वांग छी, 80 वर्षीय चीनी सैनिक जिन्हें 1963 में भारत में घुसने पर गिरफ्तार किया गया, अलग-अलग जेलों में रखा गया. वांग छी अब मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के तिरोड़ी गांव के लिये राज बहादुर हैं. 54 साल बाद उन्हें फरवरी 2017 में चीन में अपने भाई-बहनों से मिलने का मौका मिला, लेकिन चीन जाना उनके लिये परिवार से अलग होने की वजह बन गया क्योंकि पिछले पांच महीनों से उनका वीज़ा का नवीनीकरण का इंतजार कर रहे हैं.
उनके बेटे विष्णु वांग जो बालाघाट में अकाउंटेंट हैं उन्होंने कहा, "मेरे पिता मार्च 2018 में एक और वर्ष के लिए वीज़ा रिन्यू करवाने में सफल रहे. मार्च 2019 में उनका एक साल का भारत का मल्टी-एंट्री वीज़ा एक्सपायर हो गया और अप्रैल 2019 में उन्होने वीज़ा के रिन्युअल के लिए अप्लाई किया, जो अभी तक लटका हुआ है.'' विष्णु कहते हैं, "पहले पापा से बोला गया कि वो पासपोर्ट ले जाएं क्योंकि आवेदन में कुछ गलतियां हैं. वो दूसरी बार बीज़िंग गए तो बोला गया कि आप ई-वीज़ा के लिए आवेदन दीजिए. ई-वीज़ा के लिए 5709 रुपए फ़ीस लगी, लेकिन बाद में उन्हें बताया गया कि उनका वीज़ा रिजेक्ट कर दिया गया है."
विष्णु का दावा है कि तब से बीजिंग में भारतीय दूतावास के अधिकारियों के साथ-साथ नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को बार-बार मेल भेजे गए हैं, लेकिन अपने बच्चों से मिलने की उनकी कोशिश के कोई सकारात्मक नतीजे अबतक नहीं मिले हैं. विष्णु ने कहा “1969 में तिरोड़ी (बालाघाट) में बसने के बाद, मेरे पिता फरवरी 2017 में चीन में अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिये लगभग पांच दशकों तक संघर्ष करते रहे. आठ महीने बाद अक्टूबर 2017 में, उन्होंने अपनी पत्नी (मेरी मां) सुशीला को खो दिया. मेरी मां के निधन के कुछ दिन पहले, वह अंतिम दिनों में उनके साथ रहने के लिए तिरोड़ी (बालाघाट) लौटीं. वह जनवरी 2018 में चीन लौट आए, अब फिर से वो हमारे साथ रहना चाहते हैं, लेकिन भारतीय अधिकारियों ने उन्हें वीजा जारी नहीं किया है, हमें डर है कि क्या हम उनसे फिर से मिल पाएंगे या नहीं.
वांग छी फिलहाल अपने पैतृक गांव से लगभग 40 किमी दूर शानक्सी प्रांत के जियानयांग शहर के एक होटल में रहते हैं, जहां उनके दो भाइयों और बहनों के परिवार रहते हैं. भारतीय दूतावास में अपने वीज़ा नवीनीकरण मामले के अपडेट के बारे में पता लगाने के लिये उन्हें लगभग 1200 किलोमीटर का सफर तय कर बीजिंग आना पड़ता है.
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वांग छी 1963 में गिरफ्तार हुए, मार्च 1969 में अदालत के आदेश पर रिहा होने से पहले राजस्थान, पंजाब और यूपी की अलग-अलग जेलों में उन्होंने लगभग सात साल बिताए, जिसके बाद वो मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के तिरोडी इलाके में आटा चक्की का व्यवसाय करने लगे. तिरोड़ी में रहते हुए लोग उन्हें राज बहादुर कहने लगे वहीं की स्थानीय निवासी सुशीला मोहिते से उन्होंने शादी की, जिनसे उन्हें तीन बच्चे हैं, जिनमें बेटा विष्णु भी शामिल है. उनका बेटा, दो बेटियां, पोता-पोती सब तिरोड़ी में ही रहते हैं.
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