
- उद्धव और राज ठाकरे की बढ़ती नजदीकियों ने महा विकास अघाड़ी के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
- एमएनएस द्वारा गैर मराठी और उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसक रुख कांग्रेस को मंजूर नहीं है.
- उद्धव ठाकरे के महा विकास अघाड़ी से अलग होने की स्थिति में गठबंधन के अस्तित्व पर गंभीर संकट आ सकता है
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की अपने चचेरे भाई राज ठाकरे के साथ बढ़ती नजदीकियों ने कांग्रेस को बेचैन कर दिया है. इसके बाद अब महाराष्ट्र के प्रमुख विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी के अस्तित्व को लेकर अटकलों का दौर शुरू हो गया है. अगर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच गठजोड़ होता है तो कई सवाल खड़े होते हैं. सबसे बड़ा सवाल है कि क्या वो महा विकास अघाड़ी में बने रह पाएंगे. राज ठाकरे को साथ लेना कांग्रेस को मंजूर नहीं है.
शिव सेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने गुरुवार को कहा कि राज ठाकरे के साथ गठजोड़ पर फैसले को लेकर वे और राज सक्षम हैं और इस मामले में किसी तीसरे के दखल की जरूरत नहीं है. उद्धव ठाकरे के इस बयान ने कांग्रेस को असहज कर दिया है. उद्धव ठाकरे की पार्टी और कांग्रेस महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी के दो प्रमुख घटक दल हैं. अगर उद्धव राज ठाकरे के साथ जाते हैं तो एमवीए में उनका रहना मुश्किल हो जाएगा.
राज-उद्धव की नजदीकी, तीन संभावनाएं
- राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस ने हाल ही गैर मराठियों के प्रति जो रुख अपनाया है, कांग्रेस को वो स्वीकार्य नहीं है. बीते चंद महीनों में एमएनएस कार्यकर्ताओं ने मराठी नहीं बोल पाने वाले कई लोगों की पिटाई की और हिंसक आंदोलन किए. उत्तर भारतियों के खिलाफ हिंसा का एमएनएस का इतिहास भी रहा है. ऐसे में अगर एमएनएस, एमवीए में शामिल होती है तो कांग्रेस को गैर मराठी वोटरों की नाराजगी का डर सता रहा है.
- दूसरी तरफ एक संभावना ये भी है कि उद्धव ठाकरे एमवीए से बाहर हो जाएं. एमवीए साल 2019 में अविभाजित शिव सेना, अविभाजित एनसीपी और कांग्रेस को मिला कर बनी थी. अगर उद्धव ठाकरे एमवीए से अलग हो जाते हैं तो एमवीए के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो जाएगा. साल 2023 में हुई बगावत के बाद शरद पवार की एनसीपी (एसपी) की हालत भी ठीक नहीं है. हाल ही में ये चर्चा भी गर्म रही कि चाचा शरद पवार और भतीजा अजीत पवार फिर से साथ आ सकते हैं.
- तीसरी संभावना ये है कि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच कोई राजनीतिक गठजोड़ हो ही न. बीती 5 जुलाई को उद्धव और राज ठाकरे मुंबई के वर्ली में 20 साल बाद पहली बार सार्वजनिक मंच पर एक साथ नजर आए थे. हालांकि उस मौके पर उद्धव ठाकरे ने कहा कि दोनों साथ आए हैं और आगे भी साथ रहेंगे लेकिन चंद दिनों बाद ही राज ठाकरे ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि तब दोनों का साथ आना हिंदी विरोध के मुद्दे को लेकर था. इसका मतलब फिलहाल ये न निकाला जाए कि दोनों के बीच किसी सियासी गठजोड़ को लेकर फैसला हो गया है. कुछ सियासी जानकार ये भी आशंका जता रहे हैं कि ऐन चुनावों से पहले सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों भाइयों में फिर से अनबन हो जाए और उनकी पार्टियों के बीच गठबंधन न हो. वहीं कुछ की नजर में यह बीजेपी की ओर से पर्दे के पीछे किया जा रहा खेल है.
महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय के चुनाव अगले तीन महीने के भीतर होने वाले हैं. एक तरफ जहां एमवीए के घटक दलों के साथ चुनाव लड़ने को लेकर अनिश्चिततता है तो वहीं सत्ताधारी गठबंधन महायुति में ये तय हो गया है कि ज्यादातर महानगर पालिकाओं में सभी घटक दल मिलकर चुनाव लडेंगे.
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