
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स आजकल सिर्फ बातचीत और जानकारी साझा करने का माध्यम नहीं रहे हैं. ये अब रील्स बनाने, प्रमोशन और यहां तक कि ड्रग्स डीलिंग जैसे गंभीर अपराधों का अड्डा बनते जा रहे हैं. चैटिंग ऐप्स और वीडियो प्लेटफॉर्म्स पर इनडायरेक्ट तरीकों से ड्रग्स का प्रचार किया जा रहा है, जहां अपराधियों के लिए मॉनिटरिंग करना बेहद मुश्किल हो जाता है. इन सीक्रेट चैटिंग प्लेटफॉर्म्स की सुरक्षा और एन्क्रिप्शन का फायदा उठाकर ड्रग माफिया अपने नेटवर्क चला रहे हैं. मगर इस पूरे इकोसिस्टम में सबसे खतरनाक और सुरक्षित प्लेटफॉर्म माना जा रहा है- डार्क नेट.
क्या है डार्क नेट?
डार्क नेट इंटरनेट का वो हिस्सा है, जिसे आम ब्राउजर से एक्सेस नहीं किया जा सकता. यह इंटरनेट का करीब 4 से 5 प्रतिशत हिस्सा होता है. इसे एक्सेस करने के लिए एक खास ब्राउज़र- Tor (The Onion Router) की ज़रूरत होती है, जिसकी परतें प्याज़ की तरह होती हैं और उपयोगकर्ता की पहचान को छुपा देती हैं. इसी वजह से लॉ एनफोर्समेंट एजेंसियों के लिए यहां की गतिविधियों को ट्रेस करना बेहद कठिन हो जाता है. डार्क नेट की मार्केटप्लेस पर ड्रग्स, हथियार, ह्यूमन ट्रैफिकिंग से लेकर कॉन्ट्रैक्ट किलिंग तक की गतिविधियां चल रही हैं. यहां लेन-देन आमतौर पर क्रिप्टो करेंसी के माध्यम से होता है, जिससे पैसों की ट्रैकिंग लगभग नामुमकिन हो जाती है.
महाराष्ट्र साइबर की बड़ी कार्रवाई
मगर इस अंधेरे इंटरनेट में महाराष्ट्र साइबर ने एक बड़ी सफलता हासिल की है. पिछले साल राज्य की साइबर यूनिट ने एक डार्क नेट मॉनिटरिंग सिस्टम तैयार किया, जिसे एक इंस्पेक्टर-स्तरीय अधिकारी लीड कर रहे हैं. इस सिस्टम की मदद से महाराष्ट्र साइबर ने डार्क नेट की 15 ड्रग मार्केटप्लेस की पहचान की, जहां कोकीन और अन्य नशीली दवाओं को बेचे जाने के दावे किए जा रहे थे. इन मार्केटप्लेस की लिंक ट्रैक कर उन्हें डिएक्टिवेट करने में एजेंसी को सफलता मिली हालांकि, अपराधियों के आईपी एड्रेस को ट्रेस करना मुश्किल साबित हुआ, क्योंकि Tor ब्राउज़र की वजह से उनकी पहचान कई देशों के नकली आईपी में छुपा दी जाती है, लेकिन फिजिकल डिलीवरी के दौरान उन्हें पकड़ने की रणनीति ही फिलहाल सबसे प्रभावी तरीका साबित हो रही है.
सोशल मीडिया पर भी मंडरा रहा खतरा
डार्क नेट के अलावा कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी ड्रग डीलिंग की गतिविधियां सामने आ सकती हैं. ये डील्स सीक्रेट चैट्स और कोडेड वीडियो कंटेंट के माध्यम से हो सकती हैं. मगर यहां सबसे बड़ी चुनौती है- पुलिस को इन चैट्स तक एक्सेस नहीं मिल पाता, और सोशल मीडिया कंपनियां भी डेटा साझा करने में अक्सर नियमों का हवाला देती हैं. फिलहाल पुलिस को ऐसी कोई एक्टिव लिंक इंटरनेट पर नहीं मिली है, मगर सोशल मीडिया पर भी ड्रग्स की खरीद-फरोख्त की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं