- महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में बोरामणी के घास के मैदानों में 15 घेरों वाला विशाल पत्थर का चक्रव्यूह मिला है
- यह चक्रव्यूह वन्यजीव निगरानी के दौरान नेचर कंजर्वेशन सर्कल की टीम ने खोजा था, खुदाई नहीं हुई थी
- विशेषज्ञों के अनुसार यह संरचना पहली से तीसरी शताब्दी की है और रोमन सिक्कों के निशानों से मिलती है
महाराष्ट्र के सोलापुर जिले से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने पुरातत्वविदों और इतिहासकारों को हैरान कर दिया है. बोरामणी के घास के मैदानों में 15 घेरों वाला एक विशालकाय 'चक्रव्यूह' मिला है, जो न केवल भारत में अब तक का सबसे बड़ा पत्थर का चक्रव्यूह है, बल्कि प्राचीन रोम और भारत के बीच गहरे व्यापारिक संबंधों का जीता-जागता सबूत भी है.
वन्यजीवों की निगरानी के दौरान हुई यह 'दुर्लभ' खोज
दिलचस्प बात यह है कि इस संरचना की खोज किसी खुदाई के दौरान नहीं, बल्कि वन्यजीवों की निगरानी के दौरान हुई. 'नेचर कंजर्वेशन सर्कल' (एक एनजीओ) की टीम बोरामणी वन क्षेत्र में दुर्लभ सोनचिरैया और भेड़ियों की आबादी पर नज़र रख रही थी. टीम के सदस्यों पप्पू जमादार, नितिन अनवेकर, धनंजय काकड़े, भरत छेड़ा, आदित्य झिंगाडे और सचिन सावंत को पत्थरों की एक अनोखी बनावट दिखाई दी. उन्होंने तुरंत इसकी जानकारी पुरातत्वविद सचिन पाटिल को दी, जिसके बाद इस खोज की गंभीरता सामने आई.
महाराष्ट्र के सोलापुर के जंगलों में मिला 2000 साल पुराना भारत का सबसे बड़ा चक्रव्यूह! प्राचीन रोम से था सोलापुर का कनेक्शन?#Maharashtra | #Solapur pic.twitter.com/LPzPzkJI2c
— NDTV India (@ndtvindia) December 20, 2025
खोज की मुख्य विशेषताएं: क्यों खास है यह चक्रव्यूह?
पुणे के प्रसिद्ध डेक्कन कॉलेज के विशेषज्ञों ने इस स्थल का बारीकी से अध्ययन किया है. उनकी रिपोर्ट के अनुसार, आमतौर पर भारत में कम घेरों वाले चक्रव्यूह मिलते हैं, लेकिन यह पहली बार है जब 15 सर्किट (घेरों) वाली इतनी विशाल संरचना पाई गई है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह संरचना पहली से तीसरी शताब्दी के बीच यानी तकरीबन दो हजार साल पुरानी है. यह चक्रव्यूह छोटे पत्थरों के टुकड़ों से बना है और जमीन से करीब 1 से 1.5 इंच ऊंची मिट्टी की परत पर स्थित है. इसमें बाहर से केंद्र की ओर जाने का एक निश्चित मार्ग है. इस चक्रव्यूह की बनावट उस दौर के 'रोमन क्रेट' सिक्कों पर मिलने वाले निशानों से हूबहू मेल खाती है.
क्या यह एक 'नेविगेशनल मार्कर' था?
पुरातत्वविदों का मानना है कि यह केवल धार्मिक या सांस्कृतिक प्रतीक नहीं था. उस दौर में सोलापुर वैश्विक व्यापार का एक प्रमुख केंद्र था. विशेषज्ञों के अनुसार, रोमन व्यापारी इसका उपयोग 'नेविगेशनल मार्कर' (Navigational Marker) यानी रास्ता बताने वाले चिन्ह के रूप में करते होंगे. पहली से तीसरी शताब्दी के दौरान भारत से मसाले, रेशम और नील रोम भेजे जाते थे, और बदले में रोम से सोना और कीमती पत्थर भारत आते थे. बोरामणी का यह इलाका उसी व्यापारिक मार्ग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा होगा.
भारत के गौरवशाली इतिहास में नया अध्याय
यह खोज साबित करती है कि हजारों साल पहले भी भारत का व्यापारिक तंत्र कितना विकसित और वैश्विक था. सोलापुर का बोरामणी क्षेत्र उस समय के 'ग्लोबल ट्रेड रूट' का एक अहम पड़ाव था. यह संरचना न केवल कला बल्कि प्राचीन इंजीनियरिंग और भूगोल की समझ का भी एक उत्कृष्ट उदाहरण है. पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञ के मुताबिक, "यह खोज भारत और रोम के बीच के उन प्राचीन रिश्तों पर नई रोशनी डालती है, जो सदियों से इतिहास की परतों में दबे हुए थे."
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