
- सिवनी की गीता सनोडिया ने दिवाली से एक दिन पहले अपने 10 वर्षीय बेटे को लीवर दान कर नया जीवन दिया
- तेजलाल सनोडिया के बेटे शौर्य का लीवर 80 प्रतिशत खराब होने पर इलाज के लिए आर्थिक संकट सामने आया
- दिल्ली के नारायणा अस्पताल में इलाज के लिए 22 लाख रुपये की प्रारंभिक राशि जुटाने में जनसहयोग मिला
मां के प्यार और साहस का एक अद्भुत उदाहरण सिवनी में देखने को मिला है, जहां एक 40 वर्षीय मां गीता सनोडिया ने दिवाली से ठीक एक दिन पहले अपने 10 वर्षीय बेटे शौर्य को अपना लीवर दान कर उसे नया जीवन दिया है. विपरीत परिस्थितियों और आर्थिक तंगी के बावजूद मां ने हार नहीं मानी और बेटे के इलाज के लिए जनसहयोग से राशि जुटाई, यहां तक कि अपनी ज़मीन भी बेची.
बेटी की मौत के बाद बेटे को बचाना बनी चुनौती
ग्राम नंदौरा के किसान तेजलाल सनोडिया की पहले एक 10 साल की बेटी थी, जिसकी मौत पेट दर्द की बीमारी के कारण हुई थी. बाद में पता चला कि उसकी मौत लीवर खराब होने से हुई थी. जब उनके 10 वर्षीय बेटे शौर्य को भी दो साल से पेट में दर्द होने लगा, तो परिवार डर गया.
दिल्ली एम्स में जांच कराने पर पता चला कि शौर्य का लीवर 80 प्रतिशत तक खराब हो चुका है. हैदराबाद के एक अस्पताल में डॉक्टरों ने इलाज का खर्च 40 लाख रुपये बताया, जिसे सुनकर किसान तेजलाल सकते में आ गए, क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी.

जनसहयोग से जुटे 22 लाख रुपये
हताश तेजलाल को एक पड़ोसी चेतराम सनोडिया ने दिल्ली के नारायणा अस्पताल जाने की सलाह दी, जहां प्रारंभिक खर्च 22 लाख रुपये बताया गया.
इसके बाद, तेजलाल ने पड़ोसियों और समाजसेवियों से मदद की गुहार लगाई. सिवनीवासियों ने दिल खोलकर मदद की, जिससे जनसहयोग से 2 लाख रुपये एकत्रित हुए. बाकी बड़ी राशि जुटाने के लिए तेजलाल को ज़मीन बेचनी पड़ी और 15 लाख रुपये उन्होंने उधार लिए.
मां बनी बेटे की जीवनदाता
जब लीवर ट्रांसप्लांट की बात आई, तो शौर्य की मां गीता सनोडिया ने साहस दिखाते हुए आगे कदम बढ़ाया. सौभाग्य से, मां और बेटे का लीवर मैच हो गया. डॉक्टरों ने रविवार (दिवाली से एक दिन पहले) को सफल ट्रांसप्लांट ऑपरेशन किया, जिससे शौर्य को नया जीवन मिला.

हालांकि, लीवर ट्रांसप्लांट तो सफल हो गया है, लेकिन शौर्य के इलाज और बेहतर देखभाल में अभी और खर्च आएगा. परिजनों ने जनप्रतिनिधियों और समाजसेवियों से आगे आकर मदद करने की अपील की है, ताकि उनका बच्चा पूरी तरह स्वस्थ हो सके. यह घटना बताती है कि मां का त्याग और जनसहयोग मिलकर किसी भी मुश्किल को पार कर सकता है.
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