प्रतीकात्मक तस्वीर
भोपाल:
मध्यप्रदेश में किसानों के हिंसक आंदोलन के बावजूद उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई हैं. कभी हज़ारों रुपये का प्रीमियम भरने के बावजूद 4-6 रुपये देकर मुआवज़े का मज़ाक बन रहा है तो कहीं करोड़ों रुपये का बीमा अटका हुआ है, सर्वे तक का काम शुरू नहीं हुआ है, बीमा मंजूर होने के बाद भी बीमा राशि किसानों के खाते में नहीं पहुंची है. 50 साल के मुन्नालाल सिलवारा खजूरी में रहते हैं. 8 एकड़ खेत में उड़द लगाया था, पहले कम बारिश बाद में 4 दिनों तक हुई अधिक बारिश से फसल चौपट हो गई. 15 क्विंटल उड़द निकलना था, निकला 3 क्विंटल. उनका कहना है, 'मुनाफा छोड़िये, लागत भी मुश्किल है. उड़द ने मुझे धोखा दिया, मुआवज़ा इस बार का लिखा ही नहीं. पटवारी की गलती है. 8-10 बाल बच्चे हैं, मजदूरी करेंगे और क्या उपाय है.' 45 साल के नरखेड़ा के रहने वाले रामनारायण की भी यही कहानी है. 6 एकड़ खेत से 10 क्विंटल उड़द की उम्मीद थी जो बारिश में धुल गई. परेशान हैं परिवार कैसे चलाएंगे.' रामनारायण ने कहा कि बड़ी दिक्कत है, पूरी आफत है. बच्चों की पढ़ाई, किराया कुछ बचा ही नहीं. मजदूरी कर रहे हैं, आप लोग मजदूरी कराओगे मजदूरी करेंगे. बची ही नहीं फसल.'
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उम्मीद थी कि पिछले साल जो नुकसान हुआ उसके पैसों से घर चल जाएगा लेकिन अकेले विदिशा ज़िले में फसल की क्षतिपूर्ति के रूप में किसानों को वितरित होने वाली 184 करोड़ रुपये की फसल बीमा की राशि अटक गई है. प्रशासन कहता है मामला प्रक्रिया में होने वाली देरी का है. अपर कलेक्टर एच पी वर्मा ने कहा, 'इंश्योरेंस कंपनी के जरिये हम प्रयास कर रहे हैं, मुआवजा शीघ्र आ जाएगा, प्रक्रिया में वक्त लगता है.'
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पिछले साल खरीफ सीजन में ज्यादा बरसात से सोयाबीन और उड़द की फसल चौपट हो गई थी, फसल बीमा के तौर पर सरकार ने 574.82 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की लेकिन किसानों के खाते में सिर्फ 390.27 करोड़ रुपये की राशि ही पहुंच पाई है. जिले में उड़द बोने वाले 9123 किसानों को मुआवज़ा नहीं मिला है. किसान बैंक के चक्कर काटने को मजबूर हैं. ज़िला सहकारी केन्द्रीय बैंक के सीईओ विनय प्रकाश सिंह ने कहा इस साल सोयाबीन, उड़द का बीमा हुआ था. उड़द का बचा हुआ है, 193 करोड़ रुपये हमारे बैंक को मिले हैं लेकिन ये सिर्फ सोयाबीन की दावा राशि है, इंश्योरेंस कंपनी का कहना है जल्द ही वो उड़द के लिए भी राशि भेजेंगे.
VIDEO: डूबी फसल अटका बीमा, किसान हुए बर्बाद
मध्यप्रदेश में पिछले कुछ सालों में सोयाबीन का रकबा 58 लाख हेक्टेयर से घटकर 50 लाख तक रह गया है, जबकि इसी दौरान उड़द का रकबा बढ़कर 18 लाख हेक्टेयर तक जा पहुंचा है. कमी रहने और कीड़ों के हमले में भी उड़द का उत्पादन कम प्रभावित होता है. हालांकि इस बार सारे गणित बेकार गये. उसपर भी तकलीफ ये कि किसान को प्रीमियम भरने के बावजूद मुआवजा अब तक नहीं मिला. यही देरी किसानों को साहूकारों के चंगुल में फंसाती है जिसका कोई मुआवज़ा नहीं होता.
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उम्मीद थी कि पिछले साल जो नुकसान हुआ उसके पैसों से घर चल जाएगा लेकिन अकेले विदिशा ज़िले में फसल की क्षतिपूर्ति के रूप में किसानों को वितरित होने वाली 184 करोड़ रुपये की फसल बीमा की राशि अटक गई है. प्रशासन कहता है मामला प्रक्रिया में होने वाली देरी का है. अपर कलेक्टर एच पी वर्मा ने कहा, 'इंश्योरेंस कंपनी के जरिये हम प्रयास कर रहे हैं, मुआवजा शीघ्र आ जाएगा, प्रक्रिया में वक्त लगता है.'
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पिछले साल खरीफ सीजन में ज्यादा बरसात से सोयाबीन और उड़द की फसल चौपट हो गई थी, फसल बीमा के तौर पर सरकार ने 574.82 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की लेकिन किसानों के खाते में सिर्फ 390.27 करोड़ रुपये की राशि ही पहुंच पाई है. जिले में उड़द बोने वाले 9123 किसानों को मुआवज़ा नहीं मिला है. किसान बैंक के चक्कर काटने को मजबूर हैं. ज़िला सहकारी केन्द्रीय बैंक के सीईओ विनय प्रकाश सिंह ने कहा इस साल सोयाबीन, उड़द का बीमा हुआ था. उड़द का बचा हुआ है, 193 करोड़ रुपये हमारे बैंक को मिले हैं लेकिन ये सिर्फ सोयाबीन की दावा राशि है, इंश्योरेंस कंपनी का कहना है जल्द ही वो उड़द के लिए भी राशि भेजेंगे.
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मध्यप्रदेश में पिछले कुछ सालों में सोयाबीन का रकबा 58 लाख हेक्टेयर से घटकर 50 लाख तक रह गया है, जबकि इसी दौरान उड़द का रकबा बढ़कर 18 लाख हेक्टेयर तक जा पहुंचा है. कमी रहने और कीड़ों के हमले में भी उड़द का उत्पादन कम प्रभावित होता है. हालांकि इस बार सारे गणित बेकार गये. उसपर भी तकलीफ ये कि किसान को प्रीमियम भरने के बावजूद मुआवजा अब तक नहीं मिला. यही देरी किसानों को साहूकारों के चंगुल में फंसाती है जिसका कोई मुआवज़ा नहीं होता.
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