मुंबई का कोली मछुवारा समाज इन दिनों बहुत ही दर्द में है. दर्द हो भी क्यों न. इन मछुवारों के 700 सालों का इतिहास मिटने (Mumbai Fish Business) की कगार पर है. मछलियां मिल नहीं रहीं तो अब इनकी नई पीढ़ी को मछली पकड़ने का व्यवसाय बोझ सा लगने लगा है. इस काम को करने वाले मछुवारों का कहना है कि इस काम में अब कुछ भी नहीं बचा, क्यों कि समंदर में तो मछली रही ही नहीं . मछुवारा समाज की महिलाओं का दर्द एनडीटीवी के सामने छलक उठा. उनका कहना है कि काम में बहुत नुकसान उठाना पड़ रहा है. अब तक उनको 20 लाख रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है.
मुंबई के मछुवारों का दर्द!
समंदर के ये बच्चे जब एक बार अपनी बोट पर सवार होकर निकलते हैं तो ये राहें उनको कहां ले जाएंगी ये वो खुद भी नहीं जानते. करीब 1500 किमी दूर तो आसानी से निकल जाते हैं. फिर भी इनकी परेशानी खत्म होने का नाम नहीं ले रही. सवाल यही है कि मछलियां अपनी जगह क्यों बदल रही हैं. इस पर मछुवारों ने बताया कि धुंध की वजह से मछलियां ऊपर आती ही नहीं है वे दूर चली जाती हैं. इस वजह से पिछले दो-तीन साल से काफी दिक्कत हो रही है.
मुंबई के समंदर से दूर क्यों भाग रही मछलियां?
ठंडे पानी के ऊपर जब सर्द और नम हवा गुजरती है तो ये समुद्री कोहरे का रूप ले लेती है.
ये धुंध की चादर 24 घंटे ऐसी ही रहती है, जिसकी वजह से साफ और गर्म पानी की तलाश में मछलियां गहराई में चली जाती हैं. मछलियों के जगह बदलने की कहानी नई नहीं है. पिछले 5 सालों में मछलियां लगातार अपनी जगह बदल रही हैं. समंदर के अंदर के प्रदूषण की वजह से मछलियां दूर भाग रही हैं. समंदर के आसपास हो रही निर्माण गतिविधि की वजह से कंपन्न होता है और मछलियां दूर जा रही हैं.
- मुंबई के समुद्र में दूर भाग रही मछलियां
- अरब सागर में कोहरे की वजह से दूर जा रहीं मछलियां
- कोहरे की वजह से मछलियों को गर्म पानी की तलाश
- पूर्वी हवाओं की वजह से मुंबई में छाई धुंध से मछलियों से बदला ठिकाना
- मछुवारों को मछलियां पकड़ने के लिए दूर जाना पड़ रहा
- बाजार में मछलियों की कीमत बढ़ गई है
"20 लाख का कर्ज है, थक चुकी हूं"
मछुवारे समाज की एक महिला का कहना है कि मछली का व्यवसाय कर वह थक चुकी हैं. अब उनसे और नहीं हो रहा.उन पर 20 लाख का कर्ज है. वह कर्ज से अब तक उभर नहीं सकी हैं और कोई रास्ता उनको नजर भी नहीं आ रहा. उनका दर्द कितना बड़ा है इस बात का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि कर्ज है तो क्या करें...मर तो नहीं सकते .साल दर साल समंदर में मछलियां कम होती जा रही हैं.
वहीं मछुवारा समाज की दूसरी महिला ने कहा कि ऐसा लगता है कि कोलीबाड़ा ही बंद हो जाएगा. उनका कहना है कि वह अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती है. जो गलती उनके मां-बाप ने उनको न पढ़ा कर की वह वो नहीं दोहराना चाहतीं. समंदर और मछली व्यवसाय के ताजा हालात को देखते हुए उन्होंने यहां तक कह दिया कि उनको लगता है कि आने वाले 10 सालों में यहां कुछ भी नहीं रहेगा.
मंदी से जूझ रहा मछली व्यवसाय
समंदर किनारे मछली पकड़ने वाले कोली समाज के मछुवारे बहुत उदास हैं. भले ही पानी में से मछली पकड़ने का काम उनका है लेकिन उनको बाजारों में पहुंचाने और बचने का काम इनकी महिलाएं करती हैं. इस काम में महिलाओं की हिस्सेदारी 70 फीसदी है. मछली बाजार की मंदी की चिंता इनको महिलाओं को भी भीतर ही भीतर खाए जा रही है. परेशानी की बात ये है कि इन महिलाओं को इस काम के अलावा कोई और विकल्प नजर भी नहीं आ रहा. उनका कहना है कि जो भी है यही है...और कुछ नहीं कर सकते.
मछलियां मिल नहीं रहीं, ग्राहक कह रहे महंगी है
एक तो पहले से ही बाजार में मछलियों की कमी है ऊपर से ग्राहकों का मोलभाव, आखिर करें तो क्या करें. ग्राहक कर रहे हैं कि मछली बहुत महंगी है.सिर्फ मछली ही नहीं दूसरा सी फूड का रेट भी डबल हो गया है. 500 रुपए वाली मछली अब 1000 में मिल रही है. मछुवारों का दर्द ये है कि समंदर में मछली मिल ही नहीं रही.
मछुवारे पूरी तैयारी के साथ मछलियों की आस में समंदर की गहराई तक जा रहे हैं. ये लोग 15-20 दिन तक समंदर में रहने को मजबूर हैं लेकिन रिजल्ट फिर भी मन मुताबिक नहीं मिल रहा. क्यों कि सर्दी की वजह से मछलियों ने अपनी जगह बदल दी है. वह ज्यादा गहराई में पहुंच गई हैं. ये मछुवारे अपनी एक ट्रिप पर लाखों रुपए खर्च करते हैं.
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