
- महाराष्ट्र विधान परिषद में महाराष्ट्र विशेष जन सुरक्षा विधेयक बहुमत से पारित हो गया. हालांकि महाविकास अघाड़ी ने इसका विरोध कर वॉकआउट किया.
- विपक्ष ने विधेयक को एक विशेष विचारधारा को निशाना बनाने वाला बताया और अपना असहमति पत्र सभापति को सौंपा.
- विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्षी विधायकों ने विधायक प्रसाद लाड की टिप्पणी पर आपत्ति जताई और सदन में जमकर हंगामा हुआ.
महाराष्ट्र विधान परिषद में 'महाराष्ट्र विशेष जन सुरक्षा विधेयक' शुक्रवार को बहुमत से पारित हो गया. हालांकि इस विधेयक का महाविकास अघाड़ी ने जमकर विरोध किया और सदन से वॉकआउट किया. साथ ही इसे लेकर सभापति को एक असहमति पत्र भी सौंपा गया. इससे पहले यह विधेयक गुरुवार को विधानसभा में पारित हो गया था.
विधान परिषद में विधेयक पर चर्चा के दौरान विधायक प्रसाद लाड की एक टिप्पणी पर विपक्षी विधायकों ने आपत्ति जताई, जिससे सदन में जमकर हंगामा हुआ और विवाद बढ़ने पर विपक्षी सदस्यों ने सदन से वॉकआउट कर दिया.
नए कानून की जरूरत पर उठाए सवाल
इस दौरान शिवसेना के विधायक अनिल परब ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा, "जिन संगठनों को देश के संविधान पर विश्वास नहीं है, ऐसे सभी आतंकवादी और नक्सलवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगना चाहिए. केवल कट्टर वामपंथी विचारधारा के संगठनों को देशद्रोही बताना उचित नहीं है. राष्ट्रहित में समावेशी दृष्टिकोण जरूरी है."
वहीं कांग्रेस विधायक अभिजीत वंजारी ने सवाल उठाया कि "जब UAPA और मकोका जैसे कठोर कानून पहले से मौजूद हैं तो इस नए कानून की आवश्यकता क्या है?" उनका कहना था कि यह विधेयक एक विशेष विचारधारा को निशाना बनाने की कोशिश है.
विपक्ष ने वॉकआउट करते हुए अपनी असहमति आधिकारिक रूप से दर्ज की और सभापति को असहमति पत्र सौंपा. हालांकि सरकार ने इस विधेयक को जनहित और सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक बताया है.
क्यों लाया गया यह विधेयक? गृह राज्य मंत्री ने बताया
विधानपरिषद इस विधेयक को प्रस्तुत करते हुए गृह राज्य मंत्री योगेश कदम ने कहा कि यह विधेयक देश के संविधान को चुनौती देने के लिए खड़ी होने वाली, कट्टर वामपंथी विचारधारा वाली माओवादी सोच की और शहरी नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाली संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के उद्देश्य से लाया गया है.
उन्होंने बताया कि इससे पहले यूपीए सरकार के कार्यकाल में, 2014 में ऐसे संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कदम उठाए गए थे. देश के चार राज्यों में पहले से ही ऐसे कानून लागू किए जा चुके हैं, लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा कोई कानून नहीं होने का लाभ उठाते हुए ऐसे संगठनों ने राज्य में अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी है. उन्होंने बताया कि वर्तमान में राज्य में ऐसे कुल 64 संगठन सक्रिय हैं.
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