
- हिंदी विवाद में मुंबई की सड़कों पर पोस्टर और बैनर वॉर
- ठाकरे गुट की शिवसेना पर बैनरों से तीखे हमले हो रहे हैं
- बैनरों पर मराठी अस्मिता और त्रिभाषा सूत्र पर सवाल उठाए गए हैं
- राज्य में मराठी भाषा को प्राथमिकता देने की मांग फिर से जोर पकड़ रही है
महाराष्ट्र में हिंदी को लेकर सियासत क्या गरमाई कि अब मुंबई शहर की सड़कों पर भी इसका रंग दिखने लगा है. हिंदी-मराठी की जंग में अब बैनर बन गए हथियार और कलानगर की गलियों में ठाकरे गुट की शिवसेना पर तीखे वार हो रहे हैं. ये बैनरबाज़ी सिर्फ शब्दों का खेल नहीं, बल्कि इस मामले को और बढ़ा देगी. हिंदी विवाद पर ठाकरे गुट की शिवसेना को बैनर लहराकर घेरा जा रहा है. ये बैनर न सिर्फ चर्चा का केंद्र बने, बल्कि मराठी अस्मिता और त्रिभाषा सूत्र की बहस को और हवा दे गए, बैनरों पर लिखा था:
"सत्य बाहर आया,
गले में फंसे दांत, उबकाई से ही किया मराठी का घात..."
"त्रिभाषा सूत्र आपने ही स्वीकार किया था, भूल गए क्या?"
हिंदी के मुद्दे पर घमासान
इन पंक्तियों के जरिए सीधे ठाकरे गुट को हिंदी के मुद्दे पर घेरा गया है और यह दिखाने की कोशिश की गई है कि आज जिन मुद्दों पर वे सवाल उठा रहे हैं, वही नीति कभी उन्होंने खुद लागू की थी. यह बैनरबाज़ी ऐसे समय पर हो रही है जब राज्य में मराठी भाषा को प्राथमिकता देने की मांग फिर से जोर पकड़ने लगी है और त्रिभाषा सूत्र को लेकर राजनीतिक घमासान तेज हो गया है.
सरकार और ठाकरे खेमे पोस्टर, बैनर वॉर
त्रिभाषा सूत्र को लेकर महाराष्ट्र का घमासान अब और तीखा हो गया. कोई इसे सियासी चाल बता रहा है, तो कोई मराठी अस्मिता की लड़ाई बता रहा है. महाराष्ट्र के शहरों में लगे इन बैनरों से न सिर्फ ठाकरे गुट को कठघरे में खड़ा किया, बल्कि पूरे राज्य में भाषा और अस्मिता की बहस को नया मोड़ दे दिया. क्या यह सियासत का नया दांव है, या मराठी मानूष के दिल की बात? जवाब समय के साथ साफ होगा.
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