छत्तीसगढ़ धान का कटोरा कहा जाता है. यहां धान की 22 हजार से अधिक प्रजाति हैं. 70 फीसद किसान धान की खेती करते हैं, लेकिन अब ये धान सरकार के लिए फिक्र का सबब बना हुआ है इसलिए अब सरकार ने दलहन और तिलहन की फसलों को बढ़ावा देने का फैसला किया है. एक और तकलीफ सरकारी तिजोरी से 2500 रुपये प्रति क्विंटल धान खरीदे जाने के बावजूद सरकारी लापरवाही की वजह से लाखों क्विंटल खुले में रखा धान कई बार बारिश झेलकर सड़ने को मजबूर है.
धान की बोरियां भूसे में तब्दील होती दिख रही हैं. कहीं उसमें घास उग आई हैं. छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में यह नजारा है. लगभग 77 हजार मीट्रिक टन से ज्यादा धान समितियों में सड़ रहा है. सरकारी तिजोरी से 100 करोड़ से ज्यादा इसे खरीदने में खर्च हुए हैं.
नियमानुसार खरीदी के तत्काल बाद या अधिकतम 7 दिनों में धान का परिवहन संग्रहण केन्द्रों या राइस मिलों के जरिए हो जाना था लेकिन 127 समितियों में से 118 में खरीदी बंद होने के 2 महीने बाद भी धान का परिवहन नहीं हुआ. हालांकि अधिकारियों का कहना है कि कोई नुकसान नहीं हुआ. ज़िले के डीएमओ संतोष पाठक का कहना है कि हमारी समितियों से नुकसान की कोई रिपोर्ट नहीं है, उठाव पूरा होने के बाद अगर कोई रिपोर्टिंग होगी तो बताएंगे.
वहीं राइस मिल के मालिक कह रहे हैं इस धान से चावल बनाना मुश्किल है. ज़िले के राइस मिलर पारस चोपड़ा ने कहा अधिकांश सोसायटी में धान खरीब हो चुका है, बोरे खराब हो चुके हैं क्योंकि एफसीआई के नियम बहुत कड़े हैं. वर्तमान में जो धान है उससे एफसीआई के नियमों के हिसाब से चावल बनाना मुश्किल है. वहीं दूसरे कारोबारी चन्द्रमणी साव ने कहा धान बुरी तरह से सड़ गया है. अव्यवस्था से हुआ है. पूरी मार राइस मिलर पर पड़ रही है. अच्छा चावल बन नहीं पा रहा मिलों की स्थिति खराब हो रही है.
धान का सरकारी दर पर समर्थन मूल्य 1835 रुपये है. जबकि छत्तीसगढ़ सरकार अपने किसानों को 2500 रुपये का भुगतान कर रही है. इसलिए हर साल 17 लाख के आसपास किसान धान बेचने आते थे लेकिन इस साल 19 लाख से अधिक किसानों ने धान बेचा है. सेंट्रल पूल में धान देने के बावजूद यहां के पूरे धान की खपत नहीं हो पाई है. राज्य में धान का कुल रकबा 44 लाख हेक्टेयर है जिसमें, कुल खरीदी 83.67 लाख मीट्रिक टन है, पीडीएस में 25.40 लाख टन, जबकि एफसीआई को 24 लाख टन जबकि राज्य के पास 7.11 लाख टन बाकी रहता है.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान को खत लिखकर ज्यादा चावल खरीदने की गुजारिश की है. हालांकि ऐसी लापरवाही चलती रही तो ये सारे पैसे धान को खलिहान में तब्दील करने में ही जाया होंगे.
(महासमुंद से कृष्णानंद दुबे के इनपुट के साथ)
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