
- कौशांबी के देवीगंज कस्बे में नंदकिशोर अग्रहरि के परिवार पर धनतेरस के दिन दोहरे दुखों का पहाड़ टूटा
- बड़े बेटे हरिश्चंद्र को ब्रेन अटैक के बाद फिनिक्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनकी मृत्यु हो गई
- हरिश्चंद्र की मौत के सदमे से उनकी मां का भी निधन हो गया, जिससे परिवार में गहरा मातम छा गया
दिवाली, रोशनी का पर्व. लेकिन कौशांबी के एक परिवार पर इस रोशनी के पर्व से ठीक पहले दुखों का ऐसा पहाड़ टूटा कि दिन के उजाले में भी गहरा अंधेरा छा गया. यह हृदय विदारक कहानी है देवीगंज कस्बा के रहने वाले बीज और अनाज व्यापारी नंदकिशोर अग्रहरि की, जिनके घर के द्वार पर इस धनतेरस को दीयों की जगमगाहट नहीं, बल्कि दो लाशों के आने का इंतज़ार हो रहा था बेटे और पत्नी की.
बेटे की मौत का सदमा और मां ने तोड़ा दम
नंदकिशोर अग्रहरि के दो बेटे हैं—हरिश्चंद्र और गुड्डू अग्रहरि. बड़े बेटे हरिश्चंद्र को करीब 10 दिन पहले ब्रेन अटैक आया था, जिसके बाद उन्हें प्रयागराज के फिनिक्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था. नियति को कुछ और ही मंजूर था. धनतेरस के दिन, जिस दिन से पांच दिवसीय दीपोत्सव का आरंभ होता है, हरिश्चंद्र ने इलाज के दौरान अंतिम सांस ली.
यह खबर जैसे ही देवीगंज में नंदकिशोर के घर पहुंची, पूरे परिवार में कोहराम मच गया. हरिश्चंद्र की मां, बेटे की मौत का सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकीं. वह दहाड़े मारकर रोने लगीं और चीख़ मारकर ज़मीन पर गिर गईं. परिवार ने उन्हें होश में लाने की पूरी कोशिश की, पानी डाला, लेकिन सब व्यर्थ रहा. डॉक्टर ने भी उन्हें मृत घोषित कर दिया.
दो लाशों का इंतज़ार: दीपोत्सव के द्वार पर मातम
दिवाली से ठीक एक दिन पहले, जहां हर घर में साफ-सफाई, खरीदारी और पकवानों की तैयारी चल रही है, वहीं नंदकिशोर अग्रहरि अपने करीबियों और परिवार के साथ घर के द्वार पर बैठे हैं. अब उन्हें एक नहीं, बल्कि दो-दो शवों के आने का इंतज़ार है, ताकि वह अपने बेटे और अपनी जीवनसंगिनी का एक साथ अंतिम संस्कार कर सकें.
नंदकिशोर का परिवार पहले बेटे हरिश्चंद्र की लाश आने का इंतज़ार कर रहा था, लेकिन अब मां के निधन से पूरे परिवार पर दोहरा वज्रपात हुआ है. यह वह घड़ी है जब पूरा देश 'शुभ-लाभ' और समृद्धि की कामना कर रहा है, और इस परिवार के हिस्से में असहनीय वेदना आई है.
इस दुःखद घटना की सूचना मिलने पर थानाध्यक्ष धीरेन्द्र सिंह ने बताया कि शवों को कब्जे में लेकर विधिक कार्रवाई की जा रही है. नंदकिशोर के घर में छाया यह मातम केवल उस परिवार का दुःख नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक गहरा सदमा है. दिवाली के दीयों की रोशनी में यह सवाल अंधेरा बनकर खड़ा है कि जीवन की नश्वरता कब और किस रूप में सामने आ जाएगी, कोई नहीं जानता. इस कठिन समय में पूरा कस्बा नंदकिशोर अग्रहरि के परिवार के साथ खड़ा है.
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