Chhattisgarh High Court: अगर पत्नी अवैध संबंध (Extra Marital Affair) रखती है और यह प्रमाणित हो जाता है तो वह पति से भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं होगी. बिलासपुर स्थित छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत मैंटेनेंस (भरण-पोषण) को लेकर स्पष्ट फैसला दिया है. जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की सिंगल बेंच ने फैमिली कोर्ट के 2009 के फैसले को सही ठहराते हुए पत्नी की प्रथम अपील खारिज कर दी. अदालत ने दोनों पक्षों की पहचान गोपनीय रखी है.
1975 में हुआ था विवाह, चार बच्चों के माता-पिता हैं दंपती
मामले के अनुसार, पति-पत्नी का विवाह वर्ष 1975 में हिंदू रीति-रिवाज (Marriage Cccording to Hindu Customs) से संपन्न हुआ था. दोनों चार बच्चे हैं. कुछ वर्षों तक वैवाहिक जीवन सामान्य रहा, लेकिन बाद में दोनों के बीच संबंध बिगड़ गए. पत्नी का आरोप था कि पति ने उसके साथ मारपीट शुरू कर दी और 17 अप्रैल 2001 को उसे घर से निकाल दिया, जिसके बाद वह अपने भाई के घर रहने लगी.
पत्नी ने लगाए थे मारपीट और संपत्ति हड़पने के आरोप
पत्नी ने कोर्ट में दावा किया कि पति ने उसके जेवर अपने पास रख लिए और उसे किसी भी प्रकार का भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया. उसने यह भी कहा कि पति के पास लगभग 10 एकड़ कृषि भूमि है और व्यवसाय से भी उसे अच्छी आय होती है. इन आधारों पर पत्नी ने पति से नियमित भरण-पोषण की मांग की थी.
पति का पलटवार, अवैध संबंध का गंभीर आरोप
वहीं, पति ने पत्नी के सभी आरोपों को निराधार बताते हुए उस पर अवैध संबंध का गंभीर आरोप लगाया. पति के अनुसार, 15 अप्रैल 2001 की रात पत्नी ने योजनाबद्ध तरीके से घर की लाइट बंद कर गेट खोला और एक अन्य व्यक्ति के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पाई गई. इस घटना को उसने और उसके बेटे ने स्वयं देखा. पति ने बताया कि इसके बाद गांव में पंचायत हुई, जिसमें पत्नी ने अपने अवैध संबंध स्वीकार किए और उसी व्यक्ति के साथ रहने की इच्छा जताई. इस पंचायत से जुड़ा पंचायतनामा भी अदालत में प्रस्तुत किया गया.
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हाईकोर्ट की टिप्पणी परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी पर्याप्त
हाईकोर्ट ने कहा कि अवैध संबंध जैसे कृत्य सामान्यतः गोपनीय होते हैं, लेकिन उन्हें परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर भी सिद्ध किया जा सकता है. अदालत ने हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा 18(3) का हवाला देते हुए कहा कि यदि पत्नी अशुद्ध आचरण में लिप्त पाई जाती है तो उसे पति से अलग निवास और भरण-पोषण का अधिकार नहीं मिलता.
फैमिली कोर्ट का निर्णय बरकरार
कोर्ट ने पाया कि पति, बेटे और अन्य गवाहों के बयान तथा पंचायतनामा जैसे साक्ष्य पत्नी के अनुचित आचरण की पुष्टि करते हैं. इसी आधार पर फैमिली कोर्ट द्वारा 31 अक्टूबर 2009 को दिया गया निर्णय सही ठहराया गया और पत्नी की अपील खारिज कर दी गई. यह फैसला पारिवारिक कानून के मामलों में एक महत्वपूर्ण नजीर के रूप में देखा जा रहा है.
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