी शिकायत भी एक जैसी है-प्रीमियम कटता है, वक्त पर बीमे का पैसा नहीं मिलता. सुनील कारपेंटर कहतें हैं, "हमारा जो निजी बीमा है उसका पैसा हमें कुछ नहीं पता." किसान मुकेश कुमार ने भी कहा, "फसल खराब हो जाए तो काटते हैं, व्यक्तिगत की जानकारी नहीं है." 

होशंगाबाद का नाम नर्मदापुरम हो गया लेकिन किसानों के हालत वैसे ही हैं. केसला गांव के मोती लाल कुशवाहा 8 एकड़ जमीन पर खेती करते हैं. हर साल सेवा सहकारी संस्थान मर्यादित इशरपुर से जुड़े खाद बीज खरीदते हैं. कर्ज लेते हैं, यहीं से बीमे की रकम भी कट जाती है. बस यही पता नहीं कि रकम कटती क्यों है? सीराबाड़ा गांव के मुकेश रघुवंशी को भी बीमे का पता नहीं है. प्रबंधक कहते हैं कि किसानों की सहमति से पैसे कटते हैं, वैसे कैमरा बंद होने पर बताते हैं कि पैसा काटने के लिए दबाब बनाया जाता था. अगर किसान एक बोरी यूरिया ले तो भी.मोतीलाल ने कहा, "ये तो साहब मैं नहीं जानता ये खाद कर्ज का बीमा काटते हैं या फसल बीमा के, नहीं जानता. मुकेश रघुवंशी कहते हैं, " ये मालूम नहीं कहते हैं, बीमा काटते हैं बस." दूसरीओर समिति प्रबंधक सुरेश रघुवंशी का कहना कुछ अलग ही है. वे कहते हैं, "किसान स्‍वेच्‍छा से राशि कटवाते हैं. ऋण खाते से काटते है."

बता दें, मध्‍य प्रदेश में 38 जिला सहकारी बैंक हैं, जिसमें 2016 से लेकर 2019 तक अल्पावधि कृषि ऋण लेने वाले किसानों का निजी कंपनी से 437 रुपए के प्रीमियम पर एक लाख का बीमा कराया गया. इसके लिए किसानों की सहमति भी नहीं ली गई, जबकि प्रीमियम उन्हीं के लोन अकाउंट से चुकाया गया.प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना के तहत, यही बीमा मात्र 330 रुपए में होता है. यही नहीं "सुरक्षा" भी दोगुनी मिलती है यानी दो लाख रु. की. सहकारिता विभाग ने 38 बैंकों से जानकारी मांगी है लेकिन सिर्फ 17 बैंकों ने जानकारी भेजी है, 21 बैंक अभी भी टाल रहे हैं.

मामला अब कोर्ट की दहलीज पर है. वकील पूर्वा जैन कहती हैं, "को-ऑपरेटिव बैंक का मकसद होता है कमजोर वर्ग का समर्थन करना लेकिन यहां दोहन किया जा रहा है. 9 जिलों की बात करें तो 40 करोड़ का घोटाला हुआ है. पूरे मध्यप्रदेश में जिला कॉपरेटिव बैंक का देखेंगे तो बड़ा घोटाला सामने आ सकता है. गौरतलब है कि अपेक्स बैंक ने सर्कुलर जारी किया था कि निजी बीमा कंपनी से किसानों का सामूहिक बीमा ना हो, जरूरी पड़ने पर रेट मंगाकर मुख्यालय से मंजूरी के बाद ही बीमा करवाया जाए लेकिन इस मामले में सारे नियम ताक पर रख दिये गए. राज्‍य के नौ जिलों में ही सवा लाख से अधिक किसानों के बीमे का तीन साल में 40 करोड़ से अधिक का प्रीमियम चुकाया गया. जांच होने पर 38 सहकारी बैकों में पता नहीं कितने किसान ठगे गये होंगे, सूत्र बताते हैं कि जिस वक्त नियमों को ताक पर रखा गया उस वक्त सहकारिता विभाग के एक बड़े अधिकारी का बेटा उस निजी कंपनी में मध्यप्रदेश का मुखिया था जिसने किसानों का बीमा किया. 

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