
- धामी में दिवाली के दूसरे दिन पत्थर मेला नामक खेल का आयोजन किया जाता है जिसमें लोग पर पत्थर बरसाते हैं.
- यह परंपरा लगभग चार सौ वर्षों से चली आ रही है और इसे नरबलि के रूप में माना जाता है.
- खेल दो गांव की दो टोलियों के बीच लगभग चालीस मिनट तक चलता है और किसी के खून निकलने पर समाप्त होता है.
शिमला के धामी में एक ऐसे मेले का आयोजन होता है जिसमें लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं. इसे यहां पर पत्थर मेला कहते हैं और इसमें लोग एक दूसरे पर लोगों ने पत्थ बरसाते है. इस पत्थर मेले का आयोजन यहां पर दिवाली के दूसरे दिन होता है. यह खेल दो गांव की दो टोलियों में खेला जाता है. सदियों से इसे नरबलि के तौर पर मनाया जा रहा है. बताया जाता है कि यह परंपरा 400 सालों से चली आ रही है.
सदियों पुरानी परंपरा
शिमला धामी में दिवाली के दूसरे दिन सदियों से चली आ रही पत्थर के खेल की अनोखी परंपरा को आज भी पूरे उत्साह और जोश के साथ निभाया गया. दिवाली के दूसरे दिन दो अलग-अलग क्षेत्रों के लोग एक-दूसरे पर पत्थरों की बरसात करते हैं. यह सिलसिला तब तक चलता है, जब तक किसी पक्ष के किसी एक व्यक्ति का खून नहीं निकल जाता है. चोट लगने पर व्यक्ति के खून को मां भद्रकाली के चबूतरे पर लगाया जाता है और खेल का समापन होता है.
40 मिनट तक चलता है खेल
इस मेले में धामी में राज परिवार की तरफ से तुनड़ू, जठौती व कटेड़ू परिवार की टोली जबकि दूसरी ओर से जमोगी खानदान की टोली के सदस्य पत्थर बरसाते हैं. बाकी लोग पत्थर मेले को देख सकते हैं लेकिन वो पत्थर नहीं मार सकते. इस बार भी पूरी रस्मों के साथ पत्थर खेल मेले का आयोजन हुआ और जमोगी टोली इस बार मेले में विजयी रही. करीब 40 मिनट तक चले पत्थर मार खेल में दोनों तरफ से जबरदस्त पथराव हुआ.
दी जाती है नरबलि
इसमें कटेडू टोली के सुभाष के हाथ में पत्थर लगा. इसके बाद कटेड़ू टोली के सुभाष के खून से इस बार मां भद्रकाली का तिलक किया गया और खेल खत्म हुआ. सदियों से मान्यता है कि यहां हर साल भद्रकाली को नरबलि दी जाती थी लेकिन धामी रियासत की रानी ने सती होने से पहले नर बलि को बंद करने का हुक्म दिया था. इसके बाद पशु बलि शुरू हुई कई दशक पहले इसे भी बंद कर दिया गया. इसके बाद पत्थर का मेला शुरू किया गया. इसके बाद किसी भी व्यक्ति को चोट लगने के बाद खून निकलता हैं तो उसे भद्रकाली का भोग माना जाता है.
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