महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है.राज्य सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले चार साल में राज्य में 12021 किसानों ने आत्महत्या की है. यानी हर रोज़ आठ किसानों ने राज्य में आत्महत्या कर रहे हैं. ऐसे में राज्य सरकार की योजनाओं पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं. किसानों की आत्महत्या की एक वजह राज्य में पानी का संकट भी है. पानी के संकट का सबसे ज़्यादा असर राज्य के किसानों पर पड़ता दिख रहा है. ऐसे कई किसान हैं जो कर्ज ना चुका पाने की वजह से आत्महत्या कर रहे हैं. पीड़ित परिवार कों कहना है कि पानी की कमी की वजह से फसल अच्छी नहीं होती है. जब फसल ही नहीं होगी तो कर्ज कहां से उतारा जाएगा.
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ऐसे ही एक किसान यवतमाल के रालेगांव तहसील में रहने वाले चिमाजी शिंदे थे. चिमाजी ने अपनी खेती के लिए साढ़े चार लाख रुपया का क़र्ज़ लिया था. इलाके में पड़े भीषण सूखे के कारण ना ही खेती कर पाए और ना ही क़र्ज़ लौटा पाए. जिसके कारण बैंकों ने उनकी ज़मीन को अपने पास रख लिया.इससे तंग आकर चिमाजी ने आत्महत्या करने का फैसला किया. परिवारवालों का आरोप है की सरकार की ओर से उन्हें कोई राहत नहीं मिली है. ऐसे हालात सिर्फ चिमाजी तक ही सीमित नहीं है. यवतमाल के ही नेर तहसील में रहने वाले किसान बंडू कांबले ने खेती और अपनी बेटी के शादी के लिए क़र्ज़ लिया था. बेटी की शादी भी हो गई, लेकिन सूखे के कारण पैसे नहीं भर पाने के कारण बेटी के शादी के तीन दिन बाद पिता ने अपने खेत में आत्महत्या कर लिया. प्रशासन की ओर से मदद मिलना तो दूर, उन्होंने इन्हें किसान मानने से भी मना कर दिया.
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आंकड़ों के अनुसार इस साल में राज्य में अब केलव 6.11 फीसदी ही पानी बचा है. जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में कुल 17 फीसदी पानी था. वहीं 15 जून 2019 तक राज्य में कुल 6905 टैंकर का इस्तेमला किया गया है. जबकि पिछले साल इसी समय तक 1801 टैंकर करा इस्तेमाल किया गया था. आत्महत्या के इन आंकड़ों के बाद सरकार की योजनाओं पर सवाल उठना शुरू हो गया है. एक दूसरे रिपोर्ट के अनुसार राज्य सरकार की ओर से हुए कर्जमाफी के ऐलान के बाद राज्य में 4500 से ज़्यादा किसानों ने आत्महत्या की है. किसान नेताओं का जहां मानना है की सरकार आत्महत्या के सही आंकड़ों को पेश नहीं कर रही है तो वहीँ सरकार की ओर से पूरी मदद पहुंचाए जाने का दावा किया जा रहा है.
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बता दें कि 2014 के चुनाव में महाराष्ट्र को 2019 तक टैंकर मुक्त करने का दावा राज्य सरकार ने किया था. सरकार ऐसा कर नहीं पाई लेकिन राज्य में टैंकरों की संख्या और भी ज़्यादा हो गई. मंगलवार को महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए बजट में जहां सरकार ने मुख्यमंत्री की योजना जलयुक्त शिवार पर आठ हजार 94 करोड़ रुपये खर्च करने की बात तो कही लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसका कोई भी फायदा किसानों को मिलता दिख नहीं रहा है.
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